नारी हूँ मैं नारी, मुझे अबला न समझो
नारी हूँ मैं नारी, मुझे अबला न समझो


मैं किसी आँगन की बेटी हूँ तो किसी आँगन की ममता भी
मैं एक सुलगती ज्वाला हूँ , बेचारी न समझो
नारी हूँ मैं नारी, मुझे अबला न समझो।
मैं वही नारी हूँ जो सृष्टि का आधार बनी
ऐ इंसान मैं वही नारी हूँ जिसे तूने
हैवानियत में टुकडों में बांट दिया
जिसकी छाती जो ममता से भरी थी
उसी को तूने लहू से रंग दिया।
मत भूल मैंने तुझको जन्म दिया, गोद लिया बड़ा किया
पाला-पोसा, पढ़ाया-लिखाया गुणवान किया।
मैं वही नारी हूँ जो कभी सावित्री कभी सीता बनी
मैं वही नारी हूँ जो कभी काली कभी दुर्गा बनी।
इसी कोख से जन्म रा
म ने तो कृष्ण ने भी लिया
इसी कोख से अभिमन्यु ने चक्रव्यूह भेदना सीख लिया,
इसी कोख से रहीम तुलसी काबीर ने भी जन्म लिया
नारी ने सब कथनी करनी का भेद मिटा दिया
नारी ने हर क्षेत्र में अपना सिक्का चला दिया।
नर नारी में न हो कोई भेद
ऐसा हो मानवीय जीवन का लेख।
नारी को अबला कहना बंद करो
ऐसी परम्पराओं से जग को मुक्त करो।
अपने हक के लिए लड़ना है शान से
तब जान सकेंगे लोग नारी को सम्मन से।
नारी को नारी ही रहने दो
पवन सा गगन में उड़ने दो।
(पवन प्रजापति)