Kalpana Srivastava

Others

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Kalpana Srivastava

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अधूरी सुगंधी का पूरा अनुराग

अधूरी सुगंधी का पूरा अनुराग

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"मैं आता हूँ ,दरवाजा बंद कर लो ,तबियत ठीक ना लग रही हो तो ,आज स्कूल जाने को रहने दो ,मैं पहुंचकर फोन करता हूँ। प्लीज अपना ख्याल रखा करो" यह हिदायत देते हुए अनुराग घर से बाहर निकले ,मैं भी उनके पीछे -पीछे गेट बंद करने के लिए और बाय करने के लिए गयी ,वे पीछे मुड़े और बोले अरे यार तुम लेटी रहती, क्यों उठी ,मैंने उनका हाथ पकड़कर बोला कि "मैं इतनी बीमार नहीं हूँ।" "हाँ ठीक है ,पर पूरा आराम करो।" यह कहकर अनुराग चले गए।और मैंने टी .वी ऑन कर गैस पर चाय चढ़ा दी।मैं अपनी बालकनी में झूले पर बैठकर चिड़ियों का कलरव सुनने लगी ,बहुत सुकून लग रहा था , जब कोई हमारी फ़िक्र करता है तो कितना अच्छा लगता है ,लेकिन कितना तरसी हूँ मैं ,चाय के उबाल ने मेरी सोच को अल्पविराम दिया। चाय का कप हाथों में लेकर जब फिर झूले पर बैठी तो ,चाय की चुस्कियों के साथ मन अतीत की गहराइयों में उतरता चला गया।

          मुझे अच्छे से वो दिन याद था , जब गर्मियों में पूरा परिवार इकठ्ठा होता था सभी कितनी मस्ती करते थे।मैं सभी बहनों में बड़ी थी ,सबका खूब ख्याल रखती थी।जेठ की दुपहरी में हम सब बातें कर रहे थे।तभी अंजना उठकर चले गई ,मैंने पूछा तो बोली वही" दी महीने वाला प्रॉब्लम "मैं चहक कर बोली अरे मुझे ये सब कुछ नहीं ,सभी बड़ी उत्सुकता से देखने लगे।तो मैंने बता ही दिया कि मुझे अभी नही शुरू हुआ।सबकी निगाहों में प्रश्न थे।चाची ने कितनी हिदाएतें दे डाली थी माँ को। फिर हँसते खेलते छुट्टियां ख़तम हो गई ,और सभी अपने अपने घर की और रवाना हो लिए। चलते समय भी चाची दादी मम्मी को खुसुर फुसुर कुछ समझाते ही जा रहे थे।

       मई 10 वीं की परीक्षा दे चुकी थी ,मैं भी जान गई थी कि मेरी सभी सहेलियां इस नैसर्गिकता से गुजरती हैं। सिर्फ मैं ही नही। मम्मी से जब न सहा गया तो उन्होंने पापा को बता दिया।पापा बोले कल ही दिखा देते हैं डॉक्टर को।मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था ,पर तब हमारी सवेद्नाएं कुछ नहीं होती थी।दुसरे दिन मैं अस्पताल गई ,डॉक्टर ने हँसते हुए कहा था कि कभी कभी किसी को लेट भी शुरू होता है।सभी के चेहरे खिल पड़े थे।सबसे ज्यादा खुश मैं हुई थी।


दिन निकलते गए ,हमेशा मम्मी पूछती रहती ,कभी अगर हम भूल भी जाते तो चाची याद करा देती ,पहले तो मैं सोचती थी की चलो अच्छा हुआ मुझे इस दर्द से छुट्टी मिली है क्योंकि हमेशा क्लास में मेरी सहेलियों में से किसी को यह प्रॉब्लम रहती और वह मुंह बनाये बैठी रहती। कम से कम मैं तो ऐसी पीड़ा से नहीं गुजरती ,लेकिन बहुत जल्दी ही समझ आ गया की यह कितना जरूरी है।

      मैं बारहवीं में आ गई थी ,अब मेरे पूरे परिवार मे यह बात पता चल गई थी की मुझे पीरियड्स नहीं आते। कितनी बार मैं मम्मी पापा के साथ डॉक्टरों के चक्कर काट चुकी थी ,डॉक्टर ने पूरे निरीक्षण किया ,और सोनोग्राफी के बाद डॉक्टर ने मुझे बहार जाने को कहा ,और पापा मम्मी को बुलाकर जो बात बताई वह दिल हिलाने वाली थी।कि आपकी बेटी का यूटरस ही नही है।और इसका कोई इलाज नहीं ,अब आप अस्पताल के चक्कर न काटें ,और यह करोड़ों में किसी एक में होता है।सभी के मन में वही प्रश्न था कि वो एक मैं ही क्यों ?

अब घर में दोनों भाइयों को भी यह बात पता चल गई थी।घर में हमेशा मनहूसी चाय रहती हमेशा यही सवांद होता रहता कि शादी कैसे होगी ,क्या होगा इसका पंडित ,नीम -हकीम कोई बचा नहीं था जिसके आगे हमने सर न झुकाया हो|लेकिन मेरी तकदीर पत्थर की थी ,दिन रात खुद को कोसती रहती।


अब मम्मी ने ताने देने शुरू कर दिए थे ,की ऐसा मेरे घर ही होना था ,मैं दोषी नहीं थी लेकिन सभी मुझे दोषी मानते थे।बस एक दादी थी जो मेरे इस दर्द को समझती थी ,मैं उनकी गोदी में सर छुपाकर खूब रोती थी।अपने आँचल से आंसूं पोछते हुए वे हमेशा ,उझे दिलासा देती रहती ,"देख मेरी सुगंधी एक दिन सब ठीक हो जाएगा।लेकिन दिन बीतने के साथ ये दुःख और बढ़ता गया। इतने बड़े परिवार में ,मेरा कोई नहीं था ,सभी मुझे कोसते पर मेरा दुःख समझने वाला कोई नहीं था।

      मुझे सख्त हिदायत थी कि मैं किसी से इस बात का जिक्र न करू|।शायद इसके पीछे पापा की मंशा थी मेरी शादी की।अब मैं २१ साल की हो गई थी काले घने बाल ,सावंला रंग।सुंदर तो नहीं लेकिन ठीक लगती थी दादी उस दिन करवा चौथ की पूजा थी।मम्मी और दादी का उपवास था।मैं रसोई का काम निपटाकर पूजा का इंतजाम करने लगी। मम्मी और दादी आँगन में आ गये थे मम्मी पूरे श्रृंगार में बहुत सुंदर लग रही थी।दादी ने कहा अरे बिटिया तू भी कपडे बदल ले। मैं दादी के आग्रह को ताल नहीं पाई ,कपडे बदल कर जब मैं आँगन में आई तो दादी ने मेरी बलाएँ लेते हुए कहा मेरी लाडो कितनी सुंदर लग रही।मैं थोड़ी शरमाई थी तभी मम्मी की कर्कश आवाज मेरे कानों से टकराई बस भगवान् ने औरत नहीं बनाया नहीं तो ये सावंला रंग भी कोई बुरा नहीं था।मैं उलटे क़दमों से कमरे में लौट गई थी ,और उस दिन फूट फूट कर रोई थी।


 मेरी दादी हमेशा कहती थी तेरे नैन नक्श कितने प्यारे हैं सुगंधी तो मैं लगभग चिल्लते हुए बोल पड़ती ,दादी इन सब बातों से मुझे खुश करने की कोशिश मत किया करो।

अब सुगंधी ने अपनी दुनिया समेट सी ली थी ,वह घर का सब काम करती कॉलेज जाती और घर आकर बचा हुआ समय बच्चों को पढ़ाने में देती ,और जब बहुत उदास हो जाती तो दादी के पास बैठ अपने भाग्य को कोसती।परिवार में बहनों के हाथों में मेहँदी रचने लगी .हल्दी चढ़ने लगी ,सभी दुल्हनें बनकर अपने पिया के घर बसाने डोली में बैठने लगी।सुगंधी मेहँदी लगाती ,लाल चुनरी ओढती ,एक धुंधला सा राजकुमार भी आता ,जो उसे सबसे दूर ले जाता सिर्फ प्यार देने के लिए .लेकिन यह सब सिर्फ सपने में होता है सपना हसीं होता है लेकिन उसके टूटने के बाद सिर्फ आसुओं का सैलाब होता और उसे पोंछने वाला कोई नहीं।

           

            एक दिन वह काली रात भी आई ,जब दादी ने उसकी तरफ से आँखें मूँद ली ,दादी का देहांत हो गया।अब सुगंधी बहुत अकेली हो गई थी ,उसके भाइयों की शादी के बाद भाभी को तो एक मुफ्त की नौकरानी मिल गई थी।उसको किताबों से बहुत लगाव था वे ही उसकी सच्ची सहेली थी ,जल्दी ही उसकी केंद्रीय विद्यालय में नौकरी मिल गई।

         एक दिन वह घर पहुंची तो मम्मी ने एक लड़के का फोटो दिखाकर कहते हुए बोला ,सब बात पक्की हो गई है।अब तू कुछ मत बोलना ,सुगंधी बोली," ठीक है मम्मी आप जिससे कह्रेंगी मैं शादी करने को तैयार हूँ पर मेरी हकीकत के साथ ,और मेरी येही हकीकत है कि मैं उसको बाप नही बना पाऊँगी| उसकी यह बात सुनते सभी उस पर चीख पड़े थे।उस दिन घर में बहुत हंगामा हुआ।वह दो दिन school नही गई।मम्मी उसके आगे विनती करती रही कि शादी कर ले और हमारा पीछा छोड़ दे।वह पत्थर बनी बैठी थी ,उसके पापा और भाई ने आकर फरमान दे दिया कि कल मंगनी है बस .....बहुत हो गया।

          खरीदारी होने लगी वह बुत बनी सुनती रही और रोबोट बनी जो सब कहते वही करती रही।शाम को उसे सजाया गया ,आज जब वह पहली बार इस तरह सजी थी ,सभी उसे देखते तरेह गए उसकी तारीफ कर रहे थे।उसने खुद को आईनें में देखा तो वह देखती रह गई ,और उसके मुंह से येही निकला था ,अरे "वाकई मैं आज सुंदर लग रही।उसे लगा आज सभी खुश हैं| जो मम्मी उसे भला बुरा कहते नहीं थकती थी आज उसका माथा चूम रही थी पापा को मुझ पर नाज होने लगा था भाई और भाभी इसी बात से खुश थे कि चलो छुटकारा मिलेगा ,येही सोचते हुए उसको अपना चेहरा काला स्याह सा क्रूर लगने लगा ,उसे अपने ऊपर क्रोध आने लगा।तभी उसकी सहेलियां आ गई उसे छेड़खानी करने लगी।

              पापा आ गए थे ,बोले चलो सब लोग इंतज़ार कर रहे ,वह दौड़ कर पापा का हाथ पकड़ ली थी।

पापा ने उसके हाथ को तेजी से झटक दिया था ,तभी सुगंधी की होने वाली सासू आ गई और अपनी बहू की नजर उतारने लगी थी।सुगंधी कुछ नहीं समझ पकाई थी म,क्योंकि इससे पहले तो उसने ऐसा प्यार कभी देखा नहीं था। वह यंत्रवत बनी सभी रस्मों को पूरा करती रही। सभी लोग खाना खा रहे थे ,इधर मंच पर सुगंधी और लड़का बैठे हुए थे।उसने सुगंधी का हाथ अपने हाथ में लिया और बोला देखा तो तुम्हे पहले ही था पर आज तो बहुत सुंदर लग रही।वह उसकी बात से न शरमाई न ही इठलाई उसने बस इतना ही कहा था कि - मैंने तो तुम्हे देखा भी नहीं जाना भी नहीं ,फिर भी मैं तुम्हारे हर अच्छे बुरे के साथ तुमको स्वीकार करूंगी क्या तुम मेरी हर बुराई के साथ स्वीकार करोगे।अब उसके आँखों की चमक फीकी हो गई थी और रंग उठाता सा गया था। वह बोला क्या बुराई ,"सुगंधी ने बड़े ही निर्भीक होकर कहा - मैं कभी भी माँ नहीं बन पाऊँगी ,पर तुम परेशान मत हो हम एक बच्चे को गोद लेंगे ,उसका भविष्य बनायेंगे है न कितना नेक काम हम दोनों उसे माँ बाप का प्यार देंगे ,बोलो न तुम मेरा साथ दोगे न बोलो न --वह कहे जा रही थी लड़के की आँखें सफ़ेद सी पद गई थी , वह उठा और अपने को दूर करते हुए सुगंधी को धक्का दे दिया।अब सभी लोग स्टेज के पास आगये थे। सभी लोग सुनकर थू -थू करने लगे ,वह चिल्लाती रही ,इसमें मेरा क्या दोष ?

               सभी अपने घर चले गए ,माँ -पिता उस दिन को कोस रहे थे जब मैं पैदा हुआ थी।भाई आया उसने दो- चार थप्पड़ जड़ दिए थे मैंने कोई विरोध नहीं किया था।मैं अपने कमरे में चली गई थी।रोते रोते कब सुबह हो गई पता ही नही चला।सुबह मेरा दरवाजा भाभी ने खोला ,और बोला हम लोग तुम्हें कुछ कहना चाहते है ,मैं धीरे से बोल पायी थी क्या?.... तुम घर छोड़कर हमारी जिंदगी से चली जाओ।माँ ने जोर देते हुए कहा ,और कभी अपना मुह मत दिखाना।मैं सिर्फ इतना ही कह पायी माँ मैं आपकी ही कोख से जनी हूँ न ....................

 और अपना सामान पैक करने लगी ,उसने नहीं सोचा वह कहाँ जायेगी क्या करेगी ,बस अब आज वह कुछ निर्णय लेना चाहती थी अपने लिए। तेज क़दमों के साथ बिना किसी की और देखे वह निकल गई थी।

               वह सीधे अपने स्कूल के प्रिंसिपल के पास पहुंची थी ,और बोली सर मुझे school के हॉस्टल में रहने के लिए जगह चाहिए।प्रिंसिपल सर ने सुगंधी का यह रूप पहली बार देखा था ,वे उसके अंतर्द्वंद को पहचान गए थे।उन्होंने कोई प्रश्न नहीं किया ,और एक कमरे की चाभी थमा दी थी।वह दौड़ती हुई अपने कमरे की और गई ,और धडाम की आवाज के साथ दरवाजा बंद कर लिया था इस दरवाजे के बंद होने के साथ साथ उसने सारी पुरानी दकियानूसी बातों को बंद कर दिया था ,उसने बंद कर लिया था अपने साथ होने वाले अन्याय को भी।

          सुबह का सूरज उसके जीवन में लालिमा भर कर लाया था ,रात में टूटती सिसकियों के साथ ही अपने जीवन के कई निर्णय ले लिए थे।वह स्कूल के लिए तैयार हुई , स्कूल पहुंचकर उसने अपनी सभी कक्षाऐ ली ,और खुद को तैयार करती रही ,जंग जीतने के लिये|उसने अपने घर पर अपना निर्णय कठोर शब्दों में सुना दिया था।और सच पूछो तो किसी को उसकी परवाह नहीं थी।अब स्कूल जाना ,बच्चों के साथ हँसना ,जीना उसकी दिनचर्या बन गई थी।साथ- साथ उसने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी।

              आज जब वह स्कूल पहुंची ,सब ताली बजाकर उसका स्वागत करने लगे ,उसे समझ नहीं आया ,जब उसने पूछा तो प्रिंसिपल ने एक लैटर देते हुए कहा तुमने जो परीक्षा दी थी उसमें पास हो गई अब तुम एक सरकारी अध्यापिका हो। इस एक वाक्य को सुनकर वह उछल पड़ी थी ..आज वह पहली बार इस तरह बच्चों की तरह उछल कर अपनी ख़ुशी का इज़हार कर रही थी।सच...... अपनी मेहनत से मिली हुई सफलता कितनी मिठास भरी होती है।

              अब वह जीने लगी थी ,खुली हवा में सांस लेने लगी थी ,अपनी परेशानियों को भूलने लगी थी।सब कुछ सामान्य हो चला था।मई महीने में दो चार शिक्षकों का तबादला हो गया ,काम दुगुना आ गया था। सुगंधी बड़ी तल्लीनता के साथ हर काम करती थी।उसका परिवार अब ये स्कूल ही था।आज विद्यालय में दो नए टीचर ने ज्वाइन किया था एक इतिहास की टीचर थी एक गणित का अध्यापक।सभी का परिचय हुआ ,और सभी अपने अपने काम में लग गए।

           आज ११ जुलाई थी ,रोजमर्रा की तरह आज भी वह फटाफट उठी ,चाय चढ़ाई और नहाकर पूजा की ,चाय पी कर जैसे ही उसने अपने कमरे का दरवाजा खोला ,हॉस्टल में रहने वाले बच्चे और टीचर हाथों में फूल लिए खड़े थे और जोर से चिल्ला कर बोले हैप्पी बर्थडे ,मैं तो चकित रह गई थी ,मुझे तो नफरत थी अपने जन्मदिन से और न ही कभी मेरा जन्मदिन मनाया गया था |मेरी आँखों से आंसू झर -झर बहे जा रहरे थे।और चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान थी।मैं सभी का धन्यवाद कहती जा रही थी।वह दिन मेरे लिए ख़ास बन गया था , दोपहर को सभी के लिए चाय समोसे का इंतजाम किया था।तभी गणित के सर बोले ,'' अरे मैडम सिर्फ चाय से ही निपटा देंगी कि और भी कुछ मिलेगा ? मैं कुछ बोल नहीं पाई थी।तभी इतिहास वाली मैडम बोल पड़ी थी अरे आज तुम्हारे घर पर तुमको जन्मदिन विश करना ,ये आईडिया अनुराग का ही था ,धन्यवाद बोलिए उसको।सभी खिला खिला कर हंस पड़े थे।

          मैंने इन दिनों गौर भी किया था स्टाफ रूम में कोई दो निगाहें मुझे मेरी नज़रों से छुपकर देख लेती थी।पर मुझे इन बातों से क्या ,और मैं बहुत स्ट्रिक थी मुझसे जल्दी कोई मजाक करने की हिम्मत भी न करता था ,सभी खूब इंजॉय करते थे ,पर मैं सिर्फ अपना काम और बच्चे।


       दो दिन से मैं स्कूल नहीं जा पाई थी ,तेज बुखार था मैंने एप्लीकेशन भिजवा दी थी ,प्रिंसिपल ने फोन पर हाल चाल भी लिया था। बुखार था कि जाने का नाम ही नही ले रहा था ,दो दिन और हो गए थे शाम को दरवाजे की घंटी बजी मैं किसी तरह सँभालते हुए दरवाजे को खोला तो सामने वो गणित का मास्टर अनुराग खड़ा था।उसने कहा अरे कितनी कमजोर हो गई है आप , बैठिये - बैठिये सुब्गंधी समझ नहीं पा रही थी ये यहाँ आया क्यों है ? उसने सीधे पूछ ही लिए जी कोई काम है ? अनुराग को उसका यह व्यवहार थोडा अजीब लगा लेकिन फिर भी वह बोला सर ने भेजा है कि कक्षा 9 के सारे कार्य मुझे दे दीजिये ,मैं कर दूंगा आप आराम करें ,और कोई जरूरत हो तो मेरा नंबर ले ले ,उसने खुद ही सुगंधी का मोबाइल उठाकर अपना नंबर फीड कर दिया था।सुगंधी को बड़ा ही असहज लगा था।

             जब तक मैं बीमार रही सुबह शाम वह हाल पूछता ,और स्कूल की सारी बातें बताता।मेरा भी सब काम हो गया था।अब मैं ठीक हो गई थी और आज स्कूल आई थी ,उसने पुछा अब कैसी हो ? मैंने कहा ,''ठीक हुई तभी तो आई हूँ।उसने हंस कर कहा अगर आप सुबह शाम थोडा शहद खाया करिए आपकी वाणी मीठी हो जायेगी।मुझे और गुस्सा आया था , पर मैं कुछ न बोली।मैंने देखा था ,अब वह मेरे पास आने का बहाना ढूंढता था ,मुझे हंसी आती थी उस पर कि जब मेरी सच्चाई जानेगा तो सारा प्रेम हवा हो जाएगा।

           लेकिन सच्चाई यह भी थी उसका मेरी तरफ देखना मुझे अच्छा लगता था।उसके साथ काम करना अच्छा लगता था।उसका फोन आना मुझे सुकून देता था।पर मैं अपनी सच्चाई खुद से छुपाती थी।और ये सोचकर रखा था कि मैं अपने दिल और दिमाग से सिर्फ अपने दिमाग की ही सुनूंगी | लेकिन मैं उसके प्यार के आगे मेरा विश्वास डगमगाने लगा था।school में हमें साथ में समय बिताना अच्छा लगने लगा था।उसकी फ़ालतू की बक बक मेरी चुप्पी को तोड़ देती थी ,कभी बिना चाहे किया गया उसका हल्का स्पर्श भी रोम -रोम पुलकित कर जाता। जितना ही उसमें बचपना था उतनी गंभीरता भी थी |

             उसने अपने जन्मदिन पर एक पार्टी अपने घर पर रखी थी ,मैंने पूरा बाजार छान मारा कि उसके लिए कोई तोहफा ले सकूं ,पर उसके प्यार के आगे हर चीज छोटी नजर आ रही थी ,फिर मैंने फूलों का एक गुच्छा ले लिया था ,आज मैंने गुलाबी और फिरोजी रंग के छोटे बूटे वाली साड़ी पहनी थी बालों को खुला छोड़ दिया था ,जिससे जुल्फें उड़ उड़ कर मेरे चेहरे पर आती और मैं बड़ी ही नजाकत से उन्हें अपने कान के पीछे दबा लेती ,होठों पर हलकी मुस्कान, गालों पर शर्म  और आँखों में हया इन सारे जेवरों से लदी जब मैं अनुराग के घर पहुंची तो अनुराग की मम्मी ने आगे बढ़कर मेरा स्वागत किया पता नहीं कैसे मेरे हाथ उनके चरणों तक पहुँच गए।    और उन्होंने मेरा माथ चूमकर कहा -सुगंधी ना ----- जैसे वे सब जानती हों ,मैंने भी सर हिला दिया था।तभी अनुराग आया और शिकायत करते हुए बोला क्या इतनी देर लगा दी ?मैं कबसे इंतज़ार कर रहा

मैंने वो फूलों का गुच्छा आगे बढाते हुए कहा ये आपके लिए ,उसने धीरे से बोला इस समय तो मेरे पास पूरा बगीचा है तुम हो थैंक यू सुगंधी।

                    मैं खुद में ही सिमट गई थी लज्जा के कारण।तभी आंटी ने कहा -अरे सुगंधी तू इधर आ मेरा बेटा वर्ना ये अनु तुम्हें ऐसे ही परेशान करता रहेगा। मैं उनके साथ उनके छोटे बड़े कामों में हाथ बंटाने लगी आज मुझे पता नहीं क्यों दादी की बहुत याद आ रही थी। सभी लोग खा -पीकर अपने घर चले गए थे।मैंने आज परिवार जाना था मैं अनुराग और आंटी साथ में खाना खाया।आज कितना अच्छा लग रहा था शिअद पहली बार।लग रहा तह अब और कुछ नहीं चाहिए जिंदगी में ,बस सब कुछ एहिं रुक जाए।लेकिन ऐसा कहाँ होता है ?सब कुछ अपने मन से नहीं चलता न हमें हकीकत से सामना करना होता ही है।और मेरी हकीकत ऐसी थी कि खुद इश्वर भी उसे सुधार नहीं सकता था।

                 मैं जाने के लिए उठी ,तो आंटी ने कहा ,"जा अनु इसे छोड़कर आ ,और आइसक्रीम भी खिला देना ,मैं और अनुराग साथ में चल रहे थे ,रास्ता एक ही था लेकिन अनुराग और सुगंधी के मन में बातें एकदम विपरीत दिशा में चल रही थीं।अनुराग सोच रहा था कि सुगंधी से पूछ लूं कि क्या वह जीवन भर साथ देगी ? वहीँ दूसरी तरफ सुगंधी सोच रही थी की क्या अनुराग को आज सब सच बता दूं ?दोनों ही इसलिए पहल नहीं कर पा रहे थे कि कहीं इसका उत्तर ना न आ जाए।सुनसान सड़क पर दोनों के क़दमों की आवाज साफ़ सुनाई पद रही थी ,और दोनों के दिल भी तेजी से धड़क रहे थे ,दोनों की नजर एक साथ मिली और अनुराग ने हँसते हुए कहा ," एक बात पूछूं मैं तो तुमसे बहुत प्यार करता हूँ ,पर तुम्हारे मन में मेरे लिए क्या है मैं जानना चाहता हूँ और यह कहते हुए वह सुगंधी के आगे आकर खड़ा हो गया ,और दोनों हाथों को पकड़कर बोला कोई जबरदस्ती नही है ,सब कुछ तुम्हारी मर्जी पर है ,पर तुमको ये आश्वस्त कर दूं कि मेरी वजह से कभी इन आँखों में आंसूं नहीं आने दूंगा ,सुगंधी उसकी इस प्यार को देखकर उससे लिपट जाना चाहती थी ,वह अपने आपको एक कमजोर लता जानकार एक दृढ़ आधार के ऊपर छोड़ देना चाहती थी लेकिन अगले पल ही

उसकी असलियत ने उसे झझकोर दिया था।और वह बिना बोले तेज क़दमों से अपने घर की और बढ़ गई थी ,अनुराग बोटा ही रह गया ,अरे "आइसक्रीम नहीं कहोगी क्या ,तुमको बुरा लगा हो तो.....................

         घर पहुंचकर सुगंधी ने चेंज भी नही किया उसने आईने में अपना चेहरा देखा जो साड़ी उसे अच्छी लग रही थी वाही गुलाबी और नीले बूटे सांप बिच्छू ऐसे जान पड़ रहे थे।वह अचेत सी बेड पर गिर गई थी| और रोते -रोते कब सो गई उसे पता ही नहीं चला।

         सुबह उठने में देर हो गई थी ,आज वह पहली बार स्कूल के लिए लेट हुई थी ,गेट पे उसे अनुराग मिल गया था , वह कुछ बोला न सुगंधी।किसी तरह दिन बीता ढलते सूरज के साथ उसने मन ही मन एक निर्णय ले लिया था ..सब कुछ बता देने का।उसने अनुराग को कहा ,"आज शाम को ७ बजे तुमसे मिलना चाहती हूँ।अनुराग तो बहुत खुश हो गया था उसके मन में तरंगें उठने लगी थी वह अपनी दुनिया बसाने के कल्पना लोक में विचरण करने लगा था | दोनों एक बगीचे में मिले ,अनुराग बोला चलो किसी रेस्टोरेंट में चलते हैं ,सुगंधी बिना कुछ कहे उसके पीछे हो ली थी ,वह भी इन पलों को जी लेना चाहती थी क्योंकि वह जानती थी कि इसके बाद अनुराग उसे कभी नहीं मिलेगा।अनुराग ने बैठते ही दो जूस का आर्डर दे दिया था ,और बोला अब बोलो खूब साड़ी बातें करो जो भी तुम्हारे मन में है वको सब बोल दो ,सिर्फ आज मैं सुनूंगा , सुगंधी बोली,"मैं भी ---तब तक जूस आ गया था ,अनुराग बोला ,पहले हम जूस पियेंगे वह भी शांत हो गई थी ,क्योंकि उन पलों को वह भी जीना चाहती थी।अनुराग ने गिलासों को टकराते हुए चिअर्स कहा और बोला , तुम बहुत अच्छी हो ,बहुत प्यारी , बिलकुल चाँद सी शीतल और फूलों सी प्यारी।अच्छा बोलो क्या कहना चाहती हो .. सुगंधी अब भी सोच रही थी कि न बताऊँ उस कडवे सच को लेकिन तभी उसकी अंतर्रात्मा ने धिक्कारा और बोली कोई भी रिश्ता झूठ और धोखे पर नही टिकता वह मजबूत हो गई थी ,उसने अनुराग की आँखों में आँखें डालकर देखा और बोला ,अनुराग मैं आपको कब पसंद करने लगी मुझे खुद भी नही पता लेकिन पता नहीं क्यों तुम अब मुझे अच्छे लगने लगे हो ,तुम्हारी फिक्र करना ,तुमसे गुस्सा होना ,तुम पर हक़ जमाना ,तुम्हे देखना अब अच्छा लगने लगा है।अनुराग बीच में ही बोल पड़ा था ,सुगी मुझे तुम्हारी सादगी तुम्हारी गंभीरता तुम्हारा सब कुछ तुम हर रूप मुझे पसंद है .... हर रूप --सुगंधी बीच में रोकते हुए बोल पड़ी थी ,हाँ हर रूप तुम्हारी अच्छाई तुम्हारी बुराई सभी कुछ।सुगंधी ने अनुराग का हाथ पकड़ा और बोला ,"अनु मैं तुम्हें जीवन की हर ख़ुशी दे सकती हूँ लेकिन बच्चा कभी नहीं दे सकती ,जानते हो क्यों ..?क्योंकि कभी मुझे पीरिअड्स ही नहीं आये ,हाँ मैं अपूर्ण औरत हूँ ,कभी तुम्हे पिता नही बना पाउंगी।अब अनुराग के हाथों की पकड़ ढीली पड़ने लगी थी उसकी मुस्कान तटस्थता में बदल गई थी , वह कुछ नहीं बोला था ,बस इतना पूछा ---सच में ,और उठकर बिना मुड़े रेस्टोरेंट से निकल गया था।सुगंधी आज फिर एक बार टूटी थी ,लेकिन अबकी का टूटना उसे फिर से जुड़ने की साड़ी शक्ति ले गया था ,क्योंकि वह अनुराग को चाहती थी।वह उसे खोना नहीं चाहती थी लेकिन वह यह भी जानती थी कि अनुराग उसे नहीं अपनाएगा।

              सुबह वह स्कूल आई ,लेकिन आज उसे अनुराग नहीं दिखा ,वह school नहीं आया था।आज सुगंधी को बिलकुल नहीं अच्छा लग रहा था चारों तरफ उसकी आँखें अनुराग को ढूंढ रही थी।किसी तरह दिन गुजरा ,शाम को उसने खुद को कमरे में बंद कर लिया और औंधें मुंह कर बैठी रही ,बार बार उसकी उंगलियाँ मोबाइल पर जाती और अनु लिखा हुआ डायल करती लेकिन तभी वह बिना रिंग किये फोन नीचे रख देती ,कितनी बार मर रही थी वह ,अपनी फूटी किस्मत को कितना कोस रही थी।कितना नाराज थी वह भगवान् से।,तभी डोर बेल की आवाज बजी तो बिना खोले उसने बोल दिया था कि काका - आज दूध नहीं चाहिए।लेकिन दरवाजे पर उसे एक महिला की आवाज सुनाई पड़ी थी ...दरवाज तो खोलो ,वह उठी और उसने दरवाजा खोला तो अनुराग अपनी मम्मी के साथ था।वह थर तहर कांपने लगी थी ,तभी आंटी आई और उसको गले लगाते हुए बोलीं अनु ने मुझे सब कुछ बता दिया है ,पर हम तुम्हें उस रूप में ही स्वीकार क्लारते हैं ,वह रोने लगी थी .उसकी हिचकी बांध गई थी और बोले जा रही थी आंटी इसमें मेरा कोई दोष नहीं भगवान् ने ही मुझसे न जाने किस जनम का बदला लिया है ,फिर वह अनुराग की और बढ़ी --अनु मैं तुम्हें बहुत प्यार करने लगी हूँ ,तुम्हारे बिना मैं नहीं जी पाउंगी ,हम---हम बच्चा गोद ले लेंगे।बोलो न बोलो .....अनुराग की आँखों में भी आसूं आ गए थे और कहने लगा जैसा तुम चाहोगी ,हम वैसा ही करेंगे हैं न माँ ------- माँ बोली हाँ अनु पर तू सुगंधी को बोल दे आज के बाद वह कभी रोएगी नहीं।उसके आंसूं बहे जा रहे थे ,और वह बोली नहीं माँ कभी नहीं।और अनुराग ने माँ और सुगंधी को गले लगा लिया था।

                  तभी रिंग बेल ने विचारों में उतराती सुगंधी को जगा दिया था ,उधर से आवाज आई १ बज रहा दवा खाई ? मैंने बोला बस खाने ही जा रही थी ,और सुनो हाँ आज जल्दी आउंगा , आज पानी पूरी खाने चलेंगे, तैयार रहना।सुगंधी चहक कर बोली थी हाँ मम्मी भी कह रही थी बहुत दिन हो गए ,"चलो शाम को मिलते हैं।सुगंधी आज अपने भाग्य पर इतराते हुए माँ के कमरे की और बढ़ी जा रही थी ,और यही सोच रही थी मेरा अनुराग ही मुझ जैसी अपूर्ण औरत को संपूर्ण बना सकता है| धन्य है ---धन्य है मेरा अनुराग। 

         


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