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Pandit Dhirendra Tripathi

Others

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Pandit Dhirendra Tripathi

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ऐसे लड़के

ऐसे लड़के

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ऐसे लड़के जो बड़े कम उम्र में ही निकल जाते है अपना घर छोड़ कर ,

ऐसे लड़के जिन्हें ठीक से रोटी तोड़ना भी नहीं आता उन्हें जब घेर लेती है रोटी कमाने की चिंता

ऐसे लड़के जिन्हें दसवीं या बड़ी मुश्किल से 12वी के बाद ही कह दिया जाता है कि बेटा " बस।"


जो कमाने के साथ पढ़ना भी चाहते है वे निकल जाते है अपने सपनों को किसी छोटे से, अनदेखे से कॉलेज में प्राइवेट एडमिशन की फाइलों में दबाकर अपने भविष्य की तैयारियों में और पढ़ाई छूट न जाने का डर दबाए हुए उन्हें बनाना होता है घर के संसाधनों के साथ अपने पढ़ने के लिए साधन , सारे बंदोबस्त , सारे काम काज उन्हें बाउजी का साथ देना है समाज मे बनी इज्जत को बचाये रखने के लिए , अम्मा की दुःख भी उन्हें ही सुनना है और कही घर में एक आध छोटी बहन है तो सारी कमी पूरी ।


जिंदगी के जदोजहद और कुछ करने की ललक में एकदम से अकेले पड़े इन लड़कों के चेहरे की मुस्कुराहट इनके दुखो की सारी कहानियां समेटे हुए इनके चेहरे पर हमेशा दिखने को मिलेगी।


पढ़ाई और कमाई के बीच चल रही जिंदगी के खींच तान में ये खो देते है साइकिल पर घूमना, कॉलेज जाते हुए लड़कों देखकर इनकी दिल में जो पीड़ा उठती है न उसे बयां करना बमुश्किल काम है । ये कैफ़े, सिनेमा हॉल और पिकनिक पार्टी और पब से इस प्रकार परिचित है कि ये सब बड़े लोगों के शौक है ,हम दो पैसे बचा लेंगे तो घर भेज देंगे या किताब ले लेंगे। इन्हें ब्रांड से कोई मतलब नहीं ये बाजार में ढूंढते है सबसे सस्ती कीमत की चीज़ें और उसे ही प्रयोग करते है 


इनके लिए " जिंदगी शर्तिया पाबंदियों के बीच ख़्वाब देखने टूटने और फिर ख्वाब देखने का नाम है।"

जिंदगी चल ही रही होती है कि इनके जीवन में एक लड़की आती है, जी हां आती है वो बुलाई नहीं जाती, जो जानना चाहती है इनके सा

रे समस्याओं को और और ताज्जुब की बात ये है कि वो उसे ठीक भी करना चाहती है। वो लड़के को सांत्वना देते देते उसे ये बताती है कि बस वही है एकमात्र जो उसे समझ रही है और लड़के को भी जिंदगी के इन जद्दोजहद के बीच ये सांत्वना अच्छी लगने लगती है फिर दोनों में एक रिश्ता बनता है जो चलता भी है बड़े बड़े सपने दिखाए जाते है साथ रहने , जीने-मरने का वादा होता है और एक निराधर कारण बता कर उसे छोड़ दिया जाता है कई बार तो बड़ी बेबाकी से उसके हालात को ही कारण बता दिया जाता है । यहाँ से शुरू होता है लड़के के जीवन का एक नया अध्याय अब आगे क्या करना है?


मैंने एक पंक्ति लिखी थी कि " 17 से 23 वर्ष के बीच एक ऐसा समय आता है जब व्यक्ति बिल्कुल अकेला पड़ जाता है

तब उसके पास दो विकल्प होता है -


1. अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए अपने बनाना

2. अपने आप को बनाना


कुछ लड़के अधिकतम पहला वाला विकल्प चुनते हैं और भटकते रहते है , रोते हुए गिड़गिड़ाते हुए ईश्वर अथवा भाग्य को कोसते रहते है ये समाज की दृष्टि में नकारा और निक्कमा होते है और समाज के लिए खतरा होते है।


पर भाईसाहब जो लड़के दूसरा रास्ता चुनते है वे समाज पर ही खतरा होते है क्योंकि वो हो जाते है पत्थर से ज्यादा सख़्त, वे फिर किसी से नहीं कहते अपना कोई दुःख , न बताते है अपना हाल , अपने घर की परेशानियां बस एक मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ सब झेलते हुए लड़ते है अपने ख्वाब से


ये हमेशा देखते है समाज को एक छलिया के रूप में

इन्हें विश्वास के पीछे छल दिखता है , प्यार के पीछे दुख

और संतावना के पीछे मजाक उड़ाते हुए लोग।


इसलिये इन्हें किसी के आने - जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। इन्हें किसी पर भरोसा नहीं होता और प्यार तो बिल्कुल भी नहीं।  



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