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Shruti Pandey

Others

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Shruti Pandey

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त्यागमयी प्रकृति

त्यागमयी प्रकृति

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उस सरसराती हवा में एक नशा था,

वह इठलाता फूल कुछ कह रहा था,

हर शांत बादल कुछ चंचलता से भरा था,

खगों के सीधेपन में भी एक घुमाव था।


ऐसा अद्भुत पल था वो मानो सब कुछ कह रहे हों,

मन में छुपे सवालों का वह जवाब दे रहें हों,

न सूर्य को अपने तेज का घमंड था,

ना चाँद को अपनी सुंदरता का गुरूर, 

सूर्य अस्त होने लगा और चाँद उदय,

उस सामंजस्य में आदित्य की लालिमा थी

और,चाँद की शीतलता। 


अपना तेज अपनी रौशनी देकर भानू अस्त हो गया 

उसे न दुःख था न मलाल न भय,

मासूम देखने वाले पुष्पों में दुखी ऐसी गंभीरता 

जैसे वह कह रहीं हो यही है सच्चा रिश्ता।

 

वहाँ पत्ते झूम रहे थे,

खग नाच रहे थे, 

जमीं इस छवि को निहार रही थी 

आकाश गौरवान्वित हो रहा था 


क्योंकि यह अहसास तो सभी को था 

कि सारे संसार को आवश्यकता है उनकी 

और उन्हें एक दूजे की 

क्योंकि ,

लालिमा चाँद ले नहीं सकता 

और, 

चाँद में घुले प्यार को सूर्य छीन नहीं सकता ।


इस प्यार का नशा मापा नहीं जा सकता 

इस त्याग को ठुकराकर संसार चल नहीं सकता 

इस समर्पण से कोई अछूता नहीं रह सकता। 


वास्तव में,


प्रकृति से बड़ा गुरु नहीं,

मन से अच्छा शिष्य नहीं,

आत्मदान से बड़ा दान नहीं,

प्रेम से बड़ी शिक्षा नहीं,

और जागृत आत्मा के बिना कुछ भी संभव नहीं।


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