सारे अधूरेपन भी सत्य हैं..
सारे अधूरेपन भी सत्य हैं..
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ओ मेरी
अपूर्ण सी जिंदगी
मैं
तुझ से
शिकायत नहीं करती
तेरी अपूर्णताओं की।
तुझे
जीती हूँ
पूरे मन से ..
छोटी मोटी
बेमतलब बातों पे,
आदतन
खिलखिलाती हूँ।
गाती हूँ...
गीत जिनके
हर्फ़ लिखती मैं स्वयं,
जिनकी धुनें
चुनती
मैं खुद ब खुद।
जानती हो ...
तुझे साँचो में...समझने वाले लोग
मेरी इस आदत से
बैचेन हो जाते हैं
अकसर।
अपनी बेबसी को ढांपते
वो सफल, दुनियावी लोग
खिसिया कर ,
खीजते मुझ पर।
पर मैं
अलमस्त, अनगढ़
मानती हूँ.....
कि
दुनियाँ के
सारे अधूरेपन भी सत्य हैं,
सुन्दर हैं वो....
चूंकि वो निष्पाप हैं...
स्वतः हैं।
