आज के शिक्षा व्यवस्था की कलई खोलती कविता आज के शिक्षा व्यवस्था की कलई खोलती कविता
पिछवाड़े कोई धर दे जूता, मैंने भी देखा एक कुत्ता। पिछवाड़े कोई धर दे जूता, मैंने भी देखा एक कुत्ता।