Badakhwar
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रात के साहिर का तिलिस्म है ये,
निगाहों में बोझल हैं नींद के साए,
सांसें मेरी नाम सी हैं,
खुली आँखो से देखे चेहरे कई,
सेहर चंपई धूप में धुंधले पड़ गए ।
शब
वाकिफ़