भूत का ज़ुनून-4
भूत का ज़ुनून-4
उन्होंने कार की स्पीड काफ़ी बढ़ा दी। लेकिन थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा कि अभी- अभी जिस चौराहे को पार करके वो आगे आए थे, लाल बत्ती के सिग्नल पर रुकते ही फ़िर से सामने दिखाई दिया। उन्हें भारी हैरानी हुई।
उनका सिर चकराने लगा जब उन्होंने देखा कि ऐसा बार बार हो रहा है। वह सिग्नल क्रॉस करके आगे बढ़ते हैं पर कुछ दूर जाकर वही सिग्नल फ़िर उन्हें मिल जाता है। उन्होंने गाड़ी के भीतर ही इधर उधर नज़र दौड़ाई। उन्हें लगा कि कोई अदृश्य शक्ति उनके साथ साथ चल रही है और शायद वही इस तरह उनका रास्ता बार बार लंबा करके उन्हें घर पहुंचने में विलम्ब कर रही है।
भटनागर जी को याद आया उनका बॉस कहा करता है कि जब भी कोई अनहोनी हो जाए और दिमाग़ काम करना बंद कर दे तो कुछ मनपसंद बेहतरीन चीज़ खाओ। इससे शरीर तृप्त होकर दिमाग़ को सही फ़ैसला लेने का निर्देश देने लगता है।उन्होंने गाड़ी को सड़क पर एक किनारे की ओर लगा कर रोक दिया।
सामने ही चंपा रबड़ी भंडार खुला हुआ दिखाई दे रहा था। बाहर की ओर एक बड़ी भट्टी पर लोहे के बड़े से कड़ाह में एक लड़का दूध की गाढ़ी गाढ़ी रबड़ी को घोट रहा था।भटनागर जी ने तुरंत डेढ़ पाव रबड़ी का ऑर्डर दे दिया। दुकान के भीतर से एक और लड़का उन्हें शीशे की अलमारी में से निकाल कर काग़ज़ के दौने में रबड़ी देने लगा। लेकिन दुकान के मालिक ने उसे रोक दिया। मालिक अनुभवी था। उसने देख लिया था कि ग्राहक पैदल या रिक्शा से नहीं बल्कि कार से आया है। उसने ये भी भांप लिया था कि ग्राहक ने रबड़ी का भाव नहीं पूछा है बल्कि सीधे ही डेढ़ पाव माल का ऑर्डर भी दे दिया है। मालिक को ये ग्राहक कुछ संभावनाशील दिखाई दिया। इसे रबड़ी परोस कर बाद में इससे पचास की जगह सत्तर रुपए वसूले जा सकते थे। यदि इसे रबड़ी कुछ सम्मान के साथ परोसी जाए तो ये बिना किसी ना- नुकर के ज़्यादा पैसे देने को भी तैयार हो जाएगा।
यह सब सोच कर मालिक ने लड़के से कहा- "अरे क्या गज़ब करता है, साहब को कल का माल देता है। जब ताज़ा माल बन रहा है तो उसमें से ही दे।"
भटनागर जी को ठंडी रबड़ी पसंद थी लेकिन उन्होंने सोचा कि जब मालिक स्वयं इतने आदर के साथ ताज़ा माल दे रहा है तो उन्हें गर्म रबड़ी ही खानी चाहिए। वो कुछ मुस्कराए। रबड़ी देने वाला लड़का उनकी मुस्कान को ताज़ा रबड़ी के लिए उनकी ललक मान कर कड़ाह में से रबड़ी देने लगा।
रबड़ी का दौना हाथ में पकड़ कर उन्होंने एक पल के लिए सोचा कि उन्हें यहीं खड़े होकर रबड़ी खा लेनी चाहिए या फिर गाड़ी में बैठकर इत्मीनान से इसका स्वाद लिया जाए। सही और सटीक फ़ैसला करने के लिए ज़रूरी था कि रबड़ी चख कर देख ली जाए। उन्होंने जल्दी- जल्दी लकड़ी की चम्मच से रबड़ी को दो तीन बार चख कर देखा।रबड़ी स्वादिष्ट थी।
उन्होंने इसका आनंद गाड़ी में बैठकर इत्मीनान से ही लेने का विचार बनाया।उन्होंने रबड़ी का मूल्य चुकाने के लिए जेब में हाथ डाला। उनका माथा ठनका। जेब में पर्स नहीं था।ऐसा कैसे? उन्होंने एक पल के लिए सोचा। तभी उन्हें ख्याल आया कि ठीक तो है, जब वो ऑफिस जाने के लिए ब्रीफकेस लेते हैं तब पर्स भी उसी में तो रख लेते हैं।
वे कार से ब्रीफकेस निकाल कर लाने के लिए लपके। उन्होंने रबड़ी का दौना दुकान के बाहर पड़ी एक मेज़ पर टिका दिया। दौना साथ ले जाने पर दुकान का मालिक उन्हें टोकता न! अभी उन्होंने रुपए कहां दिए थे।
लेकिन पीछे मुड़ते ही भटनागर जी के होश फाख्ता हो गए। गाड़ी नदारद।
- अरे, कहां गई। कौन ले गया? और ले जाने की आवाज़ भी तो नहीं आई।
( क्रमशः )