नन्ही कोशिशें
नन्ही कोशिशें
एक बुद्धु छोटी सी बच्ची
करती शैतानी हज़ार
खिलौनो से वो डरती
रंगो से उसे था प्यार
अपने नन्हे हाथों से वो
चादर पर बने फूलो को
उठने की कोशिश करती
दिवार के सहारे गिरती उठती
बनी तितलियाँ छूती
बस अपनी माँ से लिपटी
खुश हमेशा रहती
छुए उसे कोई और
ज़ोर - ज़ोर से रोती
धीरे - धीरे जब बड़ी हुई
रंगो से प्यार बढ़ता गया
अब ज़िद करती रंग भरने को
करती कोशिश हज़ार
रंग डाली उसने अब घर की हर दिवार
रंगो से जुड़ी हर प्रतियोगिता में
लेती है वो भाग
ना भी आए प्रथम तो
नहीं होती वो निराश
फिर से अपने में नयी
उम्मीदों को भर्ती कहती
खुद से मै तो ही करती रहूँगी प्रयास!