एक और पन्ना भाग-2
एक और पन्ना भाग-2
गतांक से आगे
रीना दिलावर और जग्गू को अपने कमरे में ले आई और उन्हें सोफे पर बैठा दिया । जैसे ही वह अपने कपड़े उतारने लगी , दिलावर ने उसे रोक दिया
"नहीं नहीं, ये सब मत करो । तुम तो मेरे पास बैठो और मुझसे केवल बातें करो" । दिलावर ने कहा ।
जग्गू और रीना दोनों ही चौंके । जग्गू समझने का प्रयास कर रहा था कि आखिर उस्ताद के मन में चल क्या रहा है । उधर रीना सोचने लगी कि कैसे कैसे बुड्ढे चले आते हैं ? बुढ़ापे में भी "रसिया" बने हुए हैं और मर्यादा पुरुषोत्तम राम की तरह व्यवहार करते हैं" । उसने कहा
"ऐ बुढऊ । अपनी हद में रह । ज्यादा मत उड़ । अपना काम कर और फूट यहां से । रसिया बन रहा है , साला" ?
दिलावर उसकी गालियों को पी गया । वह पहले की तरह ही खामोश रहा । फिर बोला " तुम सही कह रही हो बेटी, इस उमर में अगर मैं किसी "वेश्या" के पास जाऊंगा तो हर कोई आदमी यही समझेगा जो तुम समझ रही हो । पर मैं तो यहां तुमसे "पारो" के बारे में जानने के लिए आया हूं । बस , इतना बता दो कि पारो अब कहां है" ?
पारो का नाम सुनते ही रीना को 11000 के वी का करंट दौड़ गया । उसने गौर से दिलावर को देखा लेकिन वह उसे जानती ही नहीं थी । रीना को समझ नहीं आया कि "ये आदमी" कौन है और उसकी मां 'पारो' को कैसे जानता है ? उसने इस आदमी को आज तक कभी नहीं देखा था । आज अचानक यह पारो के बारे में क्यों पूछ रहा है ? उसने अनजान बनते हुए कहा "कौन पारो" ?
"तेरी मां, पारो ! और कौन" ? दिलावर ने कहा
"वेश्याओं की ना कोई मां होती है और ना ही कोई बाप । जो कुछ होता है बस उसका शरीर ही होता है । जल्दी से अपना काम करो और अपना रास्ता नापो , चलो" । रीना थोड़े गुस्से से बोली ।
"बेटी , मेरी बात ध्यान से सुन । पारो एक बार मुझसे मिलने जेल आई थी तब तू पढ़ती थी । पारो ने मुझे वचन दिया था कि तुझे वह पढ़ा लिखा कर अफसर बनाएगी । मगर तुम यहां अपने जिस्म का धंधा कर रही हो । मुझे बता दे बेटी कि पारो कहां है ? मैं उसे लेने आया हूं । बहुत दुख झेले हैं उसने । अब चाहता हूं कि हम दोनों साथ साथ जीएं और साथ साथ ही मरें" । कहते कहते दिलावर की आंखें नम हो गई ।
इतना सुनने के बाद रीना के व्यवहार में भी कुछ बदलाव हुआ । उसे लगने लगा कि यह बूढ़ा आदमी वास्तव में कोई ग्राहक नहीं है बल्कि यह तो कोई "जानकार" सा लग रहा है । उसे याद आने लगा जो बहुत साल पहले उसकी मां ने उसे बताया था ।
रीना की मां का नाम पारो था । वास्तव में उसका असली नाम "भौती" था । अपने मां बाप की भौती नौवीं लड़की थी । भौती के मां बाप ने लड़का होने के सारे जतन कर लिए फिर भी 'बहुत' सारी लड़कियां पैदा होती चली गई। चूंकि लड़कियां बहुत ज्यादा हो गई थीं इसलिए इसका नाम भौती रख दिया था ।
भौती का बाप एक नंबर का शराबी था । उसके पास दो ही काम थे करने के लिए । एक, शराब पीना और दूसरा बच्चे पैदा करना । इसके अलावा उसने अपनी जिंदगी में और कुछ नहीं किया । भौती की मां ही कुछ मेहनत मजदूरी कर के लाती थी । उसी से घर और बाप की दारू की व्यवस्था हो रही थी ।
एक दिन उसका बाप भौती की बड़ी बहन को फ्रॉक सिलवाने के लिए शहर लेकर गया था । देर रात तक नहीं लौटा था वह । तब उसकी मां को अपनी बेटी के लिए चिंता होने लगी । वह अपने साथ दो लड़कियों को लेकर उनको ढूंढने शहर में निकल पड़ी । ढूंढते ढूंढते पूरी रात गुजर गई लेकिन दोनों का कोई अता पता नहीं चला । थक हार कर वे लोग वापस जाने के लिए बस अड्डे चले गए । वहां पर एक लड़की ने दूर एक आदमी को पड़े हुए देखा । उसने अपनी मां को बताया । मां उसे देखने चली गई । पास जाकर देखा तो वह तो भौती का बाप ही था जो दारू पीकर मस्त पड़ा था । कुछ भी होश नहीं था उसको । उन्होंने उसे जगाने का बहुत प्रयास किया लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ ।
अंत में भौती की मां पास के हैंडपंप से एक बाल्टी पानी लाई और उसके ऊपर डाल दी । तब जाकर उसकी आंख खुली । जब उससे अपनी बेटी के बारे में पूछा तो वह कहने लगा "आज तो मजा आ गया । कितने दिनों बाद जी भरकर "इंग्लिश" पीने को मिली थी कल । अभी तक सिर चढ़कर बोल रही है, साली। उतरने का नाम ही नहीं ले रही है, ससुरी" ।
उसकी मां ने कहा "मेरी बेटी कहां है नासपीटे ? कहां छोड़ आया है तू उसे" ?
हिचकियां लेते हुए उसने बताया कि उसे पांच हजार रुपए में बेच दिया है । उसकी मां सन्न रह गई । उसने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि यह इतना हरामी निकलेगा । एक बाप अपनी ही बेटी को कैसे बेच सकता है ? उसने पूरी ताकत से उस पर खूब घूंसे बरसाये लेकिन उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा । उस बेटी का आज तक पता नहीं चला । वह अब जिंदा भी है या नहीं, कुछ पता नहीं ।
मां बेचारी क्या क्या करे ? कितना ध्यान रखे बच्चों का ? एक दिन इसी तरह उसका बाप 'भौती' को भी पांच हजार रुपए में बेच आया । और इस तरह भौती के जीवन की नई शुरुआत हुई । भौती उस समय तेरह चौदह साल की थी ।
जिसने भौती को खरीदा था , उसने पहले तो खुद ने कई वर्षों तक भौती का शोषण किया । फिर दस हजार रुपए में इस अड्डे पर बेच दिया ।
यहां पर पहले तो भौजी की अच्छी खातिरदारी की । खूब बढ़िया खिलाया , पिलाया और अच्छे अच्छे कपड़े पहनने को दिए । दो साल में भौती का हुलिया एकदम से बदल गया था । अब वह अठारह साल की हो गई थी । अब उसको "धंधे" पर बैठाने का समय आ गया था ।
"भौती" नाम बड़ा अटपटा सा लग रहा था । इसलिए सबसे पहले उसका नाम बदल कर "पारो" रख दिया था । उसके बाद से भौती मर गई और पारो पैदा हो गई ।
पारो सुंदर थी । बड़ी जल्दी ही वह सब लोगों की निगाहों में आ गई । उसके घर के आगे भीड़ लगी रहती थी ग्राहकों की । उसने यह समझ लिया था कि उसका जीवन और मृत्यु यहीं पर ही होनी है इसलिए इस परिस्थिति से उसने समझौता कर लिया था । इस धंधे के कुछ "गुर" भी उसने सीख लिए थे । ग्राहकों को मीठी-मीठी बातों में फंसाकर कैसे उनसे अधिक से अधिक धनराशि लूटने को ही "कलाकारी" कहते हैं । इस "कलाकारी" में वह दक्ष हो गई थी ।
उन दिनों में दिलावर पच्चीस साल का हृष्ट पुष्ट नौजवान था । एक दिन उसका दोस्त उसे पारो के पास ले आया । बस, उस दिन से पारो उसके नैनों में बस गई । उसकी आंखों में ऐसा डूबा कि फिर कभी वह ऊपर आ ही नहीं सका ।
पहले तो पारो ने दिलावर को एक आम ग्राहक की तरह ही "भाव" दिये । लेकिन कहते हैं कि मोहब्बत सिर चढ़कर बोलती है । दिलावर की मोहब्बत ने पारो के पत्थर दिल में सुराख बना लिया और उस खाली जगह में दिलावर की मूरत कब फिट हो गई , पारो को पता ही नहीं चला । अब जब भी दोनों मिलते थे खूब कहकहे लगाते थे । पारो अपने दुखों को लगभग भूल ही गई थी । दिलावर के एक बेटी ने जन्म लिया । उसने मंदिर में प्रसाद चढ़ाया । पूरे गांव को मिठाई बांटी । दिलावर की खुशी का कोई ओर छोर नहीं था ।
पारो भी दिलावर को जी जान से चाहने लगी थी । अब उसने अपना धंधा बंद कर दिया था । वह दिलावर की उप पत्नी की तरह रहने लगी थी ।
एक दिन जब दिलावर पारो से मिलने पहुंचा तो पारो को बहुत खुश पाया । दिलावर ने उसका चेहरा अपनी हथेलियों में लेकर खुश होने का कारण पूछा तो पारो शरमा गई और हाथ छुड़ाकर भाग गई । दिलावर ने पीछे से उसे अपनी मजबूत बाहों में कस लिया और प्यार की बौछारों की झड़ी लगा दी । पारो ने भी उसकी चौड़ी छाती में अपना मुंह छुपा लिया ।
दिलावर ने बड़े ही प्रेम से पूछा "क्या बात है , आज बहुत खुश नजर आ रही हो ? कोई विशेष समाचार है क्या" ? पारो की ठोड़ी ऊपर की ओर करते हुए दिलावर ने उसकी आंखों में झांकते हुए पूछा था
"हमें शर्म आती है । हम नहीं बताएंगे" । अपने दोनों हाथों से चेहरे को छुपाते हुए पारो बोली ।
"अब बता भी दो न । देखो कब से मनुहार कर रहे हैं " । थोड़ा कृत्रिम रोष नेत्रों में भरकर दिलावर ने कहा ।
पारो ने शरमाते हुए कहा "आप हैं ना , पापा बनने वाले हैं अपने बच्चे के" । और वह अंदर भाग गई ।
दिलावर को कितनी खुशी हुई ये वह बता नहीं सकता था । उसने पारो को अपनी बाहों में भरकर प्यार की बूंदों की झड़ी लगा दी । दोनों बहुत देर तक बिना कुछ बोले ऐसे ही लेटे रहे । जब थोड़े संयमित हुए तब वे उठकर बाहर आ गए ।
पारो चाय बनाकर ले आई । तब तक दिलावर को आने वाले बच्चे की स्थिति का भान हो गया । उसकी खुशी धीरे धीरे काफूर होती चली गई। उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं । उसे चिंतित देखकर पारो ने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा "आप खुश नहीं हैं" ?
दिलावर कहने लगा "वो बात नहीं है पारो । मैं बहुत खुश हूं लेकिन एक चिंता है जो मुझे परेशान कर रही है"
"क्या बात है जी ? कैसी चिंता? पारो ने कहा
"पारो , इसे अन्यथा मत लेना । इस बच्चे का भविष्य क्या है ? इसे मैं अपना नाम नहीं दे सकता । बड़ा होकर पता नहीं क्या गुजरेगी इस बच्चे पर जब इसको पता चलेगा कि वह एक 'नाजायज' औलाद है । बस, यही चिंता है मुझे" । दिलावर ने अपनी चिंता पारो के सम्मुख व्यक्त कर दी ।
पारो के अहसास तो आज उसके वश में थे ही नहीं । वह एक पूर्ण औरत बनने जा रही थी । दुनिया में एक औरत के लिए पत्नी बनने से भी बड़ी बात होती है मां बनना । उसने तो कभी ख़्वाबों में भी नहीं सोचा था कि वह इस जन्म में कभी मां बन पायेगी । अब जब यह सुअवसर आ ही गया है तो वह इसे अपने हाथ से जाने नहीं देगी । इसलिए उसने कहा "आप बिल्कुल भी चिंता मत करिए न । ईश्वर ने इसका भी तो भाग्य लिखा ही होगा । जो इसके भाग्य में लिखा है ,उसे कोई बदल नहीं सकता है । इसलिए आपके चिंता करने से कुछ भी नहीं होगा । आप बिल्कुल भी चिंतित ना हों इसके लिए " । पारो ने दिलावर के सिर को अपनी गोदी में रख लिया और बच्चों की तरह थपकियां देने लगी ।
धीरे धीरे बच्चा अंदर बड़ा होने लगा । अब पारो का पेट थोड़ा थोड़ा बाहर आने लगा था । पारो के मालिक को पता चला तो वह पारो पर बहुत बिगड़ा । उसने पारो को कह दिया कि वह इस बच्चे को गिरवा दे । लेकिन पारो ने ऐसा करने से बिल्कुल मना कर दिया । दोनों में खूब झगड़ा हुआ । मालिक ने पारो की अच्छी खासी पिटाई तक कर दी ।
शाम को जब दिलावर आया तो उसने पारो के चेहरे पर घाव देखे । उसने पारो से इन घावों के बारे में पूछा तो उसने कोई बहाना बना दिया । वह दिलावर के गुस्से को जानती थी । इसलिए बात को गोल कर गई । लेकिन एक बच्चे ने आकर सारी कलई उतार कर रख दी ।
दिलावर को बहुत तेज गुस्सा आ गया । वह सीधा पारो के मालिक के मकान पर पहुंचा और उसे बाहर आने के लिए ललकारा । मालिक लाठी लेकर आया और ताबड़तोड़ वार किये दिलावर पर । दिलावर बहुत सारे वार बचा गया लेकिन दो चार वार उसके भी पड़ गये । इससे दिलावर और भड़क गया । अगली बार जैसे ही मालिक ने दिलावर पर लाठी चलाई , दिलावर ने वह लाठी रोक ली और उस लाठी को पकड़ कर एक जोर का झटका दिया तो वह लाठी दिलावर के हाथ में आ गई । दिलावर ने आव देखा न ताव , लगातार तीन चार वार लाठी के उस पर कर दिये । मालिक वहीं टें बोल गया ।
क्रमशः:
