Mahendra Prajapati
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मैं नहीं जानता
परिभाषाएं प्रेम की
न कर सकता हूँ व्यक्त इन्हें
शब्दों में
बस इतना महसूसता हूँ
ज़िन्दगी तुम बिन
लगती है ऐसे
जैसे
माँ न दाल बनायी हो
बहुत मन से
पर बघारना भूल गई हो
घी और जीरे से।
मुक्तक
प्रेम की परिभ...