नारी
नारी
घर -आंगन ,बगिया चहक उठती ,प्रात: शाम की तरह शरारत ।
सभी मुखड़ो पर मुस्कान रखे, नारी तेरा नाम शहादत ।।
चुनकर कांँटे झोली में धरे, दुख की मदिरा तू पी जाती।
सभी की खुशियों में हो शामिल ,भरी दुपहरी सकून पाती।।
खून पसीने के गारे से ,बना रही तू एक इमारत।
तूफानों से लड़ना सीखा, नारी तेरा नाम शहादत।।
सृष्टी की तू अनमोल सूरत , चूल्हे चौके से है नाता ।
पढ़ -लिख कर संसार मे तूने, हक की खातिर खोला खाता।।
दुर्गा काली रूप हैं तेरे ,संस्कारों की तू है आदत।
पीछे मुड़कर कभी न देखा ,नारी तेरा नाम शहादत।।
कष्टों की काली बेला में ,समीर में घोड़े दौड़ाती
मेहनत की भारी चाखी से, सबका तू ही पेट भर पाती।
उम्मीदों की चाबी बनकर ,बन जाती तू सबकी चाहत।
खाली घरों को तू भर देती, नारी तेरा नाम शहादत
तेरी प्रबल इच्छा की खातिर , सब कायनात भी झुक जाती।
भरी धूप में तेरे आंँचल से, किरणों की छाया शरमाती
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों की , तू ही प्यारी एक इबादत
अनवरत नदी -सी बहती रहे ,नारी तेरा नाम शहादत।
