मरहम
मरहम
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बड़ा अजीब है रिवाज तेरे इस शहर का
दिल मिलते नहीं, हाथ मिलाते चलें
क्या होगा ? मुकम्मल हर वो रिश्ता
यकीन होता नहीं भरोसा दिलाते चलें
तमन्ना पाली रोशन करुं कोई आशियाना
दीप जला न सके तो दिल जलाते चलें
अजीब थी हसरतें कुछ कर गुजरने की
मिटे न एहसास -ए दर्द, चोट लगाते चलें
बडे जालिम मिले मुझे, हकीम भी प्रेमजी
घाव कुरेदते रहे, मरहम लगाते चलें।