न जाने वो कहाँ खो गई
न जाने वो कहाँ खो गई
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जो दुनिया को अपने संग लेकर चलती थी,
ढेर सारे खवाबों में रंग भरा करती थी,
जो परायों में भी अपनों को खोजा करती थी,
भीड़ में आवाज़ सबकी जाया करती थी,
थी वो मुंह फट सी चंचल मन की,
जो गलत पर भी सवाल उठाया करती थी,
गलत से सामना करने से कभी न डरा करती थी,
हमेशा वो अपनी दुनिया में मस्त रहा करती थी,
हमेशा करती थी वो मनमानी ,
पर कभी न बड़ों का निरादर करती थी,
तितलियों के पीछे दौड़ लगाया करती थी,
वो भूतों की कहानी से बहुत डरा करती थी,
आँखों में लाखों ख़्वाब लिए हर रोज़ उड़ा करती थी,
वो थी थोड़ी पागल सी लड़की,
जो खुद से ज्यादा सबसे प्यार किया करती थी,
...न जाने वो कहाँ खो गई ।
