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नहीं है चाहत हमे

नहीं है चाहत हमे

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नहीं है चाहत हमे सजने की               

ना हमे सवरना है,

क्या होगा रूप सजा के

जब टुट कर ही हमे बिखरना है,

नहीं है चाहत हमे धन दौलत की

ना हमे तिजोरी भरना है,

क्या होगा धन जुटा के

जब खाली हाथ ही हमे मरना है,

नहीं है चाहत हमे हमदर्दी की

ना हमे हमदर्द बनना है,

क्या होगा हमदर्दी जता के

जब दूसरो का दर्द ही हमे बनना है।


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