गंगा
गंगा
सूरज सूरज पता है तुझे आज हमारे मोहल्ले का रामू गुजर गया। हाँफते स्वर में बोलते हुए राजू ने चौकी पर बैठे हुए सूरज से कहा। हां पता है, अभी तो सब लोग उसके घर के तरफ जा रहे हैं। तुझे पता कल रात की दुर्घटना में तीन लड़कों की मृत्यु हुई है। उनमें से हमारा रामू भी है। मोहल्ले के सब लोग इकट्ठे हुए अर्थी उठाई गई। राम नाम सत्य बोलते हुए गंगा तट के तरफ निकली भीड़। सूरज और राजू भी साथ चले। दूर से अर्थी देखते ही गंगा अपनी बहन सरस्वती से बोली देखो बहन ये अज्ञानी लोग फिर मुझे मलिन करने आ रहे हैं। सरस्वती बोली कि बहन हम इस बार उन्हें रोकेंगे। कैसे रोकेगी? वे लोग तो शव को मेरे गोद में फेंक के चले जाते हैं। मेरे आंचल मेरे पूरे शरीर को मलिन किया, फिर भी मैं शुद्ध स्वच्छ पानी देती हूँ। इन्हें इतना भी ध्यान नहीं कि मृत शरीर को नदी में नहीं डालना चाहिए। पशु-पक्षियों को भी जिस बात का ज्ञान है वो बात मनुष्य क्यों नहीं समझ पाते हैं। अगली बार मैं दुनिया की पश्चिम दिशा की तरफ यात्रा कर लेती हूँ उधर लोग नदी नाले को साफ सुथरा रखते हैं। गंगा इन्हें सबक सिखाएगी तब इन्हें अक्ल आएगी।