Chandresh Kumar Chhatlani

Others

4  

Chandresh Kumar Chhatlani

Others

अस्पृश्य प्रकृति

अस्पृश्य प्रकृति

2 mins
387


"जय श्री देव..." घर के मुख्य दरवाज़े के बाहर से एक स्त्री स्वर गूंजा।

जाना-पहचाना स्वर सुन कर अंदर बैठी 12-13 वर्षीय लड़की एक बार तो कुर्सी से उछल कर खड़ीं हुई लेकिन कुछ सोचती हुई फिर बैठ गयी।

कुछ क्षणों बाद वही स्वर फिर गूंजा। अब वह लड़की उठकर बाहर चली गयी। लड़की को देखकर बाहर खड़ी महिला ने पुनः किन्तु पहले से धीमे स्वर में “जय श्री देव” बोलते हुए देवता की मूर्ती रखे एक बर्तन को उसके सामने कर दिया।

बर्तन देखते ही वह लड़की एक कदम पीछे हट गयी और बोली, "आंटीजी आज नहीं दूँगी, आप अगले हफ्ते आना।"

"क्यूँ बिटिया?" महिला ने यह बात सुनकर आश्चर्य से पूछा।

उस लड़की ने कहा "कुछ नहीं आंटी..."

उसी समय उस लड़की की माँ भी बाहर आ गयी।

माँ ने उस महिला के बर्तन में एक सिक्का डाला, उसमें रखी मूर्ती को हाथ जोड़े और फिर फुसफुसाते हुए बोली, "बिटिया पीरियड्स में है, इसलिए भगवान के कार्यों में स्पर्श नहीं करना है।"

वह महिला चौंकी और उसने भी धीमे स्वर में कहा, "हम और हमारी जिंदगी, सब कुछ तो इसी का बनाया हुआ है... फिर भी?"

"क्या करें, रीति-रिवाज हैं... बच्ची का मामला है ना!" माँ ने फीकी सी मुस्कराहट के साथ उत्तर दिया।

उस महिला ने लड़की की माँ की आँखों में झांकते हुए कहा, “मैनें बहुत कोशिश की थी मेहनत कर के घर चलाने की, लेकिन गरीब-अनपढ़ विधवा को अंत में सिर्फ इन्हीं भगवान का सहारा मिला।”

और वह बर्तन में रखी मूर्ती को देखकर बोली, "देव मुझे तो माफ़ कर दोगे? आपको छू रही हूँ... आज मैं भी तो... लेकिन बच्चों का मामला है ना!"


Rate this content
Log in