Swapnil Srivastava (Ishhoo)

Children Stories Inspirational

4  

Swapnil Srivastava (Ishhoo)

Children Stories Inspirational

अरगनी के यार

अरगनी के यार

12 mins
155


पीहू कान पकड़े दीवार के पास खड़ी जोर- जोर से टेसुएं बहा रही थी, उधर मम्मी का गुस्सा था की शांत ही नहीं हो रहा था। होता भी कैसे, सात सौ रुपये की लिपस्टिक पूरी सत्यानाश जो हो चुकी थी। वैसे ये वाकया कोई पहला नहीं था, मम्मी की मेकअप किट पर भरपूर नज़र रहती थी पीहू की, ज़रा सी चूक हो तो क्या काज़ल, क्या लिपस्टिक। पांच साल की पीहू ने मानों मेकअप का पूरा कोर्स कर रखा हो। करे भी क्या बेचारी, अकेली जान, स्कूल के दोस्त स्कूल में और मोहल्ले के दोस्त पार्क में, बाकी सारा दिन बस वो और उसके खिलौने। खिलौनों का तो खासा शौक था, बचपन से ले कर अब तक जितने भी खिलौने मिले सभी इकठ्ठा कर रखे थे। हालत यह थी की, अलमारी खोलो तो तीन चार तो ऐसे ही गिर पड़ते थे।

वैसे तो पीहू को सारे ही खिलौने पसंद थे, पर खासा लगाव था सॉफ्ट टॉय से, रुई से मुलायम, मखमल से नरम सॉफ्ट टॉय। हर जन्मदिन, हर त्योहार एक ही फ़रियाद, सॉफ्ट टॉय चाहिए। टेडी बेयर, डॉल, बन्दर, कुत्ता, हाथी, खरगोश, पूरी जमात थी सॉफ्ट टॉय की, वो भी एक नहीं कई। बस फिर क्या पीहू, उसके सॉफ्ट टॉय और मम्मी की मेकअप किट, जब भी मम्मी चूकती, लिपस्टिक गायब और उसका रंग कभी हाथी पर तो कभी बन्दर पर। अब तो हालत यह थी की खिलौने भी अपनी असली शक्ल भूल चुके थे, बन्दर भी बंदरिया लगता था और टेडी बेयर भी। धूल और मेकअप लगते लगभग सभी खिलौने सुस्त पड़ चुके थे, न रौनक थी, न वो पहले जैसी मुस्कान, फिर भी पीहू का प्यार कम नहीं हुआ था। जितना ज्यादा प्यार उतना ज्यादा रंग रोगन।

आज की डांट उसी कड़ी का ताज़ा हिस्सा थी। रोज सी डपट होती तो पीहू एक कान से सुनती और दुसरे से निकाल देती, पर गंगा जमुना बहाने का कारण था मम्मी की दहाड़, कि, “आज तुम्हारे सारे खिलौने रद्दी वाले को दे देंगे। पूरे खिलौनों का सत्यानाश कर दिया है, और मेरी इतनी महंगी लिपस्टिक पूरी बर्बाद कर दी।”

पीहू के खिलौने कोई उससे अलग कर दे ऐसा हो सकता था भला, पर आज का गुस्सा अलग था, मम्मी ने बोल दिया था। पीहू ने उम्मीद भरी आँखों से पापा को देखा पर बोली कुछ नहीं। पापा भी चुप रहे, लड़ाई बेटी के फेवरेट खिलौने और मम्मी की फेवरेट लिपस्टिक के बीच थी, फ़िलहाल के लिए चुप रहना ही सबसे बेहतरीन हल था। तीनों ने चुपचाप खाना खाया और अपने- अपने रास्ते चल दिए, मम्मी किचन की ओर, पापा बालकनी की ओर और पीहू बोझिल क़दमों से अपने कमरे की ओर। बेचारी रोता सा चेहरा लिए अपने खिलौनों को ऐसे देख रही थी, मानो कह रही हो, “कल सन्डे है, सुबह ही रद्दीवाला आएगा, सारे खिलौने ले जाएगा”। खिलौने थोड़े तो परेशान थे पर धूल, मिटटी और मेकअप के रंगों में इतना सराबोर थे कि दिमाग काम नहीं कर रहा था, बोले कुछ नहीं, चुपचाप उदास पड़े रहे।

पीहू कुछ सोच कर उठी और दबे पाँव बालकनी पहुँच गयी, बखूबी जानती थी काम कैसे मनवाया जाता है, पापा नाराज़ तो मम्मी को पटा लो और मम्मी नाराज़ तो पापा को, मतलब तो काम होने से है। धीरे से पापा का कुर्ता खींचते हुए बोली, “पापा, मम्मी को बोलो न प्लीज, मेरे खिलौने…..” पापा पूरी कहानी जानते थे सो मन ही मन मुस्कराए पर चेहरे पर मुस्कराहट न आने दी, चिंता वाली लकीरें लाते हुए बोले, “बेटा, आपने अपने खिलौनों को देखा है? वो आपके कमरे में जो अलबम रखा है ज़रा देखो, पहले कैसे दिखते थे और अब……। ऊपर से मम्मी की सारी मेकअप किट…. जानती हो मम्मी कितनी गुस्सा हैं…।” पीहू के पास दूसरा कोई उपाय नहीं था, जानती थी बस हाँ में हाँ मिलते रहो, काम अपने आप बन जाएगा। बस रुआंसे मुह से सर ऊपर नीचे हिलती रही और, “हाँ पापा, यस पापा” करती रही।

मम्मी का गुस्सा अब थोड़ा शांत था, वह चुपचाप बालकनी के दरवाज़े पर टिकी सारा कार्यक्रम देख रहीं थी, जानती थी कि सब नाटक है, पर अन्दर से पिघल चुकी थी। पापा की तरह सख्त चेहरा बनाते हुई आई और बोली, “कुछ नहीं, कोई एक्सक्यूज़ नहीं, अब सारे खिलौने कबाड़ी को जाएंगे”, पर कहते- कहते चेहरे का भाव उतना सख्त न रख पाई, और आँखों में हल्की मुस्कान दिखने लगी।

पीहू जानती थी यही समय है ब्रम्हास्त्र चलाने का….., दो आंसू टपकाए, ठोड़ी को सख्त किया, होंठों को रुआंसी मुद्रा में लाई और बुदबुदाते हुए बोली, “मम्मी प्लीज, आज के बाद फिर कभी नहीं छुऊँगी, प्रॉमिस….., पापा प्लीज, मम्मी को बोलो ना…..”

पापा ने मम्मी को देखा और साधारण चेहरा रखते हुए बोले, “भई, मान जाओ, अब पीहू दोबारा ऐसा नहीं करेगी”। पीहू जानती थी, पापा की बात के वज़न में अपनी बात का वज़न जोड़ दें तो काम बनता ही बनता था। जोर से बोली, “मम्मी प्रॉमिस!, आज से कभी भी आप की लिपस्टिक नहीं छुऊँगी। पक्का प्रॉमिस।” मम्मी थोड़ा सख्त चेहरा बनाते हुए बोलीं, “और एक बात, आज के बाद किसी भी खिलौने का मेकअप नहीं करोगी, न लिपस्टिक, न काज़ल, न कलर, बोलो प्रॉमिस?” पीहू जानती थी, खिलौनों को बचाना है तो हाँ बोलना ही होगा। पहले भी कितनी ही बार हाँ बोल कर साफ़ बच निकली थी। बोली, “हाँ मम्मी, प्रॉमिस! आज के बाद किसी भी खिलौने का मेकअप नहीं करुँगी।”

यह क्या ? पीहू के शब्द जैसे ही निकले, अधमरे से खिलौनों में मानो हल्की जी जान लौटी हो। “क्या! आज के बाद हमारी रंगाई पोताई बंद…” बन्दर बोला। तभी हाथी बोला, “तुम्हे क्या, तुम तो फिर भी बन्दर से बंदरिया हुए हो, हमे देखो अच्छे खासे हाथी हो रंग पोत कर बंदरिया बना दिया”। बन्दर को गुस्सा तो आया पर जानता था, भले खिलौना ही हो पर हाथी से भिड़ना भारी पड़ सकता है। बोला कुछ नहीं बस मुहं फेर कर चुपचाप बैठ गया।

उधर पापा ने माहौल शांत होता देख कहा, “पीहू कल सन्डे है, क्यों न हम सब मिल कर तुम्हारे खिलौनों को नहला धुला कर साफ़ कर दें।” बेचारी मन ही मन सोच रही थी, अच्छा खासा मेकअप ख़राब हो जाएगा, इतनी सारी मेहनत सब बर्बाद जाएगी। पर खिलौनों को रद्दीवाले से बचाना है तो हाँ तो बोलना ही होगा। “ठीक है पापा, कल हम सब मिल कर इन सब खिलौनों को नहलाएंगे।” इतना बोल कर पीहू अपने कमरे को बढ़ चली। 

उधर कमरे में सुगबुगाहट तेज़ हो गयी थी, “क्या वाकई हम सब पहले वाला चेहरा देख पाएंगे?, कैसे नहलायेंगे हमें?, कहीं ठण्ड तो नहीं लग जाएगी?” हर कोई दबी आवाज़ में यही सवाल पूछ रहा था।

खरगोश की आँख


सुबह नींद खुली तो अलग ही उत्साह था, पीहू अपनी मम्मी के पास पहुँची और बोली, “मम्मी, हम खिलौनों को कब नहलायेंगे?” मम्मी बोलीं, “पहले ब्रश, फिर दूध और ब्रेकफ़ास्ट उसके बाद, चलो पहले ब्रश कर लो।” पीहू से फिर भी न रहा गया, ब्रश पर पेस्ट लगवाने के बहाने पापा के पास आई और उठाते हुए बोली, “पापा गुड-मार्निंग, उठिए, सुबह हो गयी है….” पापा ने हलके से आँख खोली और प्यार से देखते हुए बोले, “गुड-मार्निंग पीहू जी, बोलिए क्या बात है? आज सुबह- सुबह पापा की याद कैसे?” जानते थे ज़रूर कोई काम होगा।

पीहू सम्हलते हुए बोली, “पापा ब्रश में पेस्ट लगा दीजिये”, पापा जानते थे बात कुछ और है, ब्रश में पेस्ट लगाते हुए मुस्कराए और उसकी ओर देखते हुए दोनों भहों को दो बार ऊपर को उठाया, मानो पूछ रहे हों, “बताओ बताओ, क्या बात है?” पीहू जानती थी, पापा ने सही अंदाज़ा लगाया था, सो बोली, “पापा खिलौनों को कैसे नहलाएंगे, शावर से या टब में? पापा, साबुन लगायेंगे या शैम्पू? उनकी आँखों में साबुन तो नहीं लगेगा?” पापा मुस्कुराये और बोले, “वेट करो, सरप्राइज है….पहले ब्रेकफास्ट करो, फिर बताएंगे।” ऐसे ही कुछ सवाल खिलौनों के मन में भी चल रहे थे, बेचारे अलमारी में कान लगाये सुनने की कोशिश कर रहे थे, पर हाथ कुछ न आया, सारे के सारे मायूस।

समय काटना मुश्किल हो रहा था, सब इस ही इंतजार में थे कि कब इनका दैनिक काम ख़तम हो और कब हमारे नहाने की बारी आए। मम्मी का नाश्ता, पापा की शेव, पीहू का ब्रश करना….समय जैसे धीमा हो गया था। बड़ी मुश्किल से ब्रेकफ़ास्ट ख़तम हुआ और सारे खिलौने अगली आवाज़ सुनने का इंतज़ार करने लगे। एक- एक सेकेंड मानो दस- दस मिनट का हो जैसे। तभी मम्मी की आवाज़ आई, “पीहू अपने सॉफ्ट-टॉय ले आओ यहाँ…”। पीहू भागी, सारे के सारे खिलौने चौकन्ने, अब क्या होगा, ख़ुशी और उत्साह का अनोखा सा मेल था मानो।

पीहू ने सभी खिलौनों को बास्केट में डाला, और पहुंच गयी बाथरूम, यह क्या मम्मी तो बाथरूम में नही थीं। पीहू चिल्लाई, “मम्मी कहाँ हो?”, “आँगन में, ज़ल्दी आओ” मम्मी बोलीं। “आँगन में? आंगन में कैसे नह्लाएंगी?” यही एक सवाल बन्दर, भालू, कुत्ता, खरगोश, गुड़िया और पीहू सबको आ रहा था। पीहू बास्केट उठाए आँगन में पहुंची तो देखा मम्मी वाशिंग मशीन में पाउडर डाल रहीं थी। “मम्मी, खिलौनों को वाशिंग मशीन में नह्लाओगी क्या?” पीहू ने ज़ोर देते हुए पूछा। “वाशिंग मशीन!!” बन्दर की तो जैसे जान ही हलक में आ गयी। “अरे वाशिंग मशीन में कौन नहाता है भला?” बड़ी मुश्किल से सूखते गले से बोला, पर ज़वाब किसी के पास नहीं था सभी अचंभित थे।

“हाँ बेटा, ऐसे खिलौनों को वाशिंग मशीन में ही धोते हैं, देखो उनपर टैग भी लगा होता है, वर्ना इतनी सारी धूल और यह जो मेकअप तुमने पोता है, छूटेगा कैसे?” प्यार से मम्मी ने समझाया और खिलौनों को एक- एक कर वाशिंग मशीन में डालने लगीं।

पहला छपाका तो मज़ेदार था, मानो लग रहा हो किसी पेड़ से नदी में कूद रहे हों, पर जानते थे असली कारनामा तो अभी बाकी था, अक्सर बगल वाली अलमारी में कपड़ो को आपस में बातें करते सुना था, फ्रेश तो हो जाते थे पर पहले कसरत बहुत करनी पड़ती थी। खैर सभी एक एक कर बुलबुले वाले पानी में कूदा दिए गए। पीहू का चेहरा देखने लायक था, समझ ही नहीं आ रहा था, अब क्या होगा, बस वाशिंग मशीन के आगे बैठी अपने खिलौनों को देख रही थी। ढक्कन बंद होते ही सबकी धड़कने बढ़ गई, अब क्या होगा? इसके पहले की कोई कुछ बोलता, चकरी घूमना चालू। शुरू- शुरू में तो थोड़ा डर लगा, फिर मज़ा आने लगा, शरीर की पूरी मैल धीरे- धीरे हट रही थी और गाढ़े लिपस्टिक के दाग भी। ऐसा लग रहा था मानो किसी वाटर पार्क में झूला झूल रहे हों। दस मिनट का राउंड फिर एक ब्रेक फिर एक और राउंड। “वाह मज़ा आ गया”, बन्दर और खरगोश एक साथ बोले। गुड़िया, हाथी, टेडी बेयर सभी खुश थे और एक दुसरे पर पानी के छपाके मार रहे थे।

इधर पीहू की बोरियत बढ़ रही थी, चाह रही थी कब उसके खिलौने बहार निकलें और कब वह देखे उनकी हालत। इंतज़ार ख़त्म हुआ, मम्मी बोलीं, “बस दो मिनट और फिर इन्हें ड्रायर में डाल कर सुखाएंगे।” पीहू बोली कुछ भी नहीं पर उसकी उत्सुकता ज़रूर बढ़ गई।

मम्मी ने एक- एक कर सभी खिलौनों को निकला और ड्रायर बकेट में डाल दिया। सभी खिलौने खिल उठे थे, सारी धूल, सारा मेकअप अब उतर गया था, फिर भी थोड़ी चिपचिपाहट हो रही थी जो अन्दर एक उलझन पैदा कर रही थी, ऐसा लग रहा था एक दो डुबकी ठन्डे पानी में लगा लें तो तारो ताज़ा हो जाएं। पर यह क्या मम्मी ने दूसरी बकेट में डाल दिया था। बेचारे इससे पहले कुछ समझते ढक्कन दोबारा बंद और पानी की बरसात शुरू। वाह मज़ा आ गया, सभी खुश थे और ताज़ा महसूस कर रहे थे।

वोओओओओ……., ये क्या ….इतना तेज़ चक्कर, इससे पहले कि कुछ समझ पाते, पूरा दिमाग घूम गया, कौन कहाँ है और किसके सर पर चढ़ा है पता ही नहीं चल रहा था। दो पांच मिनट में तो पूरा शरीर निचुड़ गया।

अरे वाह, वापस वही ताज़गी, क्या खुशबू, क्या रंगत….” टेडी बेयर बोला। बन्दर लपक कर बोला, “सही बोले दोस्त, लगता है मैं वापस जवान हो गया हूँ, ऐसा लगता है अभी अभी कारखाने से निकला हूँ।”

सभी चहक रहे थे पर खरगोश थोड़ा घबराया हुआ सा था, चक्कर खाते- खाते उसकी एक आँख लटक गयी थी। बन्दर हँसते हुए बोला, “अरे यह क्या हाल बना लिया, एक आँख के खरगोश।”

मम्मी ने पापा को बुलाया और बोलीं, “इन्हें छत पर अरगनी पर सुखा दीजिये, धूप तेज़ है, ज़ल्द ही सूख जाएंगे।” पापा ने बकेट उठाई और पहुंच गए छत पर, पीहू भी पीछे- पीछे पहुंच गई, चेहरे की मुस्कान कुछ अलग ही थी, सारे खिलौने नए जो हो गए थे। पापा एक- एक कर सारे खिलौने अरगनी पर डालने लगे, कोई कान से लटका था तो कोई पूँछ से, पर जैसे ही खरगोश को अरगनी पर डालने के लिए झटका, उसकी एक आँख निकली और जा गिरी कूलर के नीचे। तभी पीहू की नज़र खरगोश पर पड़ी और चौंकते हुए बोली, “पापा, खरगोश की आँख?”, पापा ने देखा फिर बोले, “शायद वाशिंग मशीन में गिर गयी होगी”, पीहू भागते हुए नीचे आई और मम्मी से बोली, “मम्मी खरगोश की एक आँख खो गयी है, वाशिंग मशीन में देखो ना।” मम्मी ने देखा पर आँख न मिली, पीहू भागते हुए छत पर गयी और बेतहाशा इधर उधर ढूँढने लगी।

मामला संगीन हो गया था, बन्दर भी अब चुप था और चाह रहा था कैसे भी कर खरगोश की आँख मिल जाए। सभी दोस्त अरगनी पर लटके हुए चारो ओर देखने लगे, तभी जिन सूखे हुए कपड़ो को पापा उतार चुके थे, उनमें से रूमाल बोली, “वो देखो, तुम्हारी आँख, कूलर के नीचे है।”, सभी की निगाह कूलर के नीचे पहुंची, अरे वाह, आँख तो दिख गयी, पर करें क्या? कैसे बताएं? शाम होते ही हवा तेज़ हो पड़ेगी, फिर आँख इधर उधर हो गयी तो, और कही बारिश हो गयी तो, गए काम से।

तभी रूमाल के साथ ही पापा के हाथ में पड़ी स्कूल शर्ट बोली, “एक तरीका है, वह बगल वाली छत पर रोहन भईया खेल रहा है, अगर हम फुटबाल और जूते से बात करके देखे, शायद वो हमारी कुछ मदद कर सकें, वर्ना एक बार हम नीचे गए तो शायद तीन चार दिन बाद ही छत पर आना होगा, तब तक खरगोश की आँख न जाने कहाँ होगी।

समय कम था, जल्द ही कुछ करना था, बन्दर ने चिल्लाते हुए रोहन के जूते और फुटबाल को सारी बात बताई। जूता और फुटबाल हल्का सा मुस्कुराये और बोले, “यारों के लिए कुछ भी….” उधर रोहन ने फुटबाल को किक करने के लिए पैर बढ़ाया, जूते ने हल्का सा एंगल बदला, फुटबाल ने तेज़ छलांग लगाई और सीधे टकराई पीहू के पापा के हाथ से, हड़बड़ाहट में सारे कपड़े छटक कर छूट गए, रूमाल ने जोर की उछाला भरी और जा गिरी कूलर के नीचे।

इधर पापा ने रोहन को डांटना शुरू किया, रोहन को तो समझ ही नहीं आ रहा था कि, धीरे से मारी हुई किक से फुटबाल छत फांद कर कैसे पहुँच गई। पीहू चुपचाप कपड़े बटोर रही थी, जैसे ही उसने कूलर के पास से रूमाल उठाई, जोर से चिल्लाते हुए बोली, “पापा खरगोश की आँख मिल गई।” पापा का गुस्सा थोड़ा कम हुआ, पीहू से बोले, “जाओ मम्मी से बोलो इन कपड़ों को एक बार फिर से निथार दें, बोलना छत पर गिर गए थे।” पीहू भाग कर गयी और बेहद खुश अंदाज़ में बोली, “मम्मी खरगोश की आँख मिल गई, और पापा बोल रहे है इन कपड़ो को फिर से धो दो, गिर गए थे।”

आज छत का माहौल कुछ अलग ही था, हवा थोड़ी तेज़ हुई तो, खरगोश, बन्दर, टेडी बेयर, सभी जोर जोर से हिल रहे थे, मानों रूमाल और शर्ट को छूना चाहते हों, रूमाल और शर्ट भी कुछ ख़ास महसूस कर रहे थे। उधर अगली छत पर पड़े जूते और फुटबाल भी बेहद खुश थे, अरगनी पर उन्हें नए यार जो मिल गए थे।                                         



Rate this content
Log in