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सच्चे गुरु

सच्चे गुरु

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माता हैं मातेश्वरी-पिता हैं पितेश्वर,

दोनों में छिपे हैं-परमेश्वर।

 

सबसे बड़ी मात-पिता की शरण,

यही समझाया स्वयं 'गणपति'ने करके परिकृमा।

 

जब इनके चरणों में है चारों धाम,

फिर क्यों ना करे सेवा निष्काम।

 

अगर जीते जी रही इनकी हर आस अधूरी,

मरनोपरांत काहे खिलाते हलवा पूरी?

 

काहे ढूंढता फिरे तू बाहर गुरु?

कर चरणों में प्रणाम यही हैं तेरे सच्चे गुरु।

 

मात पिता का आशीर्वाद सदा जो पाते हैं,

निसंदेह भवसागर वो तर जाते हैं।

 

सर्वप्रथम होती पूजा उनकी-देवों में वो देव महान,

जरा सोचिए इससे बढ़ कर क्या हो सकता वरदान।


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