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Nishant Kumar Pathak

Children Stories Classics Inspirational

4.5  

Nishant Kumar Pathak

Children Stories Classics Inspirational

शायद मै बड़ा हो रहा था

शायद मै बड़ा हो रहा था

2 mins
285


शायद मै बड़ा हो रहा था 

मेरा घर मुझसे छूट रहा था,

जो कभी मेरे किलकारियों में झूम उठता था ,

तो कभी मेरे उदासी मै मौन हो जाया करता था 

अब शायद मै बड़ा हो रहा था 


मेरी गलियां मुझसे छूट रही थी , 

जहां की हर चौखटो पे कभी ,

मेरे छोटे-2 पैरो के निशान हुआ करते थे

अब शायद मै बड़ा हो रहा था 


मेरे घर वाले मुझसे छूट रहे थे,

जिनकी लबो पे कभी,

दिन - भर मेरा ही नाम हुआ करता था

अब शायद मै बड़ा हो रहा था


मेरे दोस्त मुझसे छूट रहे थे,

जिनकी धड़कने कभी मेरे साथ धड़कती थी,

मेरा गांव मुझसे छूट रहा था 

जहां कभी मेरे मुस्कुराने से सूर्य खिला करता था,

और जहां कभी मेरे उदास होने से शाम ढल जाया करती थी

अब शायद मै बड़ा हो रहा था


मेरे खेत- खलिहान मुझसे छूट रहे थे,

जो कभी मेरे स्पर्श से लहलहाया करते थे,

मेरे बाग-बगीचे मुझसे छूट रहे थे,

जो कभी मेरे एहसास से झूम जाया करते थे

अब शायद मै बड़ा हो रहा था


मेरे गांव की नदिया मुझसे छूट रही थी,

जिसकी चंचल धारा मेरे अनुभूति से खिलखिला उठा करती थी,

और जिनसे मै घंटो बाते किया करता था वो अपना मौन भी मुझसे बांटा करती थी,

उसके किनारे की रेत मेरे पावो के निशान से मुकम्मल हुआ करती थी,

वो सब मुझसे छूट रहा था

अब शायद मै बड़ा हो रहा था


कोई कृष्ण अपने यशोदा से दूर हो रहा था,

जैसे सूर्य से रौशनी, चांद से चांदनी और जैसे किसी नदी से उसकी चंचलता,

कोई राधा भी कृष्न से दूर हो रही थी,

और ये कृष्ण भी किसी मीरा से दूर हो रहा था,

जिनकी सांसों में कभी कृष्ण रूपी मै ही बसा करता था

अब शायद मैं बड़ा हो रहा था। 


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