बाबा

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बाबा कस्बे की शान हैं। वे उनके ज़माने के कस्बे के पहले ग्रेजुएट हैं। बाबा ने आज़ादी के आंदोलन का ज़माना जिया है, उनके पास गाँधी जी और सुभाष बाबू की कस्बे की यात्राओं के आँखों देखे हाल के कथानक हैं। बाबा ने कस्बे के कच्चे मकानों को दोमंजिला पक्की इमारतों में बदलते और धूल भरी गलियों को पक्की सीमेंटेड सड़कों में परिवर्तित होते देखा है। पूरा कस्बा ही जैसे बाबा का अपना परिवार है। स्कूल में निबंध प्रतियोगिता हो या कस्बे के किसी युवा को बाहर पढ़ने या नौकरी पर जाना हो, किसी की शादी तय हो रही हो या कोई पारिवारिक विवाद हो, बाबा हर मसले पर निस्वार्थ भाव से सबकी सुनते हैं, अपनेपन से मशविरा देते हैं। वे अपने हर परिचित की बराबरी से चिंता करते हैं। उन्होंने दुनिया देखी है, वे जैसे चलते फिरते इनसाइक्लोपीडिया हैं। समय के साथ समन्वय बाबा की विशेषता है। वे हर पीढ़ी के साथ ऐसे घुल मिल जाते हैं मानो उनके समवयस्क हों। शायद इसीलिये बाबा "बाबा" हैं।

बाबा का एक ही बेटा है और एक ही नातिन अनु, जो उनकी हर पल की साथिन है। अनु के बचपन में बाबा स्वयं को फिर से जीते हुए लगते हैं। वे और अनु एक दूसरे को बेहद बेहद प्यार करते हैं शायद अनु के बाबा बनने के बाद से ही वे कस्बे में हर एक के बाबा बन गये हैं। बाबा स्त्री शिक्षा के प्रबल समर्थक हैं। बाबा को घर के सामने चौराहे के किनारे लगे बरगद से बहुत लगाव है। लगता है बरगद बाबा का समकालीन है। बरगद और बाबा अनेक घटनाओं के समानांतर साक्ष्य हैं। दोनों में कई अद्भुत साम्य हैं, अंतर केवल इतना है कि एक मौन की भाषा बोलता है दूसरा मुखर है। बरगद पर ढेरों पक्षियों का आश्रय है, प्रत्यक्ष या परोक्ष बाबा पर भी गाँव के नेतृत्व और अनेकानेक ढ़ंग से जैसे कस्बा ही आश्रित है। अनु की दादी के दुखद अनायास देहांत के बाद, जब से बाबा ने दाढ़ी बनाना छोड़ दिया है, उनकी श्वेत लंबी दाढ़ी भी मानो बरगद की लम्बी हवा में झूलती जड़ों से साम्य उत्पन्न करती हैं, जो चौराहे पर एक दूसरे को काटती दोनों सड़कों पर राहगीरों के सिरों को स्पर्श करने लगी हैं। बच्चे इन जड़ों को पकड़कर झूला झूलते हैं। बरगद कस्बे का आस्था केंद्र बन चुका है। उसके नीचे एक छोटा सा शिवालय है। लोग सुबह शिव पिंडी पर जल चढ़ाते सहज ही देखे जा सकते हैं। तपती गर्मियों मे बरगदाही के त्यौहार पर स्त्रियाँ बरगद के फेरे लगाकर पति की लम्बी उम्र के लिये पूजन करती हैं, बरगद के तने पर बंधा कच्चा सूत सालों साल स्त्रियों की उन भावना पूर्ण परिक्रमाओ का उद्घोष करता नहीं थकता। ग्राम पंचायत ने बरगद के नीचे एक चबूतरा बनवा दिया है, जहाँ रात में पैट्रोमैक्स के प्रकाश में गांव की मानस मण्डली सस्वर हारमोनियम और झाँजर की धुन के साथ "दीन दयाल विरद संभारी, हरहु नाथ मम संकट भारी" की टेक के साथ मानस पाठ करती है। बाबा बताते हैं कि इसी बरगद के नीचे अंग्रेजो ने आजादी की लड़ाई में शामिल होने वाले गाँव के युवाओं को सरे आम पिटाई करके डराने की असफल कोशिशें की थीं। अब जब इसी बरगद की छाया में ग्राम सभा होती है, विकास की बातें होती हैं तो बाबा की छाती गर्व से चौड़ी हो जाती है।

अनु, बाबा की नातिन पढ़ने में कुशाग्र है। बाबा के पल पल के साथ ने उसे सर्वांगीण विकास की परवरिश दी है। कस्बे के स्कूल से अव्वल दर्जे में दसवी पास करने के बाद अब वह शहर जाकर पढ़ना चाहती है। पर इसके लिये जरूरी हो गया है परिवार का कस्बे से शहर को विस्थापन। क्योंकि बाबा की ढ़ृड़ प्रतिज्ञ अनु ने दो टूक घोषणा कर दी है कि वह तभी शहर पढ़ने जायेगी जब बाबा भी साथ चलेंगे। बाबा किंकर्तव्यविमूढ़, पसोपेश में हैं।

विकास के क्रम में कस्बे से होकर निकलने वाली सड़क को नेशनल हाईवे घोषित कर दिया गया है। सड़क के दोनों ओर भवनों के सामने के हिस्से शासन ने अधिगृहित कर लिये हैं बुल्डोजर चल रहा है, सड़क चौड़ी हो रही है। बरगद इस विकास में आड़े आ रहा है। वह नई चौड़ी सड़क के बीचों बीच पड़ रहा है। ठेकेदार बरगद को उखाड़ फेंकना चाहता है। बाबा ने शायद पहली बार स्पष्ट उग्र प्रतिरोध जाहिर कर दिया है, कलेक्टर साहब को लिखित रूप से बता दिया गया है कि बरगद नहीं कटेगा। सड़क का मार्ग बदलना हो तो बदल लें। कस्बे का जन समूह एकमतेन बाबा के साथ है। युवकों ने सड़क जाम करने की घोषणा कर दी है। नेताजी भी जाने कहाँ से अपने चेले चपाटों के साथ सडान गाड़ी में जनमत को समझते हुए मौके का लाभ उठाने चले आये हैं और बरगद की रक्षा के लिये भीड़ के सम्मुख अपनी प्रतिबद्धता जता रहे हैं।

गतिरोध को हल करने अंततोगत्वा युवा जिलाधीश ने युक्ति ढूँढ़ निकाली, उन्होंने कृषि विषेशज्ञों के दल को बुलावा भेजा है, विषेशज्ञों ने बरगद को समूल निकालकर, कस्बे में ही मंदिर के किनारे खाली पड़े मैदान में पुनर्स्थापित करने की योजना प्रस्तुत की। जिसे बाबा के संतुष्ट होने पर सबने स्वीकार कर लिया। क्रेन जैसी बड़ी बड़ी मशीने आईं, बरगद के चारों ओर गहरी खुदाई की गई और फिर रातों रात बरगद को विस्थापित करके नई नियत की गई जगह पर पुनर्स्थापित कर दिया गया। सुबह के सूरज के साथ बरगद पर बसेरा लेने वाले पंछी पुराने स्थान के पास आसमान में चक्कर लगाते नजर आ रहे थे। लोग खुश थे कि बरगद की हत्या नहीं हुई, उसे प्रतिस्थापित करने की योजना ही नहीं बनाई गई उसे क्रियांवित भी कर दिखाया सबने। नये स्थान पर पहले से किये गये बड़े गहरे गड्ढ़े में बरगद का वृक्ष पुनः रोपा गया है। लोगों के लिये यह सब एक अजूबा था। अखबारों में सुर्खियाँ थीं। सबको संशय था कि बरगद फिर से लग पायेगा या नहीं? बरगद के नये स्थान पर पक्का चबूतरा बना दिया गया है, जल्दी ही बरगद ने फिर से नई जगह पर जड़ें जमा लीं, उसकी हरियाली से बाबा की आँखों में अश्रु जल छलक आये। बरगद ने विस्थापन स्वीकार कर लिया था।

बाबा ने भी अनु के आग्रह को मान लिया था और अनु की पढ़ाई के लिये आज बाबा सपरिवार सामान सहित शहर की ओर जा रहे थे। अनु दौड़ दौड़ कर ट्रक में घर का सारा सामान लोड करवा रही थी, सारे गाँव के लोग बाबा से मिलने गर पर जुट आये थे, पर बाबा का ध्यान कहीं और था। बाबा ने देखा कि बरगद में नई कोंपलें फूट रही थीं। बाबा मन ही मन मुस्करा रहे थे और विकास के लिये अपने परिवार के प्रतिस्थापन के लिये तैयार थे।

 


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