Krishna Kumar

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नंदन वन की गोरी

नंदन वन की गोरी

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भ्रमर बन भ्रमण करु मैं,
पुष्पों के उद्यानों में ।
मृग समरुप अवलोकित होऊ,
नव कोपिल बागानों में ॥
नयन मिलन पर हर्षित होऊ,
वह मुस्कान यूँ सार समेटे हो ।
जैसे गोपियों के चीर चुराकर,
स्वयं हरि शाखा पर बैठें हो ॥
पर अधरों पर रखे मधु का,
मैं यूँ पान नहीं करता हूँ ।
हे नंदन वन की गोरी,
मैं प्यार तुम्हीं से करता हूँ ॥ 

प्रेम की भाषा अत्यंत गूढ़,
बिन वर्णो के शब्दित हो ।
यह कैसा मधु का प्याला है?
जो बिन जल के ही द्रवित हो ॥
कितना स्नेह है कैसे बताऊँ?
ह्रदय के भाव कैसे दिखाऊँ?
अंजनी पुत्र सा वक्ष चीरकर,
इष्ट के दर्शन कैसे कराऊँ?
रास कला में निपुण भले हुँ,
पर नारी का अपमान नहीं करता हूँ ।
हे नंदन वन की गोरी,
मैं प्यार तुम्हीं से करता हूँ ॥ 

खुले केशों की शोभा ऐसी,
स्याह घटा यूँ छायी हो ।
तेरी मुस्कान में रमणीयता इतनी,
जैसे स्वयं बसंत लहरायी हो ॥
तेरी आँखें शीतल ऐसी,
जैसे इन्दु धरा पर आया हो ।
तेरे रूप की कामुकता से,
स्वयं कामदेव घबराया हो ॥
दिन का आरंभ और समापन ,
तेरे स्मरण से करता हूँ ।
हे नंदन वन की गोरी,
मैं प्यार तुम्हीं से करता हूँ ॥ 

पर हे कन्या ! यह स्मरण रहे,
पूर्ण समर्पित नहीं हो सकता ।
इस निधि पर क़र्ज़ बड़े हैं,
सम्पूर्ण अर्पित कैसे कर सकता?
सबको प्राण प्रिय होते है,
तू प्राणों से प्यारी है ।
पर मातृभूमि सबसे ऊपर है,
और वही पूर्ण अधिकारी है ॥
देश सेवा को जाते श्याम पर,
तेरा अधिकार नहीं होगा ।
पर क्या सीमा के सजग प्रहरी के,
ह्रदय में प्यार नहीं होगा ॥
मेरा अपना जो कुछ शेष बचेगा,
सब तुझपर न्यौंछावर करता हूँ ।
हे नंदन वन की गोरी,
मैं प्यार तुम्हीं से करता हूँ ॥
नव वर्ष की पावन संध्या पर
इज़हार यही पर करता हूँ ।
हे नंदन वन की गोरी,
मैं प्यार तुम्हीं से करता हूँ ॥ 


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