डर के आगे जीत हैं
डर के आगे जीत हैं
बात नब्बे के दशक की है जब बोर्ड परीक्षा में पास होना बहुत बड़ी बात होती थी। दिया आठवीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर नवमी कक्षा में प्रवेश लेने की तैयारी कर रही थी उसकी सभी सहेलियां लगभग अपना-अपना विषय चुन चुकीं थीं। कुछ सहेलियों ने कला वर्ग से नौवीं कक्षा में प्रवेश लिया तो कुछ सहेलियाँ विज्ञान वर्ग से प्रवेश ले चुकीं थीं।दिया ने अपने घर पर विषय चयन के लिए अपने बड़ों से पूछा तो उसके बड़े पापा और माता-पिता ने उसे डराया और कहा, "विज्ञान और गणित बहुत कठिन विषय हैं जिनसे यूपी बोर्ड की हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करना बहुत मुश्किल है। अच्छे-अच्छे धुरंधर भी फेल हो जाते हैं। "
लेकिन दिया को बिल्कुल भी डर नहीं लगा वह भी इन विषयों को पढ़ना चाहती थी और अपने प्रिय सहेलियों का साथ भी चाहती थी।
उसने बड़े धैर्य व शांति से उत्तर दिया, "पापा आप मुझे एक बार मौका दीजिए अगर मैं सफल ना हुई तो आप मुझे आगे मत पढ़ाना । आप मुझ पर भरोसा रखिए मैं आपकी आशाओं पर पानी नहीं फिरने दूँगी । "
उसने बहुत मन लगाकर पढ़ाई की और दसवीं की यूपी बोर्ड की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और साबित कर दिया कि डर के आगे जीत है।
शिक्षा- इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हम अपने दृढ़ निश्चय और लगन से अपनी मंजिल को प्राप्त कर सकते हैं।