मुक्तक
मुक्तक
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रोटी के ख़ातिर नया बसर ढूंढ करके
वो मुसाफिर चला गया डगर ढूंढ करके,
जिस गाँव से थी अब तक मोहब्बत उसे
वो उसको भुला गया शहर ढूंढ करके ।।