बसंत ऋतु का संदेश
बसंत ऋतु का संदेश
मोहित अपनी कक्षा में सदैव ही प्रथम आता है। वह बहुत ही होनहार, कुशाग्र बुद्धि , सुंदर, व मृदुभाषी लड़का है। अब तक उसे जीवन में वह सभी वस्तुऐं प्राप्त हुई हैं, जिनकी उसने कामना की थी। अपनी मेहनत और अपनी लगन से उसने कालेज में मेधावी विधार्थियों की सूची मे प्रथम स्थान पाया है। उसके पिताजी माली हैं। एक बहुत बड़े सेठ हैं -किशोरी लाल जी। उन्ही के फार्म हाऊस , गार्डन और लॉन की देखभाल मोहित के पिताजी करते हैं। मोहित अक्सर पिताजी की सहायता उनके काम में कर देता है।
आज भी मोहित कालेज की छुट्टी के बाद पिता जी के पास साइकिल से जा रहा होता है कि अचानक से एक तीव्र गति से आने वाली अनियंत्रित कार से उसकी साइकिल टकरा जाती है। मोहित की आखों के सामने अंधकार छा जाता है। जब उसे होश आता है तो स्वयं को सिटी हॉस्पिटल के बेड पर पाता है। सामने पिताजी खड़े हैं। मोहित को देखकर सभी के नेत्रों से अश्रुधार निकल पड़ती है। मोहित की माँ के अश्रु मोहित को व्यथित कर देते हैं। वह धीरे- धीरे माँ को चुप कराने का प्रयास करता है। अपनी दाहिनी भुजा को उठाने का प्रयास करता है... पर यह क्या?... उसकी तो भुजा डाक्टर ने आपरेशन द्वारा काट दी है। कार की भयंकर भिड़ंत मे वह अपना सीधा हाथ खो बैठा है। अब वह माँ बाबू जी के अविरल बहते आँसुओं का कारण वह जान गया। एक भयानक चीख के साथ पूरा हास्पिटल गूंज गया। वह चीख है मोहित की जो बेड पर लेटे अपने भाग्य को कोस रहा है। पिताजी मोहित को ढांढस बंधाने का असफल प्रयास कर रहे हैं।
माँ-पिताजी जानते हैं कि मोहित को डॉक्टर बनाने का उनका सपना अब अधूरा ही रह जायेगा। कुछ ख्याबों की ताबीर कभी भी नहीं होती। उन्हें हकीकत में बदलने के लिए आँखे तरसती हैं। हास्पिटल से एक सप्ताह बाद मोहित को छुट्टी मिल चुकी है।
मोहित अपनी जिंदगी से निराश हो चुका है। उसने अपने आपको एक कम
रे में ही बंद कर दिया है। उसकी पूरी दुनिया एक कमरे तक ही सिमटकर रह गई है। नीरस जीवन में दूर तक आशा की कोई किरण दिखाई नहीं दे रही है। कभी -कभी उसकी मनोस्थिति ऐसी हो जाती है कि उसे अपने जीवन से छुटकारा पाने की तीव्र इच्छा होने लगती है।वह करे तो क्या करे?
पिताजी उसे आज अपने साथ किशोरी लाल जी के फॉर्म हाऊस पर ले जाते हैं, ताकि उसके हृदय का दुख थोड़ा घूमने- फिरने से कम हो सके। मोहित वहीं बगीचे मे बैठा प्रकृति का अद्भुत श्रंगार देख रहा है।उसे अपना दुख कम होता प्रतीत हो रहा है। अब वह प्रति दिन पिताजी के साथ फॉर्म हाऊस आने लगा है। उसने बगीचे में देखा पर्णहीन तरू पुनः हरे -भरे हो रहे हैं।नन्हे पौधों पर नवकोंपले खिल रही हैं। पुराने दरख्त भी बसंत के आगमन से हर्षित और आनंदित प्रतीत हो रहे हैं। क्योंकि उनकी खोंखल में पक्षियों का कलवर हो रहा है। भाँति- भाँति के सुंदर पुष्प क्यारियों में खिलने लगे हैं। फूलों की सुंगंध से मोहित की श्वांसे भी महकने लगी हैं। उसे प्रकृति का मौन शिक्षण प्राप्त हो गया है। हाँ उसने मन ही मन प्रण किया है ,कि वह अपने जीवन की कठिनाइयों के समक्ष नतमस्तक नहीं होगा। अपितु डटकर इनका सामना करेगा। जैसे पर्ण विहीन होने पर वृक्ष धैर्य नहीं खोते। अपितु बसंत के आगमन की प्रतीक्षा करते हैं। वैसे ही वह भी परिस्थितियों का दास नहीं बनेगा। जैसे प्रकृति का सौन्दर्य अनन्त है....अप्रतिम है। वैसे ही यह जीवन है । हमें इसकी निरन्तरता को बनाए रखना है। आत्महत्या जैसे कायरतापूर्ण विचार दुर्बलता के पर्याय हैं। उसे संघर्ष करना होगा। अपनी आत्मिक शक्ति को जगाना होगा। यही बसंत ऋतु का आह्वान है।यही बसंत ऋतु का जीवन संदेश है।फिर मोहित ने फैसला किया कि वह फिर से अपनी पढ़ाई शुरू करेगा।पीले फूलों की सुगंध से उसका मन आनंदित हो गया है।