Sudhir Srivastava

Others

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Sudhir Srivastava

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चरित्र

चरित्र

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   अंधेरा हो रहा था। रजत ने अपना ई रिक्शा आखिरी सवारी छोड़ने के बाद घर की ओर मोड़ दिया। क्योंकि वो इस दुनिया में अकेला था। इसलिए खाना भी खुद पकाना पड़ता था। कभी कभार होटल में भी खा लिया करता था। हालांकि उसके मोहल्ले में कई परिवारों से उसे खाना खाने के लिए कहा भी जाता था, लेकिन वह ऐसा कर किसी की सहानुभूति का पात्र नहीं बनना चाहता था।

   गत वर्ष सड़क दुर्घटना में अपने माता पिता को खोने के बाद मुहल्ले वालों ने उसकी देखभाल की थी। उसके पिताजी इतने सरल और सहज थे कि सभी उनका सम्मान करते थे। इसीलिये वो भी पूरे मोहल्ले का दुलारा था।सज्जनता तो जैसे विरासत में मिली थी। मुहल्ले में ही रहने एक बैंक मैनेजर ने उसे लोन पर ई रिक्शा निकलवा दिया था। जो आज उसकी जीविका का साधन है। समय पर बैंक की किस्त जमा करना उसका प्रथम उद्देश्य होता था। 

अभी वो थोड़ी दूर आगे बढ़ा ही था कि सड़क किनारे झाड़ियों में उसे किसी का हाथ जमीन पर थोड़ा सा ही दिखा, तो वो चौंक पड़ा और ई रिक्शा को आगे जाकर खड़ा कर वापस आया तो देखा कि एक लड़की अस्त व्यस्त कपडों में औंधे मुंँह पड़ी थी। वह डर गया और मुहल्ले के ही तीन चार लोगों को फोन कर बुला लिया। तब तक उसने पुलिस को भी फोन कर दिया।

जब तक मुहल्ले वाले पहुँचते पुलिस आ चुकी थी। लड़की को बाहर निकाला गया, तो मुहल्ले वाले ही नहीं रजत भी चौंक गया। क्योंकि लड़की तो उन्हीं के मुहल्ले के शर्मा जी की बेटी थी। उनको फोन कर बुलाया गया।

शर्मा जी की पत्नी ने जब मुहल्ले वालों के साथ रजत को देखा तो उसे ही दोषी बताने लगीं , जब वो लगातार बोलती ही जा रही थीं, तब एक पुलिस वाले ने कहा- "मैडम! तुम पागल हो गई हो क्या? उसी ने तो हमें और मोहल्ले वालों को बुलाया और आप उसे ही दोषी ठहराने पर तुली हो। पहले अस्पताल चलते हैं। ऐसा न हो कि देर करने पर आपकी बेटी मर जाय और आप आरोप ही लगाती रह जाएं। फिर जो कहना होगा, थाने चलकर कहिएगा।"

अस्पताल पहुंचने और चिकित्सक द्वारा सब ठीक होने पर सबने राहत की सांस ली। प्राथमिक उपचार के लगभग दो घंटे बाद अस्पताल से छुट्टी मिलने पर सब थाने पहुंचे।इंस्पेक्टर ने जब पूछताछ शुरू की, तो लड़की की माँ ने फिर से आरोप लगाना शुरु कर दिया।

शर्मा जी अपनी पत्नी चुप कराते रहे, लेकिन वो कुछ भी सुनने को तैयार ही न थीं। थकहार अब तक चुप रहे मैनेजर साहब बोल पड़े-शर्मा जी ,अपनी पत्नी को चुप कराइए, वरना मेरा मुँह खुल जाएगा।

रजत ने मैनेजर साहब से प्रार्थना कि आप कुछ भी न कहें। घर की इज्ज़त सड़कों पर उघड़ेगी, तो हम सबके लिए शर्म की बात है।वहां खड़े सारे लोग अवाक थे। शर्मा जी अपना सिर पर हाथ रखकर निढाल हो बैठ गये।

रजत ने इंस्पेक्टर से कहा- "सर! ऐसे तो आप मुझे अच्छे से जानते हैं, फिर भी आँटी जी की रिपोर्ट लिखिए और वो जो भी आरोप लगाएं ,वो सब उनके अनुसार ही शामिल कीजिए।"

अब शर्मा जी रो पड़े - "ये तू क्या कह रहा है बेटा।"

"मैं ठीक कह रहा हूँ अंकल। मुझ अनाथ को आप सभी ने सहारा दिया था। मेरा चरित्र आप सभी से छिपा नहीं है, फिर भी निशा ने मुझ पर आरोप लगाए, आंटी ने बिना कुछ समझे बूझे मुझे आवारा, लफंगा कह डाला। मैं जानता था कि निशा बहक रही है, मुझसे बहुत छोटी है। पर उम्र का तकाजा है और अपने झांसे में आंटी को लेकर मेरे रिक्शे से आना जाना बंद कर दिया। मेरे साथ आने जाने में वो आजादी तो थी नहीं। लिहाजा मेरे चरित्र पर लांछन लगाने से बेहतर उसे कुछ सूझा नहीं। जिसने भी मेरा पक्ष लिया, माँ बेटी उससे लड़ने को तैयार हो गईं। निशा ने तो मैनेजर साहब को गाली तक दे दिया था। वो ही नहीं मुहल्ले का हर व्यक्ति आपके नाते जहर का घूँट पीता रहा। शुक्र है ईश्वर का कि निशा सुरक्षित है। ये शायद मुहल्ले भर के लिए खुशी की बात है।मैं अगर जेल भी चला जाऊँगा, तो भी कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन निशा का भविष्य कितना सुरक्षित है, ये आप दोनों को सोचना है। मगर एक बात जरूर कहूंगा किसी पर ऊंगली उठाने से पहले खुद को जरुर देखिये।"

अब तक मौन इंस्पेक्टर ने मुंह खोला और निशा से पूछा कि "तुम भी तो कुछ बोलो मोहतरमा। सारी रामकथा का केंद्र तो तुम्हीं हो।"

निशा के बहते आंसू उसे धिक्कार रहे थे, वो उठी और रजत से लिपट कर रो पड़ी। मुझे माफ कर दें रजत भाई। मैं बहक गई थी।

   रजत ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा-"चुप हो जाओ और जो हुआ उसे भूलकर नये विचारों के साथ आगे बढ़ो। मुझे कल भी तुमसे कोई शिकायत नहीं थी, आज भी नहीं है। बस तुम्हारी चिंता जरूर है, पर मेरी विवशता भी।" उसकी आंखों में आँसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा।

    अब शर्मा जी की पत्नी को अपराध बोध सा महसूस हुआ, वे आगे बढ़ी और रजत को सीने से लगा, "बस बेटा अब कुछ मत कहना, वरना मैं सह नहीं पाऊंगी। आज से, अभी से तू मेरा बेटा है। अब तू मेरे साथ रहेगा। निशा पर भी तेरा उतना ही अधिकार न है, जितना हर बड़े भाई का।"

फिर इंस्पेक्टर की ओर घूम कर बोली- "आप भी मुझे क्षमा कीजिए मुझे कोई रिपोर्ट नहीं लिखानी। मेरे बेटे का चरित्र गंगा जल की तरह साफ है।"

"मगर बेटी के साथ जो हुआ उसका क्या करेंगी आप?"

"अब जो करेगा, मेरा बेटा करेगा।"

तब मैनेजर साहब बोले- "जो हुआ, उसे यहीं खत्म कीजिए सर। बेटी की इज्ज़त का सवाल है।बदनामी के सिवा कुछ नहीं मिलेगा। फिर दोष उसका ही है।"

जैसी आप लोगों की इच्छा। निशा बेटा ऐसा कोई भी काम मत करना, जिससे मां बाप का सिर झुके और तुम्हारी जिंदगी तबाही की कहानी लिखने लगे।जाओ ,खुश रहो। इंस्पेक्टर ने शालीनता से कहते हुए सबको जाने की इजाजत दे दी।निशा अपनी मम्मी के साथ वापस जाने के लिए चुपचाप रजत के ई रिक्शा में बैठ गईं। बाकी लोग अपने वाहनों से घर की ओर चल पड़े।

    



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