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आज एक...
आज एक बार फिर...
आज एक बार...
“
आज एक बार फिर उसी राह से गुज़रे और वही मायूसी हाथ आयी ,न जाने क्यों इस दिल को भी दर्द की आदत हो गयी है।
ऋतु
”
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