गुड़िया
गुड़िया
कंचन कचरा फेंकने के लिए घर से बाहर निकली थी । शहर में गली के हर मोड़ पर बड़ा कूड़ेदान पड़ा था। घर से थोड़ी दूरी पर ही वो कूड़ेदान था। वहां गंदगी का अपार ढेर लगा हुआ था।
वह जैसे ही कूड़ेदान में कचरा गिराने लगी । उसकी नजर दो बच्चों पर पड़ी उसने देखा 6-7 साल के छोटे छोटे दो बच्चे कचरा बीन रहे थे ।उनको देखकर कंचन के मन को बहुत बुरा लगा।
कैसे बेचारे छोटे -छोटे बच्चे कचरे के ढेर में से समान ढूंढ रहे हैं । वह टूटा-फूटा समान उठाकर अपने झोले में डाल रहे थे।
तभी कचरे के ढेर में से लड़के को एक गुड़िया मिली । उसने वो गुडिया निकाली और उसको झाड़ कर उस लड़की को दी । शायद वह उसकी छोटी बहन होगी।
गुडिया को देखकर वह बहुत खुश हुई ।गुड़िया को प्यार से हाथ से सहलाती खेलती । उसके लिए वह बहुत ही सुंदर और अमूल्य चीज थी ।
उसके चेहरे से ऐसा लग रहा था। मानो उसे अपने सपनों की दुनिया मिल गई हो । वह कभी उसको झुला रही थी कभी नचा रही थी।
लड़का फिर से कचरे के ढेर में सी समान उठाने लग पड़ा था। लड़की को गुड़िया में अपना सपना साकार हुआ दिख रहा था। लड़का उसे देखकर मुस्कुरा रहा था । मानो उसने बहुत कीमती उपहार दे दिया हो । वह फिर से काम पर लग गया । खाली बोतल उठा उठा कर अपनी झोले में डालने लगा ।लड़की फटी सी अपने फटे हुए दुपट्टे से बार-बार उसको सहला रही थी ।
उसके चेहरे पर ऐसी खुशी थी मानो जैसे उसे कोई बहुत कीमती चीज मिल गई हो कंचन को याद आया अभी पिछले हफ्ते जब अपनी बेटी के लिए गुड़िया लाई तो गुड़िया को एक नजर देख के थोड़ी देर में ही वो उस की गर्दन अलग करके फेंक गई थी ।
जिनको चीज मिलती है उनको उसकी कदर नहीं होती जिनको चीज नहीं मिलती उनके लिए वह चीज कितनी अमूल्य रहती है।
कंचन बच्चों को वही रुकने को बोलती है और वापिस घर आती है घर आकर वो अपने बच्चों के कुछ खिलौने उठाती है। बैग भरकर उन बच्चों को दे आती है । मानो उनका सपना पूरा करने में उसने भी उनका साथ दे दिया।