पापा, आपने मुझे उड़ना सिखाया
पापा, आपने मुझे उड़ना सिखाया
चादरी पलकों के नीचे ,
बुलबुली आँखों को सपनो में उड़ना सिखाया ;
पापा आपने अपनी छोटी गुड़िया को,
दुनिया देखने का नज़रिया सिखाया।
तोतली ज़ुबान से क,ख ,ग ,घ बोलना सिखाया,
आज स्पष्ट शब्दों में लिख रही हूं कविता,
पापा, आपने अपनी छोटी ग़ालिब को लिखना सिखाया।
रोती हुई स्कूल से आयी थी एक रोज;
लक्ष्मी बाई , इंदिरा गाँधी , कल्पना चावला के किस्से सुनाकर ,
मन में मेरे हौसला जगाया,
पापा,आपने परेशानियों से डटकर लड़ना और आगे बढ़ना सिखाया।
अब जब खोल लिए अपने पंख,
कर ली उड़न भरने की तैयारी पूरी;
पर रुको, अपनो का साथ न छूटे ये संस्कार भी सिखाया,
पापा, आपने सबका हाथ पकड़ एक साथ चलना सिखाया।
अब उम्र हो गयी है छब्बीस,
रिश्तेदारों की बातें अनसुनी कर,
खुद की शर्तों पे मुझे जीना सिखाया,
पापा, अपने मुझे उड़ना सिखाया!
एक रोज़ मैंने पूछ ही लिया-
"डर नहीं लगता कि आपके घोसले को छोड़ जाउंगी?
उड़ती हुई आसमान में कहीं खो जाउंगी?"
हंसते हुए बोले पापा-
"जितनी दूर भी चली जाऊँ,
शाम को दाना लेकर वापस घर को ही आऊंगी।"
हमेशा आपके आँगन की चिड़िया होने का हक़ दिलाया,
पापा, अपने हमेशा साथ रहने का भरोसा दिलाया।
पापा, आपने मुझे खुल कर आसमान में उड़ना सिखाया।
