एक सपना।
एक सपना।


आज मैं घर के बाहर बैठकर अपनी मां के लौटने की इंतजार कर रहा था।
वक्त बहुत हो चुका था मां को बाहर गए हुए कह कर तो गई थी थोड़ी सी देर में वो लौटेगी पर वह अभी तक नहीं लौटी। मैं सोच में डूब रहा हूं कितनी देर न जाने कहां लग गई कि अभी तक घर नहीं लौटी।
मैं इंतजार करते हुए सोचने लगा की आएगी तो मेरे लिए क्या-क्या लेकर आएगी। मैं उन में से सबसे पहले क्या चीज लूंगा और वह स्वाद में कैसा रहेगा न जाने बाजार में मेरे कहे हुए चीजें मिली भी होंगे या नहीं।
मैं फिर सोच में डूब गया कि मैं ना जाने इतनी देर कहां हो गई अब तो आ ही जाना चाहिए था, मैं अंदर बाहर अंदर बाहर चलता रहा और सोचता रहा कि मैं क्या करूं।
मैंने घरवालों से पूछा कि मेरा मां अभी तक क्यों नहीं आई, लोगों ने मुझे पागल कहा तुम दिन में भी सपने देख रहे हो और ना जाने क्या क्या कह दिया फिर भी मैं अंदर बाहर चलता रहा और इंतजार करता रहा।
यह इंतजार में न जाने कितने वक्त गुजर गया कि मेरी सोचने की क्षमता ही खत्म हो चुकी थी कि मां क्यों नहीं लौटी।
फिर नींद से मेरी आंखें खुली और मैंने देखा कि मेरे सर के पास मेरा मां का हाथ रखा हुआ है और मैं अपने मां के गोद में आराम से सो रहा हूं। पर उसे एक सपने ने मुझे एक ऐसी एहसास दिलाया है कि मैं कभी मां को अकेले बाहर ही नहीं जाने देना चाहता हूं।