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कहीं सागर से नहीं बुझती है प्यास
कहीं शबनम भी दम रखती है प्यास बुझाने की किन बंदिशों में बंधी है मुस्कान तेरी मैंने मुकम्मल कोशिश है कि इसे पाने की
खुली आंखों से भी सोया रहा में बंद करके भी नींद नहीं आजकल अब तो जिद भी नहीकरती है मां लोरिया सुनाने की
”