मर्दवाद
मर्दवाद
आज फिर एक मर्द रोया है
क्या सुना तुमने।
जब वो एक नवजात था
दुनिया की बंदिशों से आज़ाद था
शब्द अभी सीखे नहीं थे उसने
फिर भी लोगों को तो सिर्फ
बेड़ियों से ही लगाव था।
"ये हमारा वंश आगे बढ़ाएगा।
हमारे लिए कुल दीपक लाएगा।"
एक मर्द ने दूसरे मर्द से हँसते हुए बोला
और वो बच्चा जो अनजान था
अपनी जिम्मेदारियों से नादान था।
उम्र ही क्या थी भला उसकी अभी
कि समझ सके वो समाज के खेल को।
पर फिर उस दिन
एक मर्द चुपचाप रोया
क्या सुना तुमने।
धीरे धीरे जब बड़ा हुआ
अपने पैरो पर खड़ा हुआ
ऊँगली पकड़ कर चलना बस
सीख ही रहा था
कि
अचानक गिर पड़ा उन टेढ़े
मेढे रास्तों पर।
तब भी सब आए उसके पास
कहने
"लड़के रोते नहीं।
लड़की हो क्या?"
अपने आँसू के वो कडवे घूँट
हँसते हँसते पी गया।
ये छोटा सा पाठ
दिल में उसके रह गया।
फिर भी उस दिन
एक मर्द रोया
दिल के अंदर ही अपने
क्या सुना तुमने।
अब घर छोड़ने की थी बारी आई
जब करनी थी उसे पढ़ाई
माँ बाप का नाम जो
रोशन करना था
अब उन रास्तों पर
उसे अकेले ही चलना था
थोड़ा सा अलग उसका
मिजाज़ था
लोगों के लिए वो सिर्फ
एक मज़ाक था
ना खेलना पसंद
ना लड़ना दूसरों की तरह
किताबों में ही शायद
उसका पूरा संसार था।
एक दिन एक मर्द ने
जोर से धक्का दिया
उसका आत्म सम्मान भी
शायद किताबों के साथ वही
गिरा दिया।
उस दिन
एक मर्द घर जाकर
फिर खूब रोया चुपचाप
मुस्कुराते हुए
क्या सुना तुमने!
"क्या मूँछ नहीं आती तुम्हारे
ये बाल क्यों कम है छाती पर
ये दाड़ी नहीं मज़ाक है पगले
मर्द अभी तुम बने नहीं!
क्या खून तुम्हारा पानी है
जो शांत इतनी जवानी है
जो लड़कियों से गुटर गू करके
हँसकर तुम इठलाते हो
कमर भी ठुमकती ही होगी तुम्हारी
शायद हम सब से छुपाते हो।"
ये सवालों के जवाब
उस मर्द के पास तो थे नहीं
फिर से मुस्कुराकर
गाली देने के अलावा
और कोई चारा था बचा नहीं।
मर्दानगी साबित करने का
अब यही तो सिर्फ एक मौका था,
माँ बहन दूसरों की को उसने
जमकर फिर से कोसा था।
फिर उस दिन
वहीँ उस मर्द के साथ
मर्दानगी भी चुपचाप
रोई थी।
क्या सुना तुमने।
"एक ही लड़की के साथ है सालों से
क्या मन तुम्हारा भरता नहीं?
कैसे मर्द हो
शराब को ना करते हो
कैसी झिझक भला
ये तो मर्दानगी की निशानी है।
एक पैग से क्या होगा
तुम तो 6-7 लगाओ
हम भी देखें कितने मर्द हो तुम
चलके जरा सीधा दिखाओ।"
उन चार मर्दों की बातों में
वो अकेला भी आ गया।
जितनी तथा थी नहीं
उससे ज्यादा ही वो पी गया।
फिर नशे में धुत्त यूँ ही
पड़ा रहा
आँखों से आँसू अब जा कर
बहे
फिर नाक पोंछ कर
सर पकड़कर फिर से सीधा खड़ा हुआ
मुस्कुराकर अपने उसूलों को
भी उसने गाली दे ही दी।
फिर उस रात एक मर्द रोया
अपने उसूलों की चिता के सामने
चुपचाप।
क्या सुना तुमने।
तुम मर्द हो औरत का सम्मान करो
वो मारे चांटा तो चुपचाप सहो
उसमे क्या है
बचपन से ही तो सहते आये हो
अब तो आदत हो गयी होगी।
तुम मर्द हो
सारी बुराई तुम में ही तो है।
इस बात को स्वीकार करो
लोगो के ताने हँसते हुए सहो
तुम मर्द हो
आँसूं ना बहाओ
याद है न
"मर्द को दर्द नहीं होता!"
तो क्यों
बचपन से दर्द छुपा कर रोते हो।
तुम मर्द हो
हो ना?