आलस की कीमत
आलस की कीमत
माधो काका: नहीं बेटा तैयार फसल का ध्यान बच्चे की तरह रखना पड़ता है। समय से पानी देना, खाद देना, जानवरों से बचाना। इसीलिये हम दिन रात खेत पर रहते हैं।अब तो भगवान ही मालिक है।
सोहन पेड़ के नीचे बैठा रोता रहा।दोपहर को सुमित्रा खाना लेकर आई। उसे सब पता लगा तो उसने भी सोहन को बहुत डाटा।शाम को सोहन घर नहीं आया न ही उसने खाना खाया उसकी भूख प्यास, नींद सब उड़ चुकी थी।अगले दिन जब कबीरदास घर वापस आये तो उन्होंने सोहन के बारे में पूछा –सुमित्रा ने सारी बात बता दी।
कबीरदास सब छोड़ कर दौड़ते हुए खेत पर पहुंचे उन्होंने देखा मोहन पेड़ के नीचे बैठा रो रहा था। आधी फसल खराब हो चुकी थी।
सोहन: पिताजी मुझे माफ कर दीजिये मेरे आलस ने इतना बड़ा नुकसान कर दिया। आप चाहें तो मुझे पीट लीजिये।
कबीरदास: नहीं तुझे मारने से फसल ठीक नहीं होगी। वादा कर आज के बाद कभी आलस नहीं करेगा। चल अब घर चल वहीं बात करेंगे।
दोंनो घर आ जाते हैं।सोहन की आंखों से अब भी आंसू बह रहे थे।सुमित्रा ने उसे खाना दिया। लेकिन उसने नहीं खाया और वह अपने कमरे में जाकर रोने लगा।
सुमित्रा: जी अब क्या होगा आधी फसल तो बर्बाद हो गई।
कबीरदास: सुमित्रा कोई घाटे का सौदा नहीं है। आधी फसल देकर अगर बेटा सुधर गया तो यही काफी है।
कबीरदास ने सोहन को बुलाया –
कबीरदास: बेटा अब तो नुकसान होना था हो गया। अब हमें कल से आधे खेत की फसल उखाड़ कर दुबारा बोनी होगी।
सोहन: पिताजी आप बाकी आधे खेत में खाद यूरिया लगा कर उसे काटने का इंतजाम कीजिये। मैं इस पर अकेले काम करना चाहता हूं।
अगले दिन सुबह चार बजे सोहन अपने पिता के साथ खेत पर पहुंच गया। और पिता के बाताये अनुसार खेत पर काम करने लगा।
चार महीने कठिन परिश्रम करने के बाद नई फसल कुछ बढ़ती हुई दिखाई देने लगी।
