आधुनिक कान्हा/डॉ लाल थदानी
आधुनिक कान्हा/डॉ लाल थदानी
बेचारा गरीब सुदामा चावल की बनाई मीठी खीर की पोटली और राखी लेकर आधुनिक अमीर कृष्ण के पास दिल्ली गया। उसने ही तो दोस्तों को मैसेज किया था। वो भी अंग्रेजी में। छोटा सा मोबाइल लेकर सुदामा सबको मेसेज दिखाता फिरा।
You guy's !! whenever you happen
to be here please visit
(मेरे दोस्तों जब भी आपका इधर आना हो कृपया मेरे पास जरूर आना)। भोला भाला सुदामा ने समझा राखी और जन्माष्टमी का शुभ मौका है, मिल आता हूं। गूजर मोहल्ले में दोनों साथ साथ खेलते थे। पता नहीं पहचानेगा भी या नहीं। सो पहुंच गया डरता झिझकता। बेचारा सुदामा। हाई टेक शहरों में बोला कुछ जाता है हकीकत कुछ और होती है। वैसे भी तीस साल पहले की पढ़ाई और आज की पढ़ाई में दिन रात का फर्क था। हाई टेक शहर का कान्हा 50 साल का हो गया मगर आज भी लुभावनी बातों से , नाजों नखरों से नटखट है।
सातों युगों का इतिहास उठाकर देखो। कान्हा तो कान्हा ही रहेगा। रिझाने वाला , सताने वाला। बस बदलाव आया तो समय के हिसाब से, सोच में, पहनावे में, ऊंच नीच, अमीरी गरीबी में। अब तो सात युगों के बाद माटी की खुशबू बिखर गई कारों के काफिले के साथ , ऊंची ऊंची इमारतों की दीवारों और नींव में दब सी गई है। चकाचौंध रोशनी में अपने आप से दूर होते नौकरी और छोकरी के पीछे भागने वालों को खुशबू आए भी तो कहां से। कोरोना ने नाक पर मास्क की परत और चढ़ा दी। भाव शून्य व्यक्ति लिखे खुद समझे खुद।
कान्हा नाम रखने से कोई कृष्ण भगवान तो हो नहीं जाता और बड़े शहर में रहने वाले कृष्ण को छोटे शहर के छोटे कद काठी का सुदामा क्यों भाने लगा। धनाढ्य होते हुए भी कृष्ण था महा कंजूस। वो समझ गया था कोरोना से अच्छा खासा व्यवसाय सुदामा का ठप्प था। उस पर 2 जवान बेटियों की शादी की जिम्मेदारी ने सुदामा को विचलित कर रखा था। जैसे तैसे सुदामा दिल्ली पहुंचा। मगर उसके आने की ख़बर के बावजूद ना फोन की घंटियां सुनी गई और न फोन उठाया गया।
सुदामा समझ गया। अभी कृष्ण अवसाद में है। शायद #anxiety या फिर #splitpersonality में। सोचा था कृष्ण को सरप्राइज़ दूंगा। यहां कृष्ण ने सरप्राइज़ दे दिया। सुदामा आश्चर्यचकित था। लेकिन गरीब के मुंह से तो दुआएं ही निकलती हैं। जो दे उसका भला जो ना दे उसका भी भला। सुदामा ने उसे भी दुआएं दी। जल्द स्वस्थ होने की मंगलकामना देता हुआ सुदामा उल्टे पांव अपने घर लौट आया।
