यह ज़मी है कुछ...
यह ज़मी है...
“
यह ज़मी है कुछ यूं उर्वर!
बहते हैं यहां प्रेम के निर्झर!!
जान सकता है वही यह भेद!
जिसने देखा हो कहीं पतझर !!
”
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