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Mahavir Uttranchali

Others

4.2  

Mahavir Uttranchali

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रामभक्त शिव

रामभक्त शिव

7 mins
81



रामभक्त शिव जी बड़े, जपते आठों याम

जन्मे वह शिवरात्रि को, पाया यूँ शिव नाम //1.//


वर्ष रहा 'अड़तीस' वह, शिवरात्रि महापर्व

पूरे काण्डी गाँव में, 'शिव' आये तो गर्व //2.//


देह जाय तक थाम ले, राम नाम की डोर

फैले तीनों लोक तक, इस डोरी के छोर //3. //


भक्तों में हैं कवि अमर, स्वामी तुलसीदास

‘रामचरित मानस’ रचा, राम भक्त ने ख़ास //4. //


राम-कृष्ण के काज पर, रीझे सकल जहान

दोनों हरि के नाम हैं, दोनों रूप महान //5. //


छूट गई मन की लगन, कहाँ मिलेंगे राम

लोभ-मोह में डूब कर, बना रहे बस दाम //6. //


सोते-जागे सब जगह, याद रहा ये नाम

खुद को जाऊँ भूल मैं, भूलूँ कैसे राम //7//


परिजनों संग कीजिये, चर्चा प्रभु श्रीराम

प्रेम बढ़ेगा आपसी, बनेंगे सभी काम //8.//


जग में सब है स्वार्थवश, सिवाय प्रभु का नाम

यही है मनोकामना, जिव्हा पर हो राम //9.//


राम चले वनवास को, दशरथ ने दी जान

पछताई तब कैकयी, चूर हुआ अभिमान //10. //


राजा दशरथ के यहाँ, हुए राम अवतार

कौशल्या माँ धन्य है, किया जगत उद्धार //11. //


मुख में जिनके राम है, हैं श्रेष्ठ वही लोग

पाप कटें, निशदिन जपें, दूर रहें सब रोग //12.//


अन्धकार मिटने लगा, घट में उपजा ज्ञान

राम रसायन पास तो, पास सभी विज्ञान //13.//


सियाराम वो नाव है, कर दे जो उद्धार

भवसागर में इस तरह, लग जाये तू पार //14.//


जिव्हा में यदि राम है, और श्रद्धा अपार

ले जायेगा पार भी, मुखरूपी यह द्वार //15.//


जीवन के हर युद्ध में, संग खड़े हैं राम

दुःख से नहीं हताश जो, पाए वो सुख धाम //16.//


राम नाम है कल्पतरु, मन के मिले पदार्थ

आप ही मनोकामना, पूर्ण करें सिद्धार्थ //17.//


तुलसी समान पूज्य है, सेवक तुलसीदास

परम भक्त 'शिव' आपका, रखो मुझे भी पास //18.//


जो भक्त महादेव का, खाय धतूरा-भाँग

मैं तो सेवक राम का, रामचरित की माँग //19.//


नशामुक्त जीवन जिया, किया ना धूम्रपान

पूरा जीवन राम धुन, किया यही गुणगान //20.//


छल जाये अधिकांश ही, है विष सुन्दर वेश

स्वर्ण मृग से हरी सिया, सुन्दर रूप कलेश //21.//


ज्ञान गया सब वेद का, देख सिया का रूप

रावण मूरख बन गया, विष है नार स्वरूप //22.//


मन से अपने त्याग दो, काम क्रोध मद लोभ

होगी असीम शान्ति तब, मिट जायेगा क्षोभ //23.//


ज्ञानी मूर्ख समान है, जीता ना यदि काम

हो मनवा स्थिर-शान्त भी, अगर जपोगे राम //24.//


अनुभव बूढ़ी आँख का, धर्म-कर्म के काम

जपते रहिये रात दिन, राम-राम अविराम //25.//


दुःख-सुःख में जो स्थिर रहे, समझे एक समान

महावीर कविराय वह, मानव है विद्वान //26.//


धीरज धारण कीजिये, सर्वोत्तम यह बात

राम-नाम की ओढ़नी, ओढ़े रहिये तात //27.//


जीवन के हर युद्ध को, जीतते धैर्यवान

संकट में ही होत है, योद्धा की पहचान //28.//


राजपाठ तज वन गए, धन्य-धन्य श्रीराम

त्यागी जीवन आपका, कालजयी यूँ नाम //29.//


राजभवन या वनगमन, देते यह सन्देश

सर्वोत्तम हर हाल में, धर्म-कर्म आदेश //30.//


टूटे धनु को देख कर, क्रोध में परशुराम

ऐ मूढ़ जनक सच बता, किसका है यह काम //31.//


धनुवा तोड़ा कौन ये, फरसा देखे बाट

उसकी इक ही वार में, खड़ी करूँगा खाट //32.//


शूरवीर की वीरता, दिखलाये रणभूमि

कायर डींगें हाँकते, काग़ज़ी म्यान चूमि //33.//


मन में गहरे छेदते, लखन लाल के बोल

परशुराम अब क्या कहें, धैर्य गया है डोल //34.//


शान्त तभी हो क्रोध अब, प्रत्यंचा को खींच

राम सभी के सामने, भरी सभा के बीच //35.//


प्रत्यंचा जब खींच दी, दिए सभी आशीष

हाथ जोड़ बोले परशु, धन्य-धन्य जगदीश //36.//


सिया स्वयम्वर देखकर, आनन्दित सब लोग

धूम धाम बारात में, खाते छप्पन भोग //37.//


हित चाहे जो आपका, मानो उसकी बात

सबसे बढ़कर मित्र वह, समझो उसको तात //38.//


दूर रहो उस पन्थ से, उलटी दे जो सीख

राम भक्ति अपनाइये, ये सर्वोत्तम भीख //39.//


यदि मन्त्री लोभी बड़ा, करे राज का नाश

और वैद्य भी लालची, तब समझ सर्वनाश //40.//


राम नाम अपनाइये, लालच खुद मिट जाय

सब संकट मिटते वहाँ, जीवन में सुख छाय //41.//


मीठी वाणी बोल कर, मन मोहे हर कोय

लेकिन मनमें विष भरा, हित न किसीका होय //42.//


राम नाम ही बोलिये, हित सबका ही होय

राम नाम है वो सुधा, जिसका तोड़ न कोय //43.//


पाप यही सबसे बड़ा, शरणागत का त्याग

दया सभी में श्रेष्ठ है, जीवन का यह राग //44.//


राम नाम से सीखिए, नीति-प्रीति अनुराग

विभीषण शत्रु नाथ का, फिर भी किया न त्याग //45.//


लोग जहाँ प्रसन्न नहीं, वहाँ न जाओ आप

जिया रमाओ राम में, मिटें सभी सन्ताप //46.//


राम नाम वह तेज है, तमस कहीं ना व्याप्त

जिधर न कुछ दीखता, 'राम नाम' पर्याप्त //47.//


अनहोनी होगी नहीं, होनी है तो होय

हैं प्रभु तेरे साथ जब, फिर क्यों रोना रोय //48.//


जीवन के हर युद्ध को, राम भरोसे छोड़

प्रभु तेरे संघर्ष को, देंगे अच्छे मोड़ //49.//


निन्दा से निन्दा मिले, शर्मिन्दा हो ज्ञान

औरों को सम्मान दे, मिले तुझे सम्मान //50.//


दूजों के अपमान से, यश न तुझे मिल पाय

रहा सहा ये तेज भी, क्षणभर में मिट जाय //51.//


तन सुन्दर तो गर्व क्यों, एक दिवस ढल जाय

पैदा नेक विचार कर, कायजयी कहलाय //52.//


ग़लत राह कोई चुने, दे दो अच्छी राय

सबसे उत्तम मार्ग यह, यही सभी को भाय //53.//


रावण की लंका जली, बजरंग थे अशान्त

चित्रकूट के धार पर, हनुमंत हुए शान्त //54.//


भेज दिए थे राम जी, ज्वाला करने शान्त

चित्रकूट के धाम यूँ, राम जपे विक्रान्त //55.//


चित्रकूट के तीर्थ पर, लंका के उपरान्त

धारा में हनुमान जी, अग्नि किये थे शान्त //56.//


सज्जन के साथी बनो, भली करेंगे राम

दुर्जन मित्र न राखिये, आप हुए बदनाम //57.//


सियाराम यदि नाम है, सज्जन समझें लोग

मर्यादा रख राम की, तुझे मिला यह योग //58.//


भटके चौरासी जगह, तब मानव तन पाय

ये चोला भी व्यर्थ है, राम न बोला जाय //59.//


छोड़ दे तू बुरे व्यसन, जपता रह श्रीराम

अच्छे कर्मों से बने, तेरे बिगड़े काम //60.//


तन की आभा वस्त्र है, मन की शोभा बात

उत्तम बातें कीजिये, याद रहे दिनरात //61.//


हृदय वस्त्र यदि साफ़ है, तन भी शोभा पाय

तेरा उलटा आचरण, तेरा मान घटाय //62.//


जिसकी दासी इन्द्रियाँ, उसको उत्तम मान

वो नर राम समान है, मिले उसे सम्मान //63.//


त्याग दिए जिसने व्यसन, वो नर बने महान

राज सुखों को त्याग कर, बढ़ी राम की शान //64.//


तप से सब कुछ प्राप्त हो, तप से है संसार

तप से आवें राम प्रभु, तप का तेज प्रहार //65.//


ब्रह्मा जी ने सृष्टि की, रच डाला संसार

पालक इसके विष्णु जी, शिव करते उद्धार //66.//


सुग्रीव-विभीषण सखा, दुःख से दिया उभार

कहा मित्र जब राम ने, सत्ता दी उपहार //67.//


सुःख-दुःख में जो मित्र के, आते हर पल काम

प्रभु उनके संकट हरे, प्रसन्न उनसे राम //68.//


गुण-अवगुण के साथ यदि, करते सोच-विचार

अच्छे मानव आप हैं, उत्तम यह व्यवहार //69.//


बुद्धिमान यदि मित्र है, समझो बेड़ा पार

मूर्खतापूर्ण आचरण, धरे बीच मझधार //70.//


लेन-देन में मित्र से, करो उचित व्यवहार

तुझको खुद सम्मान दे, तेरा यह सत्कार //71.//


अपशब्दों से होत है, चरित्र की पहचान

गुस्से में अपशब्द का, रखिए हर पल ध्यान //72.//


मुख आगे मीठा कहे, मारे पीठ कटार

ऐसे दुर्जन मित्र का, कीजिये बहिष्कार //73.//


छल है, माया रूप है, सब मिथ्या संसार

राम नाम से नेह कर, बाक़ी सब बेकार //74.//

प्रेमलोक सब स्वार्थ है, इससे पाओ मुक्ति

राम भजन हो रातदिन, ढूँढ़ो ऐसी युक्ति //75.//


पवित्र जल धोता रहा, युग-युग सबके पाप

सूरज-चन्दा की तरह, गंगा भी निष्पाप //76.//


समझ सको तो राम है, ना समझो तो मूर्ति

पूजा अगर ढकोसला, मत कर खानापूर्ति //77.//


सागर से दूरी धरो, नदिया जहाँ समाय

अस्तित्व कहाँ आपका, फिर आप न रह पाय //78.//


बड़े न लघु को राह दें, तो दुःख की ये बात

बूढ़ों का आशीष तो, हो सुःख की बरसात //79.//


है प्रेम नाम त्याग का, त्यागी बने महान

औरों के दुःख बाँटकर, बने राम भगवान //80.//


राम कहें संसार में, सबसे बढ़कर संतोष

जान है तो जहान है, दयाकर आशुतोष //81.//


धन में धन संतोष धन, जो उपजे मन शान्त

कृपा दृष्टि अपनी सदा, रखना लक्ष्मीकान्त //82.//


मन कर्म वचन से सदा, बोलते राम-राम

बन जाएँ सच मानिए, उनके बिगड़े काम //83.//


राम भक्ति वो फूल है, जिसका फल है ज्ञान

वर दे उनको शारदे, वो सब हैं विद्वान //84.//


जिसने पाया राम को, उसे न जग से काम

जिसको लागी राम धुन, वो पाए सुखधाम //85.//


पाए जो नर राम धन, वो सबसे धनवान

करते जो सबका भला, ऐसे हैं भगवान //86.//


जनम-मरण के कष्ट से, तारें प्रभु श्री राम

जीते जी जपते रहो, जाओगे श्री धाम //87.//


प्रसन्नचित जीवन रहे, बरस-बरस आराम

करके यही विचार तुम, जपो-जपो श्रीराम //88.//


बढ़ो सदा तुम लक्ष्य पर, मत होना भयभीत

जीवन में हरपल नहीं, समय यहाँ विपरीत //89.//


साहस कभी न छोड़िए, साथ सभी के राम

दैत्य बड़े बलवान थे, मगर गए हरि धाम //90.//


सियाराम समझे नहीं, कैसा है ये भेद

सोने का कैसा हिरन, हुआ न कुछ भी खेद //91. //


वाण लगा जब लखन को, रघुवर हुए अधीर

मैं भी त्यागूँ प्राण अब, रोते हैं रघुवीर //92. //


मेघनाद की गरजना, रावण का अभिमान

राम-लखन तोड़ा किये, वक़्त बड़ा बलवान //93. //


या देही से प्रीति क्या, एक दिवस मिट जाय

प्रीति करो श्री राम से, कई जनम फल पाय //94.//


मूरत मन्दिर राम की, भक्त झुकाए शीश

विपदा में हम पर सदा, दया करो जगदीश //95.//


जन्म-जन्म मैं आपका, बना रहूँ प्रभु दास

अपने भोले भक्त की, सुन लो ये अरदास //96.//


कहाँ मिलेंगे राम जी, हम खोजे नाकाम

राम तो हृदय में बसे, मैं भटका हर धाम //97.//


रावण कुल को तार के, किये जगत उद्धार

ऐसे दीनानाथ का, जनम-जनम आभार //98.//


राम-लखन से पुत्र हों, मात-पिता की चाह

रामायण जीवन बने, उत्तम है ये राह //99.//


जीवन बूटी कौन सी, सुझा नहीं उपाय

महावीर हनुमान ने, परवत लिया उठाय //100.//


जीवन व्यर्थ न कीजिये, करो राम के नाम

मानव जीवन कीमती, करो नेक हर काम //101.//


आस्थाओं के लेप से, भरे मानसिक घाव

रामभक्ति है वो किरण, उभरे आशा भाव //102.//


राम भक्ति के दीप से, सर्वत्र है प्रकाश

जगी सभी में चेतना, जगा नया विश्वास //103.//


राह कठिन हो दुख नहीं, बढ़े चलो दिनरात

रावण कुल व्यापक सही, देंगे उसको मात //104.//


हारा रावण, हरि विजय, युद्ध हुआ विकराल

प्रभु के सम्मुख ना चली, महा दुष्ट की चाल //105.//


रामविजयश्री पर्व का, अनुपम यह उपहार

सत्य-धर्म की जीत है, दीपों का त्यौहार //106.//


रामराज्य का लक्ष्य यह, भय मुक्त हो समाज

प्रतिदिन ही त्यौहार अब, है जनता का राज //107.//


राम अयोध्या आगमन, मौसम आया ख़ास

शिवजी आवाहन करें, ख़त्म हुआ वनवास //108.//

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