अजीब दासताँ है ये

अजीब दासताँ है ये

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आज माँ को गए पूरे एक साल हो गए हैं।मुझे आज भी याद है वो 30 घण्टे जो माँ ने हमारे साथ बिताए थे,आज भी वो 30 घंटे की एक एक मिनट की घटना मेरे आँखों के सामने साफ साफ तैरती रहती है।

नवम्बर का महीना था,हल्के ठंड की शुरूआत हो चुकी थी।5 बज रहे थे,रोज की तरह मैं ट्यूशन से घर लौटी थी,घर पर माँ नही थी,दादी ने बताया माँ घर के सामान लाने गयी है जो उनका रोज का काम था।मैं फ्रेश होने वाशरूम में चली गयी,वाशरूम से बाहर आकर मैं शाम का चाय नाश्ता बनाने किचन में गयी तो देखा माँ आ चुकी है,और चूल्हे पर चाय भी चढ़ा दिया है,मैंने माँ से कहा "अरे माँ आपने क्यों चाय बनाई,मैं तो आने ही वाली बोलते हुए मैं माँ के कंधे पर हाथ रखना चाहा, लेकिन माँ ने अपना कंधा हटा लिया, मुझे थोड़ा अजीब लगा, फिर मैंने सोचा शायद माँ किसी बात से नाराज है,मैंने पूछा "क्या हुआ माँ,आप क्यों नाराज है??एक बार नहीं कई बार पूछा,लेकिन माँ ने कोई जवाब ही नही दिया,बस चुपचाप अपना काम करती रही।थक कर मैं दादी के पास गयी उनसे भी माँ की नाराजगी का कारण पूछा लेकिन उन्हें भी कुछ पता नही था,मैंने सोचा मोनू (मेरा छोटा भाई) जरूर उसने ही कुछ किया होगा,मैं मोनू के कमरे में जाने लगी तभी फिर से मेरी नजर माँ पर पड़ी चुपचाप काम कर रही थी और बार बार घड़ी देख रही थी,जैसे किसी का इंतेजार कर रही हो,अजीब सी तेजी सी माँ की हाथों में,मुझे लगा शायद माँ पापा का इन्तेजार कर रही होगी,उनके साथ जरूर कोई आने वाला होगा,वैसे भी पापा की आदत है,किसी को भी अचानक ले आते थे घर पर खाने के लिए, खैर मैंने मोनू से भी पूछा नौटंकी ने कसम खा कर ही कह दिया मैंने कुछ नही किया दीदी।फिर मुझे लगा अब जो भी हो पापा के आने के बाद ही पता चलेगा।ये सोचकर मैं पढ़ने बैठ गयी 8 बज गए थे,पढ़ाई पूरी होने के बाद मैंने सोचा मम्मी की कुछ मदद कर दूँ, किचन पहुँची तो देखा माँ ने सारा खाना बना लिया था,और किचन को व्यस्थित कर रही थी,मैंने मौका देख कर बात करनी चाही,तभी कॉल बेल बजी,माँ हड़बड़ा के खड़ी हो गयी और फिर घड़ी पर उसकी नजर टिक गई, मुझे कुछ अटपटा सा लगा,मम्मी को छोड़ मैं दरवाजा खोलने चली गयी,पापा आये थे,लेकिन अकेले कोई भी उनके साथ नहीं था।

9 बज चुके थे सब खाना खाने बैठ चुके थे सिवाय मम्मी के,मैं समझ गयी हो न हो जरूर मम्मी पापा के बीच कुछ अनबन हुई है।फिर मैंने सोचा अब इनदोनो के बीच की बात है सुलह हो जाएगी,वैसे भी इनलोगो के बीच की लड़ाई लंबी नहीं चलती।

11 बज चुके थे, सब अपने अपने कमरे में सोने चले गये थे।मैं मोबाइल चार्जर लेने ड्राइंग रूम में गयी,तो देखा माँ हम सभी के कपड़े के ढेर लगा कर धो रही थी,मुझे फिर कुछ अजीब लगा की ऐसी कौन सी लड़ाई हुई है जो माँ खुद को काम मे उलझा रही है सोने भी नहीं गयी अपने कमरे में,शाम से देख रही हूँ बस काम ही काम किए जा रही है।एक ख्याल आया माँ से बात करूँ, फिर दूसरे ही पल सोचा रहने देती हूँ उनकी प्रॉब्लम है वो अपने तरीके से सुलझा लेंगे लेकिन फिर भी मन नही माना और मैं माँ से बात करने चली गयी

"माँ इतनी रात को क्यों कपड़े धो रही हो,ठंड का समय है,आपको प्रॉब्लम हो जाएगी" मैंने कहा।

लेकिन माँ ने फिर कुछ कोई जवाब नही दिया,मैंने बार बार पूछा लेकिन कोई जवाब नही मिला।परेशान होकर मैं सोने चली गयी,लेकिन नींद नही आ रही थी,मन तो माँ पर ही अटका था।सोचते सोचते कब नींद आ गयी पता ही नही चला,अचानक मेरी नींद खुली घड़ी देखा तो तीन बज रहे थे,मैं टॉयलेट के लिए उठी तो देखा माँ किचन में नमकीन छान रही थी,अब तो मेरा गुस्सा ही फुट पड़ा।

"माँ! क्या हो गया है आपको इतनी रात में आप ये क्या कर रही है, रुकिए आप ऐसे नही मानिएगा मैं पापा को बुलाती हूँ, मैं पापा को बुलाने पीछे मुड़ी तो दादी खड़ी थी शायद मेरी आवाज से जग गयी थी दादी

"दादी ये देखिए न माँ को इतनी रात में क्या कर रही" मैंने झल्लाते हुए कहा।

"क्या हुआ दुल्हिन क्या बात है,कोई बात है तो बताओ।" दादी ने माँ से प्यार से पूछा।

दादी की आवाज सुनकर माँ हल्के से दादी की तरफ मुड़ कर देखा।

मैं मम्मी की ओर बढ़ने लगी,दादी ने हाथ पकड़ लिया और कहा "करने दे उसे जो कर रही है" और दादी ने मुझे किचन से बाहर लाकर अपने कमरे में जाने को कहा।

मैं अपने कमरे मे चली तो आयी लेकिन मन माँ के पास ही लगा हुआ था।

सुबह के 8 बजे थे, अचानक मेरी नींद खुली, देर रात सोने के कारण देर से नींद भी खुली।मैंने तय कर लिया था,आज कॉलेज नही जाऊँगी, घर पर माँ के आस पास रहूँगी।मैं फ्रेश हो कर माँ को ढूढ़ने लगी।माँ अब भी काम में लगी हुई थी,वैसे तो माँ रोज ही काम किया करती थी,लेकिन कल से कुछ ज्यादा ही काम मे लगी हुई थी।अब तो मुझे यकीन हो गया था पापा ने ही कुछ कहा होगा,पापा अक्सर माँ को कहते थे की "तुम गंवार हो तुम्हें घर का काम भी नहीं आता है तुमको ठीक से"..लगता इन्ही बातों को माँ ने मन से लगा लिया था।

सुबह के 10 बजे थे,पापा ऑफिस और मोनू स्कूल जा चुके थे।नाश्ता कर के मैं पढ़ने के लिए बैठने ही जा रही थी की सोचा एक बार माँ को देख लूँ....माँ को देखने गयी तो देखा माँ उन्ही कपड़ों को आयरन कर रही थी जिसे कल उसने धोया था।मैं चुपचाप अपने कमरे आ गयी,पढ़ाई में।

दोपहर हो चुकी थी, 2:30 बज रहे थे,मैं खाना खा कर उठी और माँ को देखने गयी,माँ दादी के कमरे में बैठ कर कुछ लिख रही थी,तभी कॉल बेल बजी माँ हड़बड़ा कर खड़ी हो गयी और घड़ी की ओर देखने लगी।ये मोनू के स्कूल से आने का टाइम है फिर माँ इतना क्यों चौकी???


शाम के 5 बज रहे थे,मैं शाम की चाय बनाने किचन में गयी।माँ किचन के सभी डब्बों पर लेबल चिपका रही थी,माँ ऐसा तब करती थी जब वो कुछ दिन के लिए बाहर जाती थी।अब मुझे माजरा समझ आने लगा था।माँ ने जरूर मामा को बुलाया होगा इसलिए वो घर और किचन को व्यवस्थित कर रही है और इसलिए कॉल बेल पर चौक जाती है और इसलिए बार बार घड़ी भी देख रही है।मैं गुस्से में अपने कमरे में चली गयी और तकिए में मुँह छुपा कर रोने लगी।मेरे सिर पर किसी ने हाथ फेरा मैं माँ समझ कर लिपट गयी लेकिन वो माँ नही दादी थी।मैंने दादी से सुबकते हुए कहा "पता है दादी माँ मामा के घर जा रही है हमें छोड़कर।" दादी ने मुझे सीने से लगाते हुए कहा "तेरी माँ है जो कर रही है घर और बच्चों के लिए कर रही है।" बहुत देर तक दादी मेरे पास बैठी रही और मैं रोती रही।

रात के 8 बज गए थे,पापा भी घर आ गए थे,मैं थोड़ी संतुष्ट थी कि शायद पापा और मम्मी के बीच सब सही हो जाए और माँ नही जाए।रात बीत रही थी और माँ वैसे ही काम पर लगी हुई थी,मैं माँ के पीछे पीछे घूम रही थी और माँ मुझसे उतने ही दूर भाग रही थी,अब तो मुझे माँ को चिढ़ाने में मजा आ रहा था,मुझे यकीन था माँ हार कर हँस देगी और मुझे गले लगा लेगी।

रात के 11 बज रहे थे माँ सिलाई मशीन पर कपड़े सिल रही थी की तभी दरवाजे की घण्टी बजी माँ चौक कर खड़ी हो गयी।मैं दौड़ कर दरवाजा खोलने गयी की जरूर मामा आए होंगे।

पर दरवाजे पर मामा नहीं पुलिस ऑफिसर खड़े थे।मुझे देखते ही उन्होंने पूछा "कुसुम तिवारी का घर यही है??"

" हाँ.. यही है मेरी माँ है...क्यों क्या हुआ??" मैंने हकलाते हुए पूछा।

तब तक पापा और दादी भी दरवाजे पर आ गए।पुलिस ऑफिसर ने पापा के तरफ देख कर पूछा "कुसुम तिवारी आपकी क्या है??"

"जी मेरी पत्नी है...पर हुआ क्या है...सर" पापा भी घबरा रहे थे।

"आपने उनकी लापता होने की कोई रिपोर्ट करवाई है।"ऑफिसर ने पूछा।

"जी..बिल्कुल नही कोई रिपोर्ट नहीं करवाई है और करवाऊंगा भी क्यों वो तो..."

"इस फोटो को पहचानिए" पापा की बात बीच में ही काटते हुए ऑफिसर ने कहा

फ़ोटो देखते ही पापा की आँख चौड़ी हो गयी।मैंने लपक पर पापा के हाथ से फ़ोटो ले लिया।एक महिला के शव का फोटो था।हूबहू माँ के जैसी साड़ी में लिपटी हुई।

आपकी पत्नी यानी कुसुम तिवारी का कल शाम एक्सीडेंट के मौत हो गयी है।उनके पास से ये पर्स और ये सब्जी का थैला मिला है।हमने पर्स चेक की न कोई पहचान पत्र था और न ही कोई मोबाइल,इस जमाने मे भी कोई इनके बिना घर से निकलता है क्या??ये एक लांड्री बिल मिला,लांड्री वाले से आपके घर का पता मिला।

"आप हमारे साथ चलिए हम आपको बॉडी सौप देंगे।" पुलिस ऑफिसर ने पापा से कहा।

हम तीनों सन्न थे,कुछ समझ नही आ रहा था,माँ ने भी वही साड़ी पहन रखी थी जो उस शव से लिपटी हुई थी।मैं माँ की तरफ बढ़ी और माँ किचन के तरफ।मैं किचन में गयी माँ वहाँ नहीं थी,कही भी नहीं थी।एक तेज रौशनी हुई और मैं बेहोश हो गयी।

जब होश आया तो दादी मेरे बगल में बैठी हुई थी।दादी के गले लग कर मैंने पूछा "दादी! माँ वो माँ हमारे साथ कल शाम से.....मैं दौड़ कर किचन में गयी किसी भी डब्बे में कोई लेबल नहीं था, कंही भी नमकीन नहीं रखे हुए थे...वार्डरॉब खोल कर देखा कोई भी कपड़े आयरन कर के नहीं रखे थे...हमारे कपड़े वैसे ही बाथरूम में गंदे पड़े थे...फिर मैं दादी के कमरे में गयी उस पेपरपैड को ढूढ़ने लेकिन उसके पन्ने कोरे थे कुछ भी नहीं लिखा था,...सिलाई मशीन भी यूँ ही पड़ी थी...मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था ,मैं घर के हर कोने में माँ को ढूढ़ रही थी...माँ... माँ चिल्ला रही थी...दादी ने मुझे पकड़ के सीने से लगाते हुए कहा "वो जा चुकी है... तेरी माँ जा चुकी है... एक पवित्र आत्मा थी वो अपने बच्चों के अपने घर के अधूरी जिम्मेदारी को पूरी करने आई थी,अब उसकी आत्मा संतुष्ट है उसे मोक्ष मिल जाएगा...नहीं तो यूँ ही भटकती रहती तुमलोगो के आसपास" बोलते बोलते दादी भी फूट फूट कर रोने लगी।

दादी ने कहा "वो माँ थी तुमलोग से इस घर से मोह छोड़ नही पा रही थी, शायद उसने यमराज से कुछ समय उधार लेकर आयी थी।"

"दादी आपको पता था क्या वो माँ नही बल्कि माँ की....."

दादी ने कुछ नहीं बोला बस इतना ही बोला "तुमने कुछ अलग महसूस किया होगा,जरूर किया होगा..."

.दादी के जाने के बाद मैं वो माँ के साथ बिताए 30 घंटे को टोटलने लगी।मुझे याद आया माँ का सारे दिन शॉल ओढ़कर रहना,खुद को छूने नहीं देना।वो दिनभर एक ही गाना गुनगुनगुनाना "अजीब दास्ताँ है ये कहाँ शुरू कहाँ खत्म" और उसके आस पास बेली के फूलों जैसी खुश्बू ,और हाँ ,मैं जब किचन में जाती माँ के साथ दादी भी वहां होती थी,इसका मतलब वो खाना नाश्ता चाय सब दादी बनाती थी..ओह नो...इसका मतलब दादी ने पहले ही महसूस कर लिया था इसलिए उन्होंने कहा था माँ जो कर रही है करने दे उसे परेशान न कर।क्या सच में इस दुनिया से जाने के बाद भी वो हमारे लिए इस घर मे रह रही थी।वो बार बार घड़ी इसलिए देख रही थी कही उनको मिली मौहलत खत्म तो न हो गयी,कॉल बेल की आवाज सुनकर वो इसलिए चौंक जाती होगी कहीं यमराज तो नहीं आ गये, सब सवालों से मेरा सिर दर्द से फटने लगा और मैं वापस बेहोश हो गयी।

आज भी जब वो 30 घंटे याद करती हूं तो रोंगटे खड़े हो जाते है।आज भी जब मैं परेशान होती हूँ वो बेली की खुशबू मुझे अपने आस पास महसूस होती है।माँ के प्यार की गहराई को कोई नहीं नाप सकता ,देखा था जब आपको लेकर घर आये थे,फूलों से सजाया था,एक संतुष्टि दिख रही थी आपके चेहरे पर......माँ तुम अभी भी मुझे अपने आस पास ही दिखती हो।



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