मेरी ज़िंदगी,मेरी कहानी
मेरी ज़िंदगी,मेरी कहानी
1 min
172
समझ न सकूं मैं
कहानी अपनी ज़िंदगी की
बड़ी अजीब सी दुविधा है,
कभी किसी को करीब पाऊं।
कभी उनसे भागती जाऊं,
चाहूं क्या ये ख़बर न मुझे,
जितनी उलझी मैं रहूं।
उतनी उलझी रहे ये।
सवाल खुद से यही पूछूं,
मुझसे क्यों ना सुलझ रही ये?
