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जब 'कुछ' पाना इस तरह से जरूरी हो जाय.. की 'सांस' लेना भी मजबूरी हो जाय ... और 'रुकना' पल भर भी गैर जरूरी हो जाय ...तब एक बार 'मुड' कर जरूर देखना.... की जो 'पाया' अब तक ...वो भी मुश्किल था कभी ...यूँ ही मुट्ठी में भर लिया हो कुछ ऐसा तो नहीं हुआ कभी...
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