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Ankita Yadav

Children Stories

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Ankita Yadav

Children Stories

बचपन की लाचारी- गरीबी की निशानी

बचपन की लाचारी- गरीबी की निशानी

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 भारत में 50 फीसदी आबादी बढ़ रही है तो गरीब और पिछड़े इलाकों से बच्चा गरीब पैदा नहीं होता कभी भी बस कुछ हालात होते हैं जो शायद एक मध्य वर्गीय परिवार में सभी के साथ ऐसा होता है उन हालातों से लड़ना सिखाना होगा लेकिन ये सब को एक साथ मिलकर करना होंगा मेरे लिखने से शायद कुछ लोग पढ़े और कुछ लोग न पढ़े कुछ ऐसे भी हैं जो लिखेंगे की आप शुरुआत क्यों नहीं करते तो मैं एक स्टूडेंट हूं अभी और आगे आने वाले दिनों में मेरी यही वजह होंगी की मैं इनको कम करू 

 3 नवंबर 2019 टोंक बस स्टॉप 

मैं अपने घर से उनियारा जा रही थी उनियारा एक गांव है जो टोंक जिले में स्थित है मैं वहां agriculture college अपनी b.sc की पढ़ाई कर थी मैं जैसे ही बस बदलने के लिए नीचे उतरी एक 4 साल के करीब लड़का मेरे पास आकर बोला दीदी खाने के लिए पैसे दो ना 2दिन से कुछ नहीं खाया वो मेरे से नही बल्कि वहां खड़े हर शख्स को बोल रहा था कोई दे रहे थे 1-2 रुपए तो कोई उस पर चिला रहे थे पता नहीं कहा कहा से आ जाते हैं पर मैने अभी तक उसको कुछ दिया नहीं था वो अभी तक बस मेरी तरफ आकार फिर बोला दीदी खाने के लिए पैसे दो ना मुझे बहुत भूख लग रही है मैने पूछा क्या खाना हैं बताओ उसने कहा आप पैसे दे दो मैं खा लूंगा और कल के लिए भी रख लूंगा लेकिन मैं भी इतनी अमीर तो नही थी की उसको कुछ ज्यादा दे सकूं इसलिए मैंने उसको 10 रूपये का नोट दिया उसने देखते कहा आप इतने मत दो 5 रुपए दे दो बहुत हैं मुझे पहले लगा ये मज़क कर रहा है फिर मैने कहा रख लो उसने कहा नहीं दीदी खाने के लिए मैं कुछ भी खा लूंगा बस पेट भर जाना चाहिए ये पैसे मै इसलिए ले रहा हूं घर जाते ही मां मारे नहीं की पूरे दिन में कीतना लिया मैने पूछा कुछ खाना हैं बताओ उसने हंसते हुए कहा आप इतने बड़े हो क्या जो पैसे देने के बाद भी खाना खिला रहे हो मैने आज आप के लिए बड़ी बन सकती हूं कुछ खिलाने के बाद उससे पहले तो शायद मै बहुत छोटी हूं इतनी बात करते करते वहा के लोग आते जाते मेरी तरफ देखते और हंसते एक दूसरे के कानों में फुसफुसाते हुए निकलते मैने उनको नज़र अंदाज़ करते हुए पास में दुकान थी वहां जाकर बोला भैया एक पानी की बोतल और बिस्किट देना उन्होंने कहा क्या मैडम आप भी किसके लिए कर रहे हैं इनका तो रोज़ का काम है और ये पैदा ही इसलिए हुए हैं की मांग के खाए मै कुछ बोलने वाली थी की मेरे पास खड़े एक 25-26 वर्षीय लड़के ने कहा फिर तो आप भी इसलिए हुए हैं कि दूसरों को बुरा सीखना तो उन्होंने कहा ऐसा नहीं है उसको मैं रोज़ देखता हूं ये हर रोज़ मांगता है मुझे पहले बुरा लगा तब तक मैं कुछ बोलती उस बच्चे ने कहा दीदी मैंने मना किया था ना आप को मुझे कुछ नहीं खाना मै बिना कुछ बोले उस बच्चे के साथ कुछ अलग जाकर बैठ गई और उससे ऐसे बात करने लगीं इन सब बातों में ध्यान नहीं दिया और बस निकल गई वैसे वहा बस की कोई दिक्कत नहीं होती पर कहते हैं ना कही आने से जायदा जल्दी कही जाने की होती है तो कुछ मेरे साथ भी ऐसा था 

वो बच्चा धीरे धीरे खा रहा था की खाते खाते रुक गया मैने पूछा क्या हुआ तो कहा आप पैसे दे दिए और फिर भी ये खिला रहे हो आप की मम्मी पापा कुछ कहेंगे या मारेंगे तो नही मैंने कहा नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं है उसने कहा अगर हो तो आप ये ले जाओ और बोलना मुझे खाना था तो मैंने ये बिस्किट ले लिया मैने कहा ऐसा नहीं है तुम खाओ वो खा कर कहता है दीदी मै भी हर रोज़ सोचता हूं आज ना मांगना नहीं पड़ेगा पर क्या करू मां कहती हैं अगर तू ये नही करेगा तो मैं क्या खाऊँगी तुझे इसलिए तो पैदा किया है ताकि मांग के दे मुझे मेरी मां वैसे बहुत अच्छी है जो मुझे आज यहां छोड़कर गई और आप मिले भगवान ऐसी मां सब को दे उस बच्चे को अपनी परवाह किए बिना वो अब भी अपनी मां के लिए सोच रहा है ये मां कैसी भी हो पर उसके लिए वो खुद से बढ़कर है 

ये लाचारी कितना कुछ करवाती है ना उम्र देखती ना बचपन ये क्या करवाती है कितना कुछ वो कहना चाहता था लेकिन नहीं कह सका क्यों की ये जो दुनिया हैं बोलने से नही पैसों से चलने लगी है उस बच्चे को जन्म दिया गलत था एक मां के लिए या उसका उस घर में जन्म लेना गलत था जो उसके साथ ये हुआ

हालात कैसे हो लड़ना सब को पड़ता है वो बच्चा हर रोज़ कितनी कुछ बातें सुनता है कितने लोगों से कोई उसको बद्दूआ देता है तो कोई उसको अभिशाप ये बचपना है जो गरीबी सीखता नहीं दिखता है और उसको जीना सिखाता है।


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