प्रेम क्या है?
प्रेम क्या है?
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प्रेम क्या है?
प्रेम है पारिजात,
खिल कर न मुरझाए कभी।
प्रेम है वह ज्योति जो जल जाए,
यदि मानव हृदय में, फिर न बुुुझ पाये कभी
या वो ध्रुव तारक जो रह कर अटल,
निश नभ पटल पर,हर भटकते पथिक को
दिग्दर्शन कराए,पथ सुझाए।
राह जब सबसे कठिन हो,
अपनी परछाई भी संग छोड़े जहां,
आस की कोई किरण बाकी न हो,
घन तिमिर ,गहरी निराशा की घड़ी हो,
ऐसे में, दुर्गम डगर पर प्रेम चलता है
सजन के साथ उसकी बाॅह थामे ,
बन के सूरज और चंदा,and
धैर्य, साहस और प्रेरणा।
कभी बांहों में समेटे ,
अपने उर की धड़कनों से,
फिर से जीवन लौ जगाए।
प्रेम बढ़ती आयु ,ढलते रूप से रहता अछूता,
बस समय के साथ गहराता ही जाए।
यह तो वर दैवीय अनुपम,
सबसे पावन,सबसेे मधुरिम,
जिसके जीवन को सजाए,
उसको देवोपम बना,शाश्वत बनाए।
