रावण
रावण
1 min
468
नाक कटी थी शूर्पणखा की, लहू हाथों से ठहराया था
पंचवटी में स्पर्श था मेरा जो एक मात्र कहलाया था
सुनकर जबान बड़बोलों का, विवेक जो तेरा खो गया
अग्नि को सीता भेंट कर, तू कैसे पुरुषोत्तम हो गया।।
कलयुग के ये जो प्राणी हैं मुझसे ज्यादा अभिमानी हैं
हाथों तीर प्रत्यंचा इनके कहते ये राम अवतारी हैं
था अहंकारी मायावी मैं, ब्राह्मण कुल का अवतारी मैं
जब जब शास्त्र उठाये थे, था वानर सेना पर भारी मैं
हूं महाकाल का भक्त मैं अर्पित करता हूं रक्त मैं
तांडव का खेल करते जो ये, हूं देख इन्हें निःशब्द मैं
हूं देख इन्हें निःशब्द मैं...
