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बबीता रानी

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बबीता रानी

सुनो न !

सुनो न !

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थोड़ा सा सुनने की चाह थी तुम्हें,

कहना बहुत कुछ हमको था..

जब साथ छोड़ तुम चले गए,

सहना बहुत कुछ हमको को था..


हर एक पल हर एक लम्हा

तुम्हारी याद में गुज़ारा है..

बस चुके हो दिल की गहराई में,

हर धड़कन में नाम तुम्हारा है..


लेकिन सुनो,

नदी के दो किनारे कब मिलते हैं,

साथ साथ चलना भी तो

एक दूसरे का सहारा है..


लेकिन ये भी सच है सुनो,

आत्मिक प्रेम कहते हैं जिसे,

इस दुनिया में कहीं नहीं...


देह से ही करते हैं सब प्रेम,

प्रेम रूह से जुड़ता कभी नहीं..

तुम्हें मेरे साथ की

कोई ज़रूरत कभी नहीं ..


मेरे जज़्बात की तुम्हारे लिए

कोई एहमियत कभी नहीं..

न कोई आस है,

कोई उम्मीद भी अब बची ही नहीं...


सिर्फ एक उदासी है जो

मेरा जीवन पर्यन्त साथ निभाएगी..

ये ज़िन्दगी सिर्फ और सिर्फ

आत्मग्लानि में ध्वस्त हो जाएगी...!


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