असली हीरे....!!

असली हीरे....!!

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जी...। बेटी के एजुकेशन लोन के लिए फार्म भर कर लाया था...। यदि आप थोड़ा देख लेते तो...।  ...मैने कहा ना... आप सीट पर बैठिए, मैं अभी आता हूं। महिला सहकर्मी से गप्पें मारने में मशगूल बैंक के लोन मैनेजर  ने लगातार तीसरी बार यही बात कही तो मेरा धैर्य जवाब देने को आया। मुझे लगा मैं फट पड़ूंगा।

अजीब आदमी है। ड्यूटी के टाइम में सहकर्मी से पता नहीं क्या बातें कर रहा है। मध्य आयु वाला सांवले रंग का यह आदमी तो बिल्कुल खडूस लगता है। पहली मुलाकात में यह हाल है तो पता नहीं लोन पास करने तक कितने पापड़ बेलवाएगा। मेरी अंतर आत्मा मुझे लगातार उससे झगड़ पड़ने को उकसा रही थी। मैं मन ही मन बुदबुदा रहा था... जल्द बातें बंद कर सीट पर नहीं आया, तो मैं उससे जरूर लड़ पड़ूंगा। यदि ढिठाई दिखाई तो ऊपर तक शिकायत करने से भी नहीं चूकूंगा। समझता क्या है अपने आपको...। लेकिन एकमात्र विवेक ही मेरे गुस्से का लगाम खींचे जा रहा था। नहीं... यह ठीक नहीं होगा। गरज अपनी है...। आखिर बेटी के भविष्य का सवाल है।

लोन पास नहीं हुआ तो कहां से उसे पढ़ा पाऊंगा...। खैर, अनपेक्षित देरी के बाद लोन मैनेजर अपनी सीट पर आया। तो मैने बुझे मन से लोन फार्म उसके सामने रख दिया। मन में तरह - तरह की आशंकाएं उठ रही थी। आदमी ठीक नहीं लगता, पता नहीं क्या - क्या गुल खिलाएगा। उधर लोन मैनेजर फार्म में अंकित विवरण पर नजरें घूमा रहा था। हुंह...। आय बेहद सीमित होने के बावजूद आप बेटी को उच्च शिक्षा दिला रहे हैं, यह अच्छी बात है।

उसके ऐसा कहने पर मेरा माथा फिर ठनका। मन में विचार उठा। ... लगता है एक नंबर का घूसखोर आदमी है...। घूस मांगने की पृष्ठभूमि तैयार कर रहा है। इसी लिए इतनी सहानुभूति दिखा रहा है। फिर पते पर नजर पड़ते ही लोन मैनेजर चौंक उठा...। अरे ... आप भगवानपुर में रहते हैं। वहीं तो मैं भी रहता हूं। आपका घर कहां है। उसके ऐसा कहने पर मुझे कुछ राहत मिली। लगा कि यदि मोहल्ले में रहता होगा, तो शायद लोन पास करवाने में सुविधा हो...।

फिर बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि आदमी इतना नीरस और बुरा भी नहीं है। हालांकि अनुभव मन से चुगली करता रहा कि ज्यादातर घूसखोर ऐसे ही होते हैं। मिलनसारिता दिखा कर लोगों को अपने चंगुल में फंसाते हैं। लेकिन क्या आश्चर्य कि देखते ही देखते उन्होंने लोन पास कर दिया। आगे डिमांड लिस्ट लेकर जाने पर देखते ही देखते लोन मैनेजर कहता... अरे भाई साहब , आपने यहां आने की तकलीफ क्यों की। बच्चों से घर पर भिजवा देते। मैं ड्राफ्ट घर जाते समय देता जाता। फिर पूछता... । ... तो बताइए, डीडी कब लेना है। फिर खुद ही सलाह देते...। जल्दी लेकर क्या कीजिएगा। जमा करने की आखिरी तारीख से दो - चार दिन पहले लीजिए। बेकार में क्यों ब्याज भरिएगा...।

इससे मुझे फिर आशंका होने लगी कि इतनी भलमनसाहत दिखा रहा है तो जरूर आगे चल कर कुछ मांगेगा। लेकिन मेरी आशंका निर्मूल ही सिद्ध हुई। वे हर बार ड्राफ्ट  बिल्कुल समय से मेरे घर पर देते हुए अपने डेरे पर जाते।

कई बार के अनुभव के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि लोन मैनेजर के डील – डौल से मैने अपने मन में जो धारणा उसके प्रति बनाई, वह पूरी तरह से गलत थी। उन्होंने कभी मुझसे कोई अनुचित मांग नहीं की। चूंकि लोन मैनेजर घर - परिवार से दूर बिल्कुल अकेले रहते थे, लिहाजा मैने कई बार भोजन या अन्य किसी बहाने सेवा का मौका देने का प्रस्ताव उनके समक्ष रखा। लेकिन हर बार उन्होंने हंस कर टाल दिया।

आखिरकार नए साल के आगमन पर मैने उन्हें बधाई देने के बहाने मोबाइल पर उनका नंबर मिलाया तो दूसरी तरफ से लगातार ... अब इस नंबर का अस्तित्व नहीं है... की रट सुनाई दी। इससे मेरा माथा ठनका। बैंक जाने पर भी वे सीट पर नजर नहीं आए। पता करने पर मालूम हुआ कि उनका तबादला हो चुका है। इससे अफसोस के साथ मुझे उन पर फिर वैसा ही गुस्सा आया, जैसा पहली मुलाकात में आया था। अरे उनके मोबाइल में मेरा नंबर फीड था...। वे मेरे घर के पास ही रहते थे। आखिर जाने से पहले एक बार मिल तो लेते...।  अलविदा तो कह सकते थे...।

फिर मन में विचार आया...। असली हीरे शायद ऐसे ही होते हैं...। वे दिखने में भले आकर्षक व सज्जन नजर न आएं, लेकिन होते बड़े ही कीमती और नेक हैं...।


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