यह ज़मी है...

यह ज़मी है कुछ यूं उर्वर! बहते हैं यहां प्रेम के निर्झर!! जान सकता है वही यह भेद! जिसने देखा हो कहीं पतझर !!

By Anupama Shrivastava Anushri
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