उजड़ा घोंसला
उजड़ा घोंसला
बचपन में कभी हमने एक कहानी सुनी थी
एक "बया" थी जो बहुत मेहनती और गुनी थी
एक दिन जब बरसात जोर की आ रही थी
बया अपने घोंसले में बच्चों संग मौज मन रही थी
एक बंदर पेड़ पर बुरी तरह से भीग रहा था
बया को खुश देखकर मन ही मन कुढ रहा था
बया ने कहा कि अगर तू भी घोंसला बना लेता
तो आज इस तरह बरसात से बच गया होता
यह बात बंदर को अंदर तक चुभ गई
सुनकर उसके तन बदन में आग लग गई
उसने तुरत फुरत उजाड़ दिया वह घोंसला
मगर डिगा नहीं पाया वह बया का हौंसला
बया ने फिर से मेहनत कर के घोंसला बना लिया
और घमंडी बंदर को फिर से नीचा दिखा दिया
दुनिया में ऐसे "बंदर" भरे पड़े हैं
हमारी सफलताओं से वे चिढ़े पड़े हैं
खुद कोई सकारात्मक काम नहीं करते
मगर हमारे कामों में अड़चनें पैदा करते
अपनी ताकत के नशे में चूर हैं वे लोग
धरती पर बोझ हैं , नासूर हैं वे लोग
वे "घोंसला" उजाड़ने की ताक में रहते हैं
हर वक्त तोड़ फोड़ करने की जुगत में रहते हैं
ऐसे बंदरों को हमें पहचानना होगा
अपनी सफलताओं से उन्हें दूर रखना होगा
ऐसे बंदरों से भिड़ने से बचना होगा
उजड़ा घोंसला फिर से बनाना होगा
घौंसला टूट जाये तो कोई बात नहीं
मगर, हौसला टूटने से हमें बचाना होगा।