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मेरी ज़िंदगी,मेरी कहानी

मेरी ज़िंदगी,मेरी कहानी

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समझ न सकूं मैं 

कहानी अपनी ज़िंदगी की 

बड़ी अजीब सी दुविधा है,

कभी किसी को करीब पाऊं।

कभी उनसे भागती जाऊं,

चाहूं क्या ये ख़बर न मुझे,

जितनी उलझी मैं रहूं।

उतनी उलझी रहे ये।

सवाल खुद से यही पूछूं,

मुझसे क्यों ना सुलझ रही ये?


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