भिखारी की ख़ुद्दारी
भिखारी की ख़ुद्दारी
यह वाकया अभी कुछ दिन पहले का है । जाती हुई सर्दी ने फिर से हुँकार भरी थी । सड़कों पर गाड़ियों के साथ-साथ मदमस्त ठण्डी हवाएँ भी सरपट दौड़ लगा रही थीं । ठण्ड तो लगती थी पर फिर भी बाहर निकले बिना रहा नहीं जाता था । इसी तरह पिछले हफ्ते राहुल टहलने के लिए बाहर निकल गया । टहलते-टहलते वह अपने दोस्त निलेश के यहाँ जा पहुँचा । निलेश मसक्वा शहर में कई सालों से रह रहा है और यहीं एक नौकरी करता है । इसके अलावा निलेश लोहे के चने चबाने वाला कवि भी है । राहुल भी कभी-कभी कुछ किस्से-कहानियाँ लिख लेता था ।
वो निलेश से बहुत दिनों बाद मिला था । आज राहुल बिना किस वजह के निलेश के घर चला आया । बड़ा ही मदमस्त मिज़ाज़ होता है जब दो अच्छे दोस्त बेवजह मिलते हैं । ऐसे में ख़ुशी कुछ अलग ही होती है ।
निलेश राहुल को देखकर काफी ख़ुश हुआ और हो क्यों न ? आख़िर उसका सबसे अच्छा दोस्त जो मिलने आया था । दोनों ने अपने बचपन की यादों को ताज़ा करते हुए पहले की तरह इस बार भी कड़क चाय बनाई और फिर ज़मीन पर बैठकर चाय की चुस्की लेने लगे । उनके ठहाकों की आवाज़ शायद पड़ोसियों के शांतिपूर्ण जीवन में खलल डाल रही होगी । यहाँ घरों में अकसर शान्ति का माहौल रहता है लेकिन निलेश के घर पर आज का माहौल कुछ अलग था ।
उन दोनों के बीच इधर-उधर की किस्से-कहानियों का दौर चल निकला । बातों ही बातों में निलेश ने उसके साथ हाल ही में हुई एक बहुत ही दिलचस्प घटना के बारे में बताया । इस घटना को सुनकर निलेश के ने कहा कि —"अरे, भई ! इस किस्से के बारे में तो ज़रूर लिखना चाहिए।"
राहुल की हाँ में हाँ मिलते हुए निलेश ने कहा — "हाँ! हाँ! बिलकुल लिखना चाहिए।"
आख़िर ये वाकया था ही कुछ इतना दिलचस्प । इस किस्से को सुनकर निलेश को यकीन ही नहीं हो रहा था कि आज के समय में ऐसा भी हो सकता है ! शायद आप सोच रहे होंगे कि ऐसी क्या बात है जो निलेश इतना हैरान था । चलिए आपको भी इस किस्से के बारे में बताते हैं ।
ये बात मसक्वा शहर की आम घटना जैसी ही है लेकिन कुछ अलग जो इसे ख़ास और दिलचस्प बनाती है । निलेश रोज़ाना अपने काम पर सुबह-सुबह निकल जाता है । मास्को का पब्लिक ट्रांसपोर्ट बेहद उम्दा है । यहाँ भारत की तरह बस, ट्रेन या मेट्रो में धक्के नहीं लगते और न ही साधन मिलने में ज़्यादा इंतज़ार करना पड़ता है । शहर के अन्दर की बात करें तो मेट्रो केवल कुछ ही सेकंड के अन्तराल में आ जाती है । बसें और ट्रेन भी घड़ी के हाथों से हाथ मिलाकर चलती हैं । मजाल है कि एक सेकंड भी इधर से उधर हो जाए । शायद यही वजह है की जनता जनार्धन में बड़े से बड़े और छोटे से छोटे लोग अकसर अपने साधन छोड़कर सरकारी साधनों में अदब से सफ़र करते हैं ।
एक बार सुबह-सुबह दफ़्तर जाते हुए निलेश मेट्रो स्टेशन से बाहर निकल रहा था तो उसकी नज़र एक जवान लड़के और लड़की पर पड़ी । वो दोनों मेट्रो स्टेशन के दरवाज़े के पास खड़े थे । लड़के के हाथ में एक तख़्ती थी जिसपर रूसी भाषा में लिखा था
“हमारा सामान चोरी हो गया है ।
घर वापस जाने के लिए कुछ पैसों की ज़रूरत है ताकि रेल की टिकट ख़रीद पाएँ ।
कृपया हमारी मदद करें ।”
लड़की के हाथ में एक टिन का डिब्बा था जिसमें कुछ भले लोग तख़्ती को पढ़कर तो कुछ लोग बिना पढ़े चिल्लड़ या कुछ छोटे नोट डाल रहे थे । तख़्ती पर लिखी उस इबारत को पढ़कर उस लड़के और लड़की के साथ घटी घटना को जानकार निलेश थोड़ा दुखी हुआ और सोचने लगा — देखो, कितने चोर-उचक्के आ गए हैं शहर में । बेचारे बच्चों को सामान ही उड़ा ले गए । एक बार को भी नहीं सोचा कि इन बच्चों का क्या होगा ।
वैसे, निलेश अकसर लोगों की मदद करता है । चाहे हो धन से हो या मन से । निलेश ने अपनी जेब से सौ रूबल का नोट (लगभग सौ रूपए के बराबर) निकाले और लड़की के डिब्बे में डाल दिए । लड़की ने मुस्कुराकर निलेश को धन्यवाद कहा । अपने हाथों हुए इस भले काम के बाद निलेश का मन थोड़ा हल्का हुआ । इसके बाद वह अपने दफ़्तर की ओर बढ़ गया । अगले दिन सुबह निलेश जब अपने काम पर जा रहा था तो वो लड़का और लड़की बिलकुल ठीक वहीं कल वाली जगह पर खड़े थे । आज भी लड़के के हाथ में वो तख़्ती और लड़की के हाथ में टिन का डिब्बा था । निलेश ने सोचा कि लगता है इन बेचारों को कहीं दूर जाना है इसलिए इनके पास अभी टिकट के पैसे पूरे नहीं हुए । इस बार निलेश ने पाँच सौ रूबल का नोट निकालकर लड़की के डिब्बे में डाल दिया । लड़की ने फिर से मुस्कुराकर धन्यवाद कहा । निलेश के चेहरे पर एक हलकी-सी मुस्कुराहट आई और वह आगे चल पड़ा ।
शाम को घर लौटकर निलेश ने इस बात का ज़िक्र अपनी घरवाली मरीया से किया । मरिया ने जैसे ही निलेश की बात सुनी, तो वो थोड़ा नाराज़ हुई और कहा —
"तुम भी कहाँ इस तरह के लुटेरों के चक्कर में पड़ जाते हो ? तुम दुनिया-जहान की दिल खोलकर मदद करते हो, इसलिए सभी लोग तुमको लूटते रहते हैं । भीख माँगने का यह तरीका कोई नया नहीं है । बस तुम्हारी नज़र में नहीं पड़ी इस तरह की मजबूरी भरी तख़्तियाँ वरना अभी तक तो तुम कितना ही पैसा लुटा देते । ख़ैर, तुम बच्चे तो हो नहीं, तुम्हारे जैसे जी में आए, वैसा करो ।"
अगले दिन मेट्रो में सफर करते हुए निलेश मन ही मन दुआ कर रहा था की आज वो लड़का और लड़की उसे स्टेशन के बाहर न मिलें । आज वो लड़का और लड़की स्टेशन के बहार नहीं मिले । निलेश के दिल को बहुत सुकून पहुँचा, इसलिए नहीं कि उसे मदद करने में कोई परेशानी थी बल्कि इसलिए कि अब वो दोनों अपने घर लौट गए होंगे । मेट्रो स्टेशन से थोड़ी दूर चलते ही निलेश के होश उड़ गए । उसने अपने माथे पर हाथ मारा और देखा की वो दोनों मेट्रो स्टेशन से थोड़ी दूर सड़क के किनारे उसी तख़्ती और डिब्बे को हाथ में लिए खड़े हैं । आज तख़्ती लड़की के हाथ में थी और डिब्बा लड़के के हाथ में । निलेश को अपनी बीवी मरीया की बात याद आ गई और इन दोनों लुटेरों पर गुस्सा आया । पर चन्द ही पलों में निलेश का गुस्सा शान्त हो गया और वह उन दोनों की ओर बढ़ गया । उसने आज जेब सौ रूबल का नोट निकाला और उनके डिब्बे में डाल दिया । निलेश ने सोचा कि कोई बात नहीं वो कहते हैं न नेकी कर दरिया में डाल । एक-दो दिन तक यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा । छठे दिन भी निलेश उनके डिब्बे में पैसे डालने ही वाला था कि लड़की ने अपना डिब्बा पीछे खींच लिया । निलेश को ये देखकर बहुत हैरानी हुई । उसने कहा — "अरे भई मैं तुमसे पैसे ले नहीं रहा दे रहा हूँ ।" लड़के ने निलेश के हाथ जोड़े और कहा "भाई साहब, अब हम आपसे और पैसे नहीं ले सकते । आपने हमें वैसे ही बहुत दे दिया है । हमें माफ़ कीजियेगा हम और नहीं ले सकते । आप मेहरबानी करके हमारे डिब्बे में अब से पैसे मत डालियेगा । आज हमारा ठेकेदार नहीं आया वरना हम आज भी आपसे यह कह पाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते । ये हमारी मजबूरी है जो हम यहाँ खड़े हैं । आज हमारा यहाँ आख़िरी दिन है । कल से हम दूसरी जगह पर खड़े होंगे । यहाँ हमारी जगह कोई और होगा दूसरी तख़्ती के साथ । आप भले आदमी हैं । आपको भगवान बनाए रखे ।"
यह कहकर लड़की ने निलेश के कोट की जेब में एक कागज़ का लिफ़ाफ़ा रख दिया और दोनों वहाँ से चलते बने । इससे पहले की निलेश कुछ समझ पाता वो दोनों ग़ायब हो गए । निलेश को उस लड़के की बातें समझ में नहीं आईं। कुछ देर अपना माथा खुजलाने के बाद जब उसने वो लिफ़ाफ़ा निकाला तो देखकर उसके होश उड़ गए । उसमें कई पचास-पचास और सौ-सौ के नोट थे । निलेश वहीं पास में लगे बेंच पर बैठ गया । लिफ़ाफ़े के नोट गिनकर देखा तो पूरे दो हज़ार रूबल थे । नोटों के साथ लिफ़ाफ़े में एक रुक्का भी था जिसमें लिखा था । “हम जैसे लोगों की मदद न करें । यह एक बड़ा जाल है ।”
निलेश को सारी बात समझ में आ गई । उन दोनों माँगने वाले लड़के और लड़की की ख़ुद्दारी और सलाह को निलेश अकसर याद करता है । राहुल भी इस किस्से को जानकार बहुत हैरान हुआ था और कहा कि भारत में भी इस तरह के लोग होते हैं पर वहाँ तरीका अलग होता है । लेकिन ऐसी ख़ुद्दारी के बारे उसने कभी नहीं सुना ।
