मत रोको मुझे
मत रोको मुझे
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इजाज़त तो है तेरी, के हर शै से मैं प्यार करूँ
पर क्या करूँ के, हर शै की खुदी रोकती है मुझे।
दिल मुझमें और बेजान बनाने वाले में भी मिलता है
दुनिया की समझ, पत्थर कभी लकड़ी कह रोकती है मुझे।
अक्स मेरा ठहरे पानी में ही दिखता है बस,
ये भीड़ का सैलाब, थमकर झाँकने से रोकता है मुझे।
अब चाह के भी बदलना चाहूँ चोला कोई नया,
ये उम्र और कंधों पे वज़न, कदम उठाने से रोकती है मुझे।
