भूत का ज़ुनून-10
भूत का ज़ुनून-10
अब पछताए क्या होवत है जब चिड़िया चुग गई खेत। अब कितनी भी भूख लगे भटनागर जी की इतनी हिम्मत नहीं हुई कि पत्नी से कुछ खाने को देने के लिए कहें। क्या सोचेंगे ये दोनों मां- बेटा?
अभी थोड़ी देर पहले ही तो डिनर लेकर चुके हैं। भटनागर जी तो पहले से ही डरे हुए थे कि कहीं पत्नी ने बेटे को उनके सपने के बारे में न बता दिया हो, वरना उनकी खूब मज़ाक उड़ेगी।अब अगर खाना मांगा तो उससे भी बुरा हाल होगा। मान लो, पत्नी उन्हें दोबारा कुछ परोसने के लिए डायनिंग टेबल के पास आई और उसने उनका गिराया हुआ खाना वहां बिखरा हुआ देख लिया तो उनकी और भी दुर्दशा होगी। केवल हंसी - मज़ाक ही नहीं, बल्कि उन्हें पागल समझ लिया जाएगा। जिस भूत को लेकर वो दो दिन से चिंतित हैं कहीं उसे उन पर से ही उतरवाने की कार्यवाही न होने लगे।कोई बात नहीं। आज वो ऐसे ही सोएंगे। ख़ाली पेट। क्या हुआ जो एक दिन खाना न मिला?पत्नी भी तो तरह- तरह के व्रत रखती है। कभी - कभी तो निर्जला व्रत तक करती है, पानी भी नहीं पीती। वो कम से कम पानी तो पी ही सकते हैं।उन्होंने पानी से भरा जग उठाया और गटागट सारा पानी हलक में उंडेल लिया। पेट फूल गया।
अब उन्होंने सोने में देर करना मुनासिब नहीं समझा। झट से चादर ओढ़ कर लेट गए। पत्नी ने समझा कि बेचारे दिन भर ऑफिस के काम से हारे थके आए हैं इसलिए उन्हें सोने ही देना चाहिए। वह बेटे से बोलीं- चल बेटा, तू भी आराम कर। अब सुबह बात करेंगे।बेटे ने उठकर उनके कमरे की लाइट बंद की और अपने कमरे में जाकर अपना लैपटॉप खोल लिया।कमरे में अंधेरा होते ही भटनागर जी ने मुंह से चादर हटाई। नींद आंखों से कोसों दूर थी। पेट का पानी भी जैसे बांध तोड़ कर निकलने के लिए उमड़ रहा था। वो कनखियों से पत्नी की ओर देखते हुए धीरे से उठे और बाथरूम जाने लगे।
पत्नी इतनी जल्दी गहरी नींद में तो नहीं हो सकती थी लेकिन उसने अपनी पीठ इस तरफ़ कर रखी थी। शायद ये सोच कर तत्काल सोने की कोशिश में थी कि कहीं पति की निद्रा में ख़लल न पड़े।
भटनागर जी ने गैलरी से गुजरते हुए जब बेटे के कमरे की लाइट जली देखी तो मायूस हो गए। वो तो ये सोचकर बाहर आए थे कि बाथरूम जाने और पानी के जग में किचन से दोबारा पानी भर कर लाने के बहाने वो गुपचुप तरीके से एक बार रसोई को भी खंगाल आयेंगे कि शायद उन्हें वहां कुछ खाने के लिए मिल जाए।लेकिन बेटा जाग रहा है। इस समय कुछ खाने के लिए लेकर बैठना भी तो ठीक नहीं होगा। वह खटर- पटर सुन कर बाहर आ ही जाएगा और अपने पापा को इस तरह खाने पर टूट पड़ता देख कर न जाने क्या सोच कर चिंतित हो जाए। आवाज़ देकर अपनी मम्मी को भी बुला ही लेगा और फिर दोनों मिल कर उनकी वो दुर्गति करेंगे कि पूछो मत।बेचारे भूखे पेट अपने ही घर में चोरों की तरह रसोई के शिकार पर निकले हुए थे।
हल्के से उजाले में दूर से दिखाई दे रहे फैले हुए रायते और पूड़ियों को ज़मीन पर पड़ा देख उनके मुंह में पानी आ रहा था। वैसे भी पेट में पानी ही पानी तो था।आख़िर उन्हें एक तरकीब सूझी। उन्होंने ढूंढ कर कहीं से वही कुल्हड़ निकाल लिया जिसमें वो शाम को रबड़ी लेकर घर में घुसे थे। थोड़ी सी रबड़ी उसमें अब भी बाक़ी थी। उन्होंने कुल्हड़ में थोड़ा सा पानी डाला और कुल्हड़ को मुंह से लगाए हुए पानी पीते हुए बेटे के कमरे में घुस गए।
बेटे ने उन्हें कुल्हड़ लिए देखा तो भटनागर जी ख़ुद ही बोल पड़े- "देख, कुल्हड़ से पानी पीने का तो मज़ा ही कुछ और है। इसमें ठंडा भी रहता है।"
इस तरह पेट में पानी के साथ- साथ कुछ रबड़ी भी पहुंचने से उन्हें कुछ राहत मिली। कुल्हड़ ख़ाली करके उन्होंने उसे ज़ोर से एक ओर फेंकते हुए ज़मीन पर गिरा दिया। वो दौड़ कर कचरा उठाने का बर्तन और वाइपर ले आए...वो बुदबुदाते जा रहे थे कि ये टुकड़े उठा दूं, किसी के पैर में न लगें।
एक तीर से दो शिकार हुए। उन्होंने गिरे हुए खाने की सफाई भी कर डाली। बेचारे!
( क्रमशः)