संगीत
संगीत
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जज़्बातों के समंदर में
लिया करता था
गहरे गहरे गोते।
सांस रुक जाती थी,
पर जान वहीं रहती थी।
मेरी ही गहराई,
जाने मुझे खोजती थी
या मैं उसे।
कितनी बातें करती थी,
और मैं, एकटक,
उसे सुनता रहता,
उसकी बातों से
अपने गीत
बुनता रहता।
आजकल,
छिछली डुबकियाँ लगाता हूँ,
न उससे मिलता हूँ,
न गीत सुन पाता हूँ।
सांस दो पल भी रुकती है
तो लगता है,
जान ले जाएगा कोई।
मैं सतह पर चौकन्ना हूँ,
मेरी गहराई डूब रही है,
उसका दिल रो रहा है।
मेरी ज़िन्दगी का संगीत,
कहीं खो रहा है।