प्रेम और हरा रंग
प्रेम और हरा रंग
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प्रेम
प्रकृति की
अनमोल
और अमूर्त
कृति है
तो नफरत
भी तो
प्रकृति की हीं
कृति है
प्रेम रंगहीन
होकर भी
सब रंग
समाहित
कर लेता है
प्रेम हरे रंग में
जीवंत हो उठता है
सावन के महीने में
चहुओर हरियाली
दिखती है
मन बाग - बाग
हो जाता हैं
प्रेम हरियाली में
अभिभूत हो जाता है.